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रंग लाई वन विभाग की मेहनत, वर्षा की बूंद सहेजी तो चहक उठी नदी

देहरादून, 23 मई (आईएएनएस)। संकल्प से सिद्धि के लिए आवश्यक है कि प्रयास पूरी मेहनत और लगन से किए जाएं। उत्तराखंड के नरेन्द्रनगर वन प्रभाग में हेंवल नदी लैंडस्केप पुनर्जीवीकरण की पहल इसका अनूठा उदाहरण है। नदी के उद्गम से लेकर उसके गंगा में समाहित होने तक के बहाव क्षेत्र में बारिश की बूंदों को सहेजने के जतन हुए तो न केवल हेंवल चहकने लगी, बल्कि हरियाली भी बढ़ गई। नदी के यात्रा मार्ग में बनाई गई हजारों संरचनाओं की बदौलत लगभग 230 करोड़ लीटर वर्षा जल का संचय हो रहा है। पहल इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इसे वन विभाग ने स्वयं धरातल पर उतारा है। न केवल भारत, बल्कि पूरा विश्व जल संकट के खतरों को लेकर चिंतित है। भारतीय उपमहाद्वीप में भी कई नदियां तेजी से सूख रही हैं। इन परिस्थितियों के बीच हेंवल नदी के पुनर्जीवीकरण की पहल उम्मीद जगाने वाली है। नदी पर मंडराने लगा था खतरा: हेंवल नदी का उद्गम स्थल टिहरी जिले के अंतर्गत सुरकंडा के पास खुरेत-पुजार गांव है। इसके बाद यह तमाम जल धाराओं व उपधाराओं को स्वयं में समेटते हुए 48 किमी का सफर तय कर शिवपुरी के पास गंगा में मिल जाती है। अपने बहाव क्षेत्र के आसपास के गांवों के साथ ही चंबा, काणाताल, रौंसलीखाल जैसे कस्बों को भी हेंवल से जलापूर्ति होती है। इस बीच प्राकृतिक संसाधनों के अधिक दोहन, अनियोजित विकास समेत कई कारणों की मार इस नदी पर भी पड़ी, जिसका असर इसके घटते जल स्तर के रूप में सामने आया। ऐसे में आबादी वाले क्षेत्रों में पानी का संकट गहराने के साथ ही फसल चक्र भी प्रभावित होने लगा। इस बीच क्षेत्रवासियों ने हेंवल बचाओ आंदोलन भी शुरू कर दिया। वे इस नदी को बचाने के लिए सरकार से प्रभावी कदम उठाने की मांग कर रहे थे। ऐसे बनी पुनर्जीवीकरण की रणनीति: असल में हेंवल नदी नरेन्द्रनगर वन प्रभाग से होकर बहती है। यूं कहें कि लगभग 50 हजार हेक्टेयर में फैले इस प्रभाग के जंगलों की यह जीवनरेखा है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। मई 2018 में नरेन्द्रनगर के तत्कालीन प्रभागीय वनाधिकारी डीएस मीणा ने हेंवल की स्थिति के बारे में न सिर्फ जानकारी ली, बल्कि इसके उद्गम से लेकर शिवपुरी तक के बहाव क्षेत्र का निरीक्षण किया। पता चला कि जल धाराओं के सूखने या इनमें पानी घटने से यह समस्या पैदा हुई है। फिर तय किया कि नदी के पूरे लैंडस्केप में वर्षा जल संचय के उपाय पूरी गंभीरता के साथ कर इसे माडल के रूप में विकसित किया जाए। इसी कड़ी में आठ माह तक गहन सर्वे कर एक-एक जल धारा आदि का ब्योरा जुटाया गया। फिर हेंवल नदी लैंडस्केप पुनर्जीवीकरण योजना बनी। ऐसे बनी पुनर्जीवीकरण की रणनीति: असल में हेंवल नदी नरेन्द्रनगर वन प्रभाग से होकर बहती है। यूं कहें कि लगभग 50 हजार हेक्टेयर में फैले इस प्रभाग के जंगलों की यह जीवनरेखा है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। मई 2018 में नरेन्द्रनगर के तत्कालीन प्रभागीय वनाधिकारी डीएस मीणा ने हेंवल की स्थिति के बारे में न सिर्फ जानकारी ली, बल्कि इसके उद्गम से लेकर शिवपुरी तक के बहाव क्षेत्र का निरीक्षण किया। पता चला कि जल धाराओं के सूखने या इनमें पानी घटने से यह समस्या पैदा हुई है। फिर तय किया कि नदी के पूरे लैंडस्केप में वर्षा जल संचय के उपाय पूरी गंभीरता के साथ कर इसे माडल के रूप में विकसित किया जाए। इसी कड़ी में आठ माह तक गहन सर्वे कर एक-एक जल धारा आदि का ब्योरा जुटाया गया। क्षेत्रीय ग्रामीणों का मिला साथ हेंवल नदी के पुनजीर्वीकरण की मुहिम में क्षेत्रीय ग्रामीणों ने भी कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया। नरेन्द्रनगर के उप प्रभागीय वनाधिकारी मनमोहन बिष्ट के अनुसार क्षेत्र के 32 से अधिक गांवों में हेंवल धारा संरक्षण समितियां गठित की गईं। इनके माध्यम से पुनजीर्वीकरण कार्य में ग्रामीणों की भागीदारी की गई। काफी संख्या में कार्य मनरेगा के अंतर्गत भी हुए। तैयार संरचनाओं के रखरखाव का जिम्मा ग्रामीणों को दिया गया। आखिरकार रंग लाई पहल: हेंवल को पुनर्जीवन देने की पहल के लिए हुए प्रयास वर्ष 2021 में नजर आने लगे। आइएफएस मीणा बताते हैं कि वर्षा जल संरक्षण के उपायों के फलस्वरूप नदी की सभी जल धाराओं के जल स्तर में वृद्धि हुई। साथ ही निचले क्षेत्रों में जलस्रोत रीचार्ज हुए। इससे जंगल में हरियाली भी बढ़ी। यही नहीं, जो हेंवल नदी में गर्मियों में सूखने लगती थी, उसमें पर्याप्त मात्रा में पानी रहने लगा है। यह पहल माडल के रूप में सामने आई है। --आईएएनएस स्मिता/एएनएम

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