Independence Day: बांके बिहारी मंदिर के तहखाने में जब अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भड़की थी चिंगारी

मुस्करा थाना क्षेत्र के गहरौली गांव में स्थित प्राचीन मंदिर सैकड़ों साल के इतिहास को संजोये है।
बांके बिहारी मंदिर
बांके बिहारी मंदिर

हमीरपुर, हि.स.। मुस्करा थाना क्षेत्र के गहरौली गांव में स्थित प्राचीन मंदिर सैकड़ों साल के इतिहास को संजोये है। स्वतंत्रता संग्राम के आन्दोलन के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर और मुख्यमंत्री एन.डी.तिवारी ने तमाम क्रांतिकारियों के साथ इस मंदिर के तहखाने में शरण ली थी। यह एतिहासिक मंदिर पर्यटन के दायरे में नहीं शामिल होने से अब ये जर्जर होने के मुहाने पर है।

हमीरपुर शहर से करीब 50 किमी दूर है मंदिर

हमीरपुर शहर से करीब 50 किमी दूर मुस्करा क्षेत्र के गहरौली गांव में बांके बिहारी जू मंदिर स्थित है। इसका इतिहास सैकड़ों साल पुराना है। मंदिर में पहले अवध बिहारी संत होते थे, जिनके चमत्कार को आज भी ग्रामीण याद करते हैं। मंदिर के मौजूदा पुजारी राजा भइया दीक्षित ने बताया कि जनपद का यहीं एक मंदिर है जो स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास को संजोये है।

अंग्रेजी हुकूमत में मंदिर शीर्ष नेताओं ने ली थी शरण

बांके बिहारी जू देव मंदिर के पुजारी राजा भइया दीक्षित ने बताया कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान क्रांतिकारियों ने इस मंदिर से ही अंग्रेजों के खिलाफ हल्ला बोला था। मंदिर के तहखाने में बुन्देलखंड केसरी नाम का अखबार टाइप करके निकाला जाता था। क्रांतिकारी पंडित मन्नीलाल गुरुदेव के नेतृत्व में बैजनाथ पाण्डेय, नत्थू वर्मा, जगरूप सिंह इस अखबार को चोरी छिपे बांटते थे। ये अखबार भी अंग्रेजों के खिलाफ जनता को लामबंद करने के लिये प्रेरित करता था। क्रांतिकारी अंग्रेजों से बचने के लिये सुरंग के जरिये मंदिर में आते जाते थे।

मंदिर के लम्बी सुरंग के सहारे बारातियों ने बचायी थी जान

मंदिर के पुजारी राजा भइया दीक्षित ने बताया कि सौ साल पहले गहरौली गांव में प्रजापति बिरादरी के घर बरात आयी थी। बारात में किसी बात को लेकर विवाद हो गया तो सैकड़ों बारातियों के लिये पंडित मन्नीलाल गुरुदेव ने सुरंग से भागने का रास्ता दिखाया था। कन्या पक्ष के लोगों के हल्ला बोलने पर दूल्हा सहित सभी बराती मंदिर के सुरंग में घुस गये थे फिर सुरंग के सहारे जान बचाकर घर भागे थे। पुजारी ने बताया कि मंदिर में सुरंग का आखिरी छोर गांव के बाहर खत्म होता है। मौजूदा में इस मंदिर के तहखाने और सुरंग को फिलहाल बंद कराया जा चुका है।

बांके बिहारी के चमत्कार से आग में खाक होने से बचा था गांव

मंदिर के पुजारी ने बताया कि सौ साल पहले भीषण तूफान आया था फिर अचानक गांव में दो घरों में आग लग गयी थी। तूफान के कारण आग विकराल हो गयी तब मंदिर के महंत अवध बिहारी ने बांके बिहारी का नाम लेकर आसमान की तरफ हाथ उठाया तो तुरंत बारिश होने लगी थी। बारिश के कारण आग बुझ गयी थी। उन्होंने बताया कि महंत ने बांके बिहारी का नाम लेकर भंडारा किया था, जिसमें पच्चीस गांव के लोगों ने भोजन किया था। किसी ने कोई मदद भी नहीं की थी लेकिन जैसे ही महंत जिस चीज में हाथ लगाते वह उपलब्ध हो जाता था।

मंदिर में कांग्रेस के पहले अधिवेशन में आये थे जवाहरलाल नेहरू

मंदिर के पुजारी राजा भइया दीक्षित ने बताया कि वर्ष 1937 में कांग्रेस का पहला अधिवेशन इसी मंदिर के परिसर में हुआ था तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू औैर पूर्व मुख्यमंत्री नारायन दत्त तिवारी सहित तमाम नेता आये थे। इस अधिवेशन में इन्दिरा गांधी भी नेहरू के साथ आयी थी। उस समय उनकी उम्र सिर्फ दस साल की थी। उन्होंने बताया कि स्वतंत्रता के पच्चीसवें वर्ष के अवसर पर स्वतंत्रता संग्राम में स्मरणीय योगदान के लिये राष्ट्र की ओर से पार्टी के जिलास्तरीय अधिड्ढवेशन में पंडित जवाहरलाल नेहरू व इन्दिरा ने ताम्रपत्र दिया था।

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