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दुनिया चेन्नई के साउंड टेक विशेषज्ञों की तलाश में

मणिगंदन के.आर. चेन्नई, 30 अप्रैल (आईएएनएस)। ज्यादातर लोगों का मानना है कि जब सिनेमा, खासकर इसके तकनीकी पहलुओं की बात आती है, तो सबसे अच्छा केवल बॉलीवुड में ही होता है और देश के बाकी फिल्म उद्योग दूसरे स्थान पर आते हैं। हालांकि, कम ही लोग जानते हैं कि चेन्नई न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में अपने साउंड डिजाइन विशेषज्ञों के लिए काफी मशहूर है। दरअसल, यहां चेन्नई में यूरोपीय, अमेरिकी, ऑस्ट्रेलिया और चीनी समेत कई विदेशी फिल्मों का साउंड डिजाइन चुपचाप किया जाता है। मिलिए चेन्नई के जाने-माने साउंड डिजाइन विशेषज्ञों में से एक विजय रथिनम से, जो मजाक में कहते हैं कि वह मुख्य रूप से विदेशी फिल्मों के साउंड डिजाइन कर अपनी रोजी-रोटी कमाते हैं। उन्होंने कहा, एक साल में अगर हम 20 फिल्में करते हैं, तो 15-17 विदेशी फिल्में हैं। हम 3 से 5 भारतीय फिल्में करते हैं और इसमें सभी भाषाएं शामिल हैं। हमारी रोजी रोटी विदेशी फिल्मों से आती है। लेकिन यह सब कैसे शुरू हुआ? ग्लैमरगन विश्वविद्यालय से उन्नत संगीत में मास्टर्स डिग्री प्राप्त व्यक्ति ने कहा, फेसबुक सबसे बड़ी क्रांति थी। इंटरनेट के आने के बाद से मैंने कई अन्य साउंड डिजाइनरों के साथ जुड़ना शुरू कर दिया। साउंड एडिटर की देखरेख, आसपास के अन्य मिक्सर फेसबुक के माध्यम से दुनिया मैं कई अन्य देशों से फिल्में प्राप्त करने में सक्षम था। विजय रथिनम ने हाल के दिनों में उनके द्वारा किए गए कुछ कार्यो का विवरण देते हुए कहा, मैं अब रूस, चीन, ब्रिटिश, अमेरिका, ऑस्ट्रेलियाई और यूरोपीय फिल्मों पर काम कर रहा हूं। मैंने दो सीरिया की फिल्में भी की हैं। मैं काफी बड़ी फिल्मों के बारे में बात कर रहा हूं। आखिरी चीन की फिल्म जो मैंने की थी, वह एक लोकप्रिय चीन के स्टार टोनी लेउंग की थी। मैंने उनकी फिल्म फॉक्स हंट के लिए साउंड डिजाइन किया था। मैंने आयरन मास्क नामक फिल्म के साउंड डिजाइन पर काम किया, जिसमें जैकी चैन और अर्नोल्ड श्वार्जऩेगर थे। मुझे टेनेट पर काम करने का भी मौका मिला। मैंने टेनेट के भारतीय हिस्सों के साउंड रिकॉर्डिग पर काम किया। विजय ने कहा, मैंने निर्देशक ब्रायन डी पाल्मा की आखिरी फिल्म डोमिनोज पर साउंड प्रभाव संपादक के रूप में काम किया है, जो स्कारफेस और मिशन इम्पॉसिबल जैसी फिल्में बनाने के लिए जाने जाते हैं। साउंड इंजीनियर यहां कार्यो के आधार पर अलग-अलग भूमिका निभाते हैं। उन्होंने कहा कि कुछ फिल्मों में वे ध्वनि संपादन के कुछ पहलुओं को संभालते हैं जबकि कुछ अन्य में वे सभी पहलुओं को संभालते हैं। उदाहरण के लिए मैंने हाल ही में ऑपरेशन सीवॉल्फ नामक एक अमेरिकी स्वतंत्र अंग्रेजी फिल्म पर काम किया। यह द्वितीय विश्व युद्ध की फिल्म है, जिसकी कहानी 1944 के जर्मनी में सेट की गई है। संवाद रिकॉडिर्ंग को छोड़कर सबकुछ सेट पर शूट की गई थी। सारी शूटिंग चेन्नई में की गई। कहने का मतलब है कि इस फिल्म का पूरा ऑडियो पोस्ट प्रोडक्शन डायलॉग एडिटिंग से लेकर साउंड इफेक्ट एडिटिंग से लेकर साउंड डिजाइन तक चेन्नई में किया गया है। अब हम दो और बड़ी चीनी फिल्मों पर काम कर रहे हैं। तो, चेन्नई में ऐसा क्या है जो दूसरों के पास नहीं है जिससे दूसरे देशों के लोग यहां आते हैं? विजय ने कहा, एक समय था जब मैंने 2002 में एक प्रशिक्षु के रूप में शुरूआत की थी, तब एक स्टूडियो स्थापित करना महंगा था। लेकिन समय के साथ तकनीक इतनी विकसित हो गई है और चीजों को बहुत सस्ता बना दिया है। एक समय था जब किसी को इस उद्योग में सफल होने के लिए हैव और हैव नॉट्स के बीच अंतर करना था। उदाहरण के लिए, अगर आप एक अच्छा लेखक बनना चाहते हैं, तो आपके पास पहले एक अच्छी कलम और ढेर सारे कागज होने चाहिए ताकि आप लगातार लेखन का अभ्यास कर सकें और जो आप करते हैं उसमें अच्छे हो। इसी तरह, हमारे मामले में भी हम जिन कंप्यूटरों का उपयोग करते हैं, हम जिस तकनीक का उपयोग करते हैं वह लेखक के हाथ में कलम की तरह होती है। एक समय में कलम और कागज तक पहुंच उपलब्ध नहीं थी। लेकिन एक समय के बाद प्रौद्योगिकी ने यह शक्ति सभी के हाथों में दे दी है। प्रौद्योगिकी के अनुसार, कोई अंतर नहीं है। प्रौद्योगिकी ने पूरी दुनिया के लिए एक स्तर बना दिया है। खेल का मैदान इसलिए जब उपकरण समान होते हैं और हर किसी की पहुंच होती है, तो फर्क बस कौशल का पड़ता है। सीधे शब्दों में कहें, जब सभी के पास समान उपकरण होते हैं, तो जो चीज लोगों को अलग करती है वह वह कौशल है जो आपके पास है और सबसे बड़ा कौशल यह है कि आप साउंड के साथ फिल्म की कहानी का समर्थन कैसे करते हैं। --आईएएनएस एसएस/एएनएम

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