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नई-दिल्ली

Electoral Bond: क्या होता है इलेक्टोरल बॉन्ड, कैसे हुई इसकी शुरुआत? सुप्रीम कोर्ट ने इसमें क्यों लगाई रोक!

नई दिल्ली, रफ्तार डेस्क। सुप्रीम कोर्ट ने एलेक्ट्रोरल बांड(Electoral Bond) की योजना को सख्त निर्देश देते हुए रद्द कर दिया है। केंद्र सरकार ने बड़े सोच विचार से यह बांड बनाने की घोषणा 2017 में की थी और 2018 में इस बांड को लागू कर दिया था। केंद्र सरकार ने उस समय इसको लेकर खूब चर्चाएं की थी। अब ऐसा क्या हुआ कि सुप्रीम कोर्ट को एलेक्ट्रोरल बांड को लेकर इतना बड़ा एक्शन लेना पड़ा। इससे लेकर सारा मामला जानेंगे हम इस खबर में।

गुमनाम चुनावी बांड सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का साफ उल्लंघन हैं

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा लाये गए एलेक्ट्रोरल बांड को यह कहकर रद्द कर दिया कि काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से आम आदमी के अधिकार 'सूचना के अधिकार' का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि गुमनाम चुनावी बांड सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का साफ उल्लंघन हैं। इस मामले को समझने के लिए सबसे पहले एलेक्ट्रोरल बांड को समझना जरुरी है।

क्या होता है चुनावी बांड( इलेक्टोरल बॉन्ड)?

चुनावी बांड एक ऐसा बांड होता है, जिसके माध्यम से राजनीतिक दलों तक चंदा पहुंचता है। इस बांड को एक तरह का वचन पत्र भी कह सकते हैं। कोई भी व्यक्ति और संस्था या कंपनी आदि अपनी पसंदीदा पॉलिटिकल पार्टी को गुमनाम तरीके से चंदा दे सकती है। इस बांड को भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की चुनिंदा शाखाओं से खरीदा जाता था। किसी का भी नाम सार्वजनिक नहीं किया जाता है। जो कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19(1)(ए) का साफ उल्लंघन हैं।

जिनको चुनाव आयोग ने अपनी मान्यता दे रखी थी

भारत सरकार ने वर्ष 2017 में इलेक्टोरल बॉन्ड लाने की घोषणा की थी और अगले ही साल जनवरी 2018 में इसे लागू कर दिया था। SBI के चुनिंदा शाखाओं को इस बांड को बेचने के लिए अधिकृत किया था। चंदा देने के लिए, इस योजना के तहत एक हजार रूपए, दस हजार रूपए, एक लाख रूपए से लेकर एक करोड़ तक के मूल्यों के इलेक्टोरल बॉन्ड उपलब्ध थे। चंदा लेने के लिए वही दल मान्य थे, जिनको चुनाव आयोग ने अपनी मान्यता दे रखी थी।

जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराते हुए रद्द कर दिया है

याचिकाकर्ताओं का कहना था कि देश और विदेशो से मिलने वाला चंदा गुमनाम फंडिंग है। जिससे चुनावी भ्रष्टाचार को बहुत बड़े स्तर पर वैध बनाकर भ्रष्टाचार को छुपाया जा रहा है। यह बांड नागरिकों के सबसे बड़े अधिकार सूचना के अधिकार का उल्लंघन करता है। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराते हुए रद्द कर दिया है।

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