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धर्म संसद में दिए गए नफरत भरे भाषणों पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा : इसे रोकना चाहिए था

नई दिल्ली, 26 अप्रैल (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकारों की ओर से नफरत भरे भाषणों को रोकने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाने पर चिंता व्यक्त की। शीर्ष अदालत ने रुड़की में प्रस्तावित धर्म संसद को लेकर उत्तराखंड सरकार को फटकार लगाई। शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकारें कहती हैं कि वे निवारक उपाय कर रही हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ अलग होता है, क्योंकि निवारक उपायों पर शीर्ष अदालत के दिशानिर्देशों के बावजूद भड़काऊ भाषा की घटनाएं होती रहती हैं। अदालत ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव को राज्य में होने वाली धर्म संसद (धार्मिक सभा) के मद्देनजर किए गए सुधारात्मक उपायों को रिकॉर्ड में लाने का निर्देश दिया। न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने अपने आदेश में कहा, उत्तराखंड के वकील ने कहा कि सभी निवारक उपाय किए गए हैं और संबंधित अधिकारियों को इस बात का पूरा भरोसा है कि इस तरह के आयोजन के दौरान कोई अप्रिय स्थिति या अस्वीकार्य बयान नहीं दिया गया है। पीठ ने कहा, हम उत्तराखंड के मुख्य सचिव को अगली सुनवाई की तारीख से पहले अधिकारियों द्वारा किए गए सुधारात्मक उपायों को बताने का निर्देश देते हैं। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने बताया कि वे बुधवार को रुड़की में एक और धर्म संसद आयोजित कर रहे हैं। पीठ में न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार भी शामिल थे। पीठ ने आगे कहा कि यदि कोई घोषणा की गई है, तो राज्य सरकार को कार्रवाई करनी होगी और पूनावाला मामले में निर्धारित दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा। उत्तराखंड के वकील ने प्रस्तुत किया कि समुदायों ए और बी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है और निवारक उपायों के संदर्भ में एक कठिनाई है - यदि वे धर्म संसद आयोजित कर रहे हैं, तो टेक्स्ट पर जानकारी होना मुश्किल है। इस पर पीठ ने जवाब दिया, यदि स्पीकर एक ही है तो आप निवारक कार्रवाई करें। हमें वह न कहें जो हम नहीं बोलना चाहते हैं। इस पर वकील ने कहा, हम उपाय कर रहे हैं .. उन्हें हम पर विश्वास करने दें। हम कदम उठा रहे हैं। पीठ ने कहा कि यह मामला भरोसे का नहीं है, और वकील से कहा कि वह निवारक कार्रवाई के संबंध में आईजी और सचिव से बात करें। पीठ ने कहा, हम जो देखते हैं वह जमीन पर कुछ अलग है। निवारक उपायों पर बाद के निर्णयों के बावजूद, चीजें हो रही हैं। उत्तराखंड सरकार के वकील ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के वकील एक विशेष समुदाय पर फोकस कर रहे हैं, जिस पर सिब्बल से कहा, आप जिस समुदाय का समर्थन कर रहे हैं वह भी कुछ चीजें कर रहा है। जस्टिस खानविलकर ने कहा, यह किस तरह की दलील है? यह अदालत में बहस करने का तरीका नहीं है। पीठ ने दलीलें सुनने के बाद कहा कि सरकार जानती है कि निवारक उपाय क्या हैं और यदि ऐसा होता है, तो अदालत मुख्य सचिव को उपस्थित होने के लिए कह सकती है। पीठ ने अप्रैल में हुई एक धार्मिक बैठक के संबंध में हिमाचल प्रदेश के वकील से कहा, आपको इस गतिविधि को रोकना होगा। ये घटनाएं अचानक नहीं होती हैं, उनकी घोषणा पहले से ही कर दी जाती है। शीर्ष अदालत ने पहाड़ी राज्य सरकार से इसे रोकने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में एक हलफनामा दाखिल करने को कहा। शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 9 मई को निर्धारित की है। अदालत पत्रकार कुर्बान अली और वरिष्ठ अधिवक्ता अंजना प्रकाश द्वारा दायर एक आवेदन पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें धर्म संसद में कथित रूप से घृणास्पद भाषण देने वाले लोगों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की मांग की गई है। --आईएएनएस एकेके/एसजीके

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