DK Shivakumar
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Karnataka News: 'डर गए थे सिद्धारमैया, मैं होता तो घुटने नहीं टेकता...'DK शिवकुमार का तंज

नई दिल्ली, रफ्तार न्यूज डेस्क। कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार एक बार फिर आपने बयान को लेकर चर्चा में है। आपको बता दें कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद डीके शिवकुमा और सिद्धारमैया के बीच मुख्यमंत्री बनने की होड़ किसी से छिपी नहीं है। अब उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने एक कार्यक्रम के दौरान विवादास्पद होब्बल स्टील फ्लाईओवर परियोजना पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि सिद्धारमैया प्रदर्शनकारियों से डर गये थे। उन्होंने कहा अगर सिद्धारमैया की जगह मैं होता तो इन प्रदर्शनें की परवाह ना करता सिर्फ काम करता।

शिवकुमार ने क्या कहा?

विधानसभा में केम्पेगौड़ा जयंती कार्यक्रम में शिवकुमार ने कहा सिद्धारमैया सरकार में, वे एक स्टील ब्रिज बनाना चाहते थे। इस प्रोजेक्ट को लेकर हंगामा खड़ा हुआ और आलोचना होने लगी। कहा गया कि प्रोजेक्ट में रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार हुआ है। इस पर मुख्यमंत्री डर गए। उन्होंने और केजे जॉर्ज (तत्कालीन बेंगलुरु शहर विकास मंत्री) ने इस प्रोजेक्ट के लिए मना कर दिया। अगर यहां मैं होता, तो मैं नहीं डरता। चाहे कुछ भी होता, मैं प्रदर्शनकारियों के शोरशराबे के सामने घुटने नहीं टेकता और प्रोजेक्ट पर काम करता। यहां शिवकुमार बसवेश्वर सर्कल से हेब्बल जंक्शन तक 6.7 किलोमीटर लंबे स्टील फ्लाईओवर का जिक्र कर रहे थे।

सैटेलाइट टाउन के बारे में सोच रहे- शिवकुमार

शिवकुमार ने कहा, मैं अब भी बेंगलुरु के विकास के लिए कुछ फैसले लूंगा। हल्ला मचाने वालों को चिल्लाने दो, अंडे तैयार रखो और प्रदर्शनकारियों को धरना देने दो। मैं आगे बढ़ता रहूंगा। यह एक अवसर है कि हमें कुछ पीछे छोड़ना होगा। उन्होंने कहा कि जब केंगल हनुमंतैया नगरपालिका अध्यक्ष थे तब शहर की आबादी 16 लाख थी। अब 1.60 करोड़ लोग बेंगलुरु में रहते हैं। शिवकुमार ने कहा कि वह शहर के लिए सैटेलाइट टाउन के बारे में सोच रहे हैं। उन्होंने कहा, केंगेरी और येलहंका में सैटेलाइट टाउन के बाद कुछ भी योजना नहीं बनाई गई। अब वह शहर की सड़कों के बारे में भी कुछ करना चाहते हैं।

क्या था ममला?

दरअसल, बसवेश्वर सर्कल से हेब्बल जंक्शन तक 6.7 किलोमीटर लंबे स्टील फ्लाईओवर का निर्माण होना था, जिसकी लागत 1761 करोड़ रुपये थी और इसके जरिए हवाई अड्डे से शहर की कनेक्टिविटी में सुधार होना था। इस परियोजना में 800 से अधिक पेड़ काटने पड़ते। सिद्धारमैया सरकार ने 2017 में, नागरिकों के उग्र विरोध के कारण इस परियोजना को छोड़ दिया था।