नई दिल्ली, हि.स। देश-दुनिया के इतिहास में 28 जनवरी का इतिहास तमाम अहम वजह से दर्ज है। मगर इस तारीख का खास महत्व भारत में बनने वाली एचएमटी घड़ी से है। इस ब्रॉन्ड की घड़ियों की पहली फैक्टरी की स्थापना 1961 में 28 जनवरी को बेंगलुरु में हुई थी। अब तो बहुत कम लोग घड़ी का इस्तेमाल करते हैं।
90 के दशक में HMT लोगों की बनी शान
डिजिटलाइजेशन की वजह से घड़ी की जगह अब मोबाइल फोन ने ले ली है। चाबी वाली घड़ियों की जगह अब बाजार में एनालॉग वॉच प्रचलन में आ गई है। यह कहा जा सकता है कि बदलते समय के साथ ही घड़ियों का रूप भी काफी बदल चुका है। घड़ियों का एक दौर ऐसा भी था, जब घड़ी मतलब सिर्फ एचएमटी हुआ करता था। 90 के दशक का वह दौर आज भी जिन लोगों को याद होगा, वह जानते होंगे कि कैसे उस जमाने में एचएमटी लोगों की शान बन गई थी।
जब शुभ अवसर पर दी जाती थी HMT
वह ऐसा दौर था जब परीक्षा पास करने पर बच्चों को उपहार में एचएमटी घड़ी दी जाती थी। शादियों में दूल्हे को एचएमटी घड़ी ही देने का रिवाज बन गया था और ऑफिस से रिटायर होने पर स्मृति चिह्न के तौर पर भी एचएमटी घड़ी ही दी जाती थी। अब एचएमटी सिर्फ इतिहास और गुजरा हुआ दौर बन कर रह गई है। करीब 50 सालों तक लोगों की कलाई में बंधकर शोभा बढ़ाने वाली एचएमटी घड़ी अब बहुत कम लोगों के हाथों में दिखती है।
1993 से HMT का बुरा समय शुरु हुआ
1970 में एचएमटी ने सोना और विजय ब्रांड के नाम के साथ क्वार्ट्ज घड़ियों को बनाना शुरू किया था। इस ब्रॉन्ड ने 3 दशक तक देश में राज किया है। कंपनी की टैगलाइन 'देश की धड़कन' हुआ करती थी। 1993 में जब दुनिया के लिए भारतीय बाजार को खोल दिया गया, तभी से एचएमटी का बुरा समय शुरू हो गया था। तब भी कंपनी को यह समझने में देर हो गई समय देखने के साथ ही अब लोगों के लिए घड़ी फैशन स्टेटमेंट भी बन गई थी। तब भी समय के साथ एचएमटी घड़ी में कोई बदलाव नहीं किया गया। इसके बाद से कंपनी की माली हालत खराब होने लगी। यहीं से इसका बुरा समय शुरू हुआ। लगातार घाटे की वजह से आखिरकार सरकार ने इसे बंद करने का फैसला लिया।
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