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वर्षा ऋतु के सुहाने मौसम में क्‍या कह रहा है स्कन्द पुराण

डॉ. मयंक चतुर्वेदी भारतीय वांग्मय में पुराण साहित्य का अपना महत्व है। आज के समय में यह कितने पुराने हैं यह तो नहीं बताया जा सकता किंतु वे जिस तरह से हर दौर में जीवन के लिए आवश्यक पर्यावरण की शुद्धता पर जोर देते दिखाई देते हैं, उसे पढ़कर अवश्य लगता है कि आज के आधुनिक दौर में जैसे कल की ही बात हो, जब उन्हें लिखा गया। इस समय प्रकृति अपने पर्यावरण को सहेजने के लिए कह रही है। वर्षा ऋतु आ चुकी है और मौसम में आकाश से टप-टप गिरती बूंदे, कहीं हमारे ध्यान को भंग कर रही हैं, कह रही है, मुझे सहज लो, अपने अंदर, बाहर चारो ओर ताकि पूरे वर्ष भर, हे मानव, फिर तुझे नहीं तरसना पड़े, एक-एक बूंद पानी के लिए। आकाश से गिरती पानी की बूंदों की इस आवाज को जब सुनते हैं तो अनायास ही भारतीय वांग्मय में स्कन्द पुराण याद आ जाता है। प्रश्न है कि पानी की गिरती इन बूंदों को सहेजने के लिए जो तत्व जरूरी है उसमें क्या सबसे अधिक महत्व का है? चिंतन के हर स्तर पर विचार करने के बाद जहां बुद्धि ठहरती है, वहां जो दृष्य दिखाई देता है, तब चारों ओर हरे भरे पेड़ ही दृष्टिगत होते हैं।, हां, पेड़ ही वह तत्व है जो मिट्टी को बहने से रोकते है, जल को अपने अंदर सोखते हैं, गहरे नीचे के पाताल में संचय करते हैं और आस-पास की सतत प्यास बुझाने का मुख्य कारण बनते हैं। यहां स्कन्द पुराण में तमाम कथाओं के बीच चल रही उपकथाओं में जो विशेष आज के पर्यावरण में उपजे संकट के बीच समझने वाला विषय है, वह यही पेड़ हैं। जिनसे कि इस पृथ्वी पर जीवन जागृत है। सीधी बात है पेड़ नहीं तो हवा में ऑक्सीजन नहीं, बिन ऑक्सीजन सब सून यानी कि हम सृष्टि एवं चराचर जगत की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। अब स्कन्द पुराण की चर्चा के बीच यहां स्कन्ध शब्द को समझते चलते हैं। रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार और विज्ञान ये पाँच स्कन्ध हैं। स्कन्ध वस्तुत: वस्तु, इन्द्रिय और विज्ञान इन तीनों के सन्निपात रूप प्रत्यय से उत्पन्न होते हैं, जो कि क्षणिक और नित्य परिवर्तनशील हैं। अर्थात प्रकृति सतत अपने को बदल रही है। वैसे आप स्कन्द पुराण के अतिरिक्त कोई भी पुराण लें, सभी में पाँच विषय एक तरह से समान रूप में दिखाई देंगे। सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर, वंशानुचरित। सर्ग का अर्थ है सृष्टि अर्थात् संसार की उत्पत्ति। प्रतिसर्ग का अर्थ है सम्पूर्ण चराचर संसार का प्रलय। वंश का अर्थ है विभिन्न देवर्षियों एवं मानवों की उत्पत्ति परम्परा। मन्वन्तर का अर्थ है सृष्टि में काल व्यवस्था और वंशानुचरित का अर्थ है विभिन्न वंशों में उत्पन्न मनुष्यों का वर्णन करना। निष्कर्ष यह है कि पुराणों में संसार की सृष्टि, उसके प्रलय अथवा उसकी अवान्तर सृष्टि, विभित्र वंशों का वर्णन और सृष्टि से लेकर प्रलय पर्यन्त काल गणना का वर्णन मुख्य रूप से होता है। सनातन धर्म के अन्तर्गत अनेक दार्शनिक सिद्धान्त, अनेक उपास्य देवता एवं मोक्ष या निर्वाण प्राप्ति के लिये अनेक मार्ग (जैसे ज्ञानमार्ग, योगमार्ग, भक्तिमार्ग और कर्ममार्ग) स्वीकृत किये गये हैं। सामान्य भारतीय मस्तिष्क इन विविध सिद्धांतों तथा मार्गों के प्रति सहिष्णु रहा है। किंतु इसी के साथ जो सभी में समानता बड़े स्तर पर है वह है प्रकृति का संरक्षण। स्कन्द पुराण आज के कलुषित वातावरण एवं शुद्ध वायु के अभाव में जीवन जी रहे मनुष्यों के लिए ही नहीं वरन सपूर्ण जीव जगत की दीर्घावस्था तथा स्वास्थ्य कामना के लिए आवश्यक संदेश व निर्देश दे रहा है। जिसे कि हमें वर्तमान संदर्भों में बहुत ही गहराई से समझने की जरूरत है । स्कन्द पुराण में एक श्लोक आया है । अश्वत्थमेकम् पिचुमन्दमेकम् न्यग्रोधमेकम् दश चिञ्चिणीकान्। कपित्थबिल्वाऽऽमलकत्रयञ्च पञ्चाऽऽम्रमुप्त्वा नरकन्न पश्येत्।। वर्तमान समय में जब शुद्ध वायु को मानव की सबसे अधिक जरूरत है तब इसके अर्थ एवं महत्व को सहज समझा जा सकता है। इसे अर्थ के स्वरूप में देखिए, अश्वत्थः यानी पीपल यह सौ प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है, पिचुमन्दः अर्थात नीम जोकि अस्सी प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है, न्यग्रोधः का अर्थ हुआ वटवृक्ष, अस्सी प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है। चिञ्चिणी से तात्पर्य है इमली जो अस्सी प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है, कपित्थः का अर्थ यहां कविट के पेड़ से है जोकि अस्सी प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड सोख लेता है। बिल्वः बेल का वृक्ष यह पिच्यासी प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है। आमलकः का अर्थ आवला पेड़ से है जिसकी क्षमता चौहत्तर प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड सोखने की है। आम्रः यानी कि आम है जो सत्तर प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है। कुल निष्कर्ष यह है कि आप यदि अच्छा वर्तमान और सुखद भविष्य चाहते हैं तो अपने आसपास बहुतायत में इन पौधों को लगाओ। श्लोक कहता है कि जो कोई इन वृक्षों के पौधों का रोपण करेगा, उनकी देखभाल करेगा उसे नरक अर्थात अत्यधिक बुरा वातावरण जहां सहज रहना संभव नहीं के दर्शन नहीं करना पड़ेंगे। आज शुद्ध वायु के अभाव में मनुष्य अपनी दिनप्रतिदिन प्रतिरोधक क्षमता खोता जा रहा है । इस अर्थ में यह स्कन्ध पुराण हमें आज बहुत कुछ सीख दे रहा है। पूरे पुराण में कथाओं में उपकथाएं चलती हैं, हर कथा आज भी हमें सीख दे रही है, सुधर जाओ अन्यथा भविष्य वर्तमान से भी बहुत भयानक होगा। जान लो यह कि पीपल, बड़ और नीम जैसे वृक्ष रोपना बंद होने से ही सूखे की समस्या सर्वत्र पैदा हुई है। इन्हें फिर से लगाओ, ये वृक्ष वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाते हैं साथ ही धरती के तापनाम को भी कम करते हैं। हममें से अनेक हैं जिन्होंने इन वृक्षों के पूजने की परम्परा को अन्धविश्वास मानकर दूर होना जारी रखा है। वट सावित्री व्रत, आंवला एकादशी, तुलसी देव उठनी एकादशी जैसे कई दिवस भारतीय संस्कृति में इन पेड़ पौधों के लिए ही समर्पित हैं। कहना होगा कि कोरोना महामारी के महासंकट के बीच यदि भविष्य में हमें स्वस्थ रहना है तो अंतत: इन्हीं पेड़ों के शरणागत होना होगा। आगामी वर्षों में प्रत्येक 500 मीटर पर एक-एक पीपल, बड़, नीम इत्यादि जिनके नाम स्कन्द पुराण में आए हैं उनका वृक्षारोपण किया जाए तो ही हमारा भविष्य सुरक्षित है। वास्तव में ऐसे में ही भारत प्रदूषणमुक्त होने की स्थिति में कई वायरसों से अपने आप ही निपट लेगा। इसलिए भविष्य में भरपूर मात्रा में नैसर्गिक ऑक्सीजन मिले इसके लिए आज से ही चलो हम पीपल, बड़, बेल, नीम, आंवला, आम जैसे वृक्षों को लगाने का अभियान आओ मिलकर आरंभ करें। (लेखक हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध हैं।)

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