नई दिल्ली, रफ्तार डेस्क। भ्रष्टाचार एक ऐसा अपराध है जिसने देश को अंदर ही अंदर से ऐसे खोखला कर दिया जैसे दीमक कागज को करता है। आज के चुनावी किस्से में हम बात करेंगे उस किस्से कि जब पुलिस वालों ने देश के प्रधानमंत्री को भी नहीं छोड़ा। उसके बाद जो हुआ उससे पुरे पुलिस थाने में बवाल मच गया।
किसान से पुलिस वाले ने मांगी रिश्वत
यह बात उस समय की है, शाम 6 बजे का वक्त था एक किसान कुर्ता और सफेद धोती पहने इटावा पुलिस थाने में बैल चुराने की शिकायत कराने के लिए पहुंचा। साल था 1977, उस आदमी की ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया। बार-बार विनती करने के बाद भी कोई चोरी की शिकायत लिखने के लिए नहीं माना। हार मानकर निराश होकर किसान बाहर आया। किसान वापस घर की ओर जाने के लिए आगे बढ़ा तभी पीछे से एक पुलिस वाले ने आकर उसे रोका और शिकायत लिखने के लिए मंजूर हुआ लेकिन उसके बदले में पुलिस वाले ने खर्चा-पानी के नाम पर 35 रुपये की रिश्वत मांगी। दोनों में समझौता तय हुआ। इसके बाद किसान ने हस्ताक्षर करने को कहा तो मुंशी ने रोजनामचा आगे बढ़ा दिया, जिस पर प्राथमिकी का ड्राफ्ट लिखा था।
कौन था वो किसान?
इसके बाद किसान ने हस्ताक्षर करने को कहा तो मुंशी ने रोजनामचा आगे बढ़ा दिया, जिस पर प्राथमिकी का ड्राफ्ट लिखा था। किसान ने हस्ताक्षर में लिखा- 'चौधरी चरण सिंह' और मैले कुर्ते की जेब से मुहर निकाल कर कागज पर ठोंक दी, जिस पर लिखा था "प्रधानमंत्री, भारत सरकार"। इसके बाद जो हुआ उसे पूरा थाना हिल गया। पूरे थाने में हड़कंप मच गया। दरअसल, हुआ ये था कि प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को कुछ शिकायतें मिली थीं। चौधरी चरण सिंह मूल रुप से पश्चिम उत्तर प्रदेश रुप से थे। इटावा भी पश्चिम उत्तर प्रदेश में आता है, प्रधानमंत्री पुलिस थाने में निरीक्षण के लिए गए थे। इसलिए उन्होंने ये तरीका अपनाया। मामले की सच्चाई बाहर आने के बाद पूरे थाने को निलंबित कर दिया।
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