Lok Sabha Poll: अखिलेश यादव ने कन्नौज सीट से भरा नामांकन, पार्टी ने कहा- उनका मिशन PM मोदी को हराना
नई दिल्ली, रफ्तार डेस्क। समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव ने आज उत्तर प्रदेश की कन्नौज लोकसभा सीट से नामांकन भर दिया है। उन्होंने इस बीच कहा कि उनका मुकाबला BJP उम्मीदवार सुब्रत पाठक से नहीं है जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से है। उत्तर प्रदेश में सपा कांग्रेस के साथ मिलकर इंडिया गठबंधन में मिलकर चुनाव लड़ रही है।
अखिलेश यादव लड़ेंगे कन्नौज लोकसभा सीट से चुनाव
2024 के चुनाव समर में समाजवादी पार्टी का अदल-बदल जारी है। इस बार ये अदल-बदल अखिलेश यादव के परिवार में ही हो गया है। अखिलेश यादव ने कन्नौज लोकसभा सीट से खुद चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। इस सीट पर पहले अखिलेश यादव के भतीजे और लालू प्रसाद यादव के दामाद तेज प्रताप यादव को टिकट देने का ऐलान किया गया था। हालांकि, ऐलान के 48 घंटे के अंदर ही उनकी जगह अखिलेश के चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी गई है।
पहले भी सीटों में हुई अदला-बदली
सपा महासचिव और राज्यसभा सांसद राम गोपाल वर्मा ने जानकारी दी थी कि अखिलेश 25 अप्रैल को अपना नामांकन दाखिल करेंगे। इस चुनाव में ये पहली बार नहीं है जब सपा ने किसी सीट पर अपना प्रत्याशी बदला हो। इससे पहले मेरठ, बदायूं, गौतम बुद्धनगर, मिश्रिख और मुरादाबाद सीट पर पार्टी अपना उम्मीदवार बदल चुकी है।
खुद मैदान में क्यों उतरे अखिलेश
पहले खबर आ रही थी कि अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। इसी वजह से इस सीट से तेज प्रताप को टिकट दिया गया था। हालांकि, स्थानीय कार्यकर्ता इससे नाराज़ हो गए। रिपोर्ट्स की मानें तो पार्टी के स्थानीय नेताओं के डेलिगेशन ने अखिलेश से खुद चुनाव लड़ने की अपील की थी। कन्नौज सपा का गढ़ माना जाता है और सपा किसी भी कीमत पर इसे खोना नहीं चाहती है। माना जा रहा है कि इसी वजह से तेज प्रताप को हटाकर अखिलेश खुद मैदान में उतरे हैं।
क्या है कन्नौज सीट का इतिहास?
कन्नौज सीट साल 1998 से 2019 तक सपा के पास थी। 98 के चुनाव में सपा के प्रदीप यादव ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी। 99 में मुलायम सिंह यादव इस सीट से जीते। 99 में मुलायम सिंह यादव दो सीटों से चुनाव जीते थे संभल और कन्नौज। उन्होंने संभल सीट रखी और कन्नौज से इस्तीफा दे दिया। साल 2000 में इस सीट पर हुए उपचुनाव में अखिलेश यादव ने जीत दर्ज की। इसके बाद अखिलेश ने 2004 और 2009 के चुनाव में ये सीट अपने नाम की थी। साल 2012 में जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने तब उपचुनाव में उनकी पत्नी डिंपल यादव इस सीट से लड़ीं। 2014 के चुनाव में भी डिंपल ने इस सीट से जीत दर्ज की थी। हालांकि, 2019 में ये सीट बीजेपी के खाते में चली गई थी।
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