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कोरोना की डरावनी और सुखद हकीकत का दस्तावेज

भोपाल, 20 फरवरी (आईएएनएस)। कोरोना महामारी की पहली और दूसरी लहर के दौरान देश ने क्या भोगा और उससे निपटने के लिए प्रशासनिक अमले को किन हालातों का सामना करना पड़ा होगा, उसकी कल्पना करना किसी के लिए भी आसान नहीं है,। हालांकि, उस दौरान क्या हुआ और उससे कैसे निपटा गया, अब इसे करीब से जाना जरुर जा सकता है क्योंकि मध्य प्रदेश के वरिष्ठ भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी तरुण पिथोड़े ने द बेटल अगेंस्ट कोविड, डायरी ऑफ ए ब्यूरोकेट शीर्षक से एक किताब लिखी है, जो कोरोना रुपी महामारी की भयावहता को बयां कर रही है। कोरोना महामारी की पहली और दूसरी लहर का मंजर याद करते ही रुह कांप उठती है, क्योंकि उस दौर में जो तस्वीरें सामने आई वे आज भी सिहरन पैदा कर जाती है। सिर पर बोझा रखे घरों को वापस लौटते लाखों प्रवासी मजदूर और उनके पैरों में पड़े छालों की याद मन को भावुक कर देते है और वहीं जब अपने ही अपनों का अंतिम संस्कार करने तक से कतराते दिखे तो मन में कई सवाल उठे। ऐसे ही सवालों का जवाब दे रही है सिविल सप्लाई कॉपोर्रेशन के एमडी तरुण पिथोड़े की अंग्रेजी में लिखी गई 224 पेज की द बेटल अगेंस्ट कोविड, डायरी ऑफ ए ब्यूरोकेट पुस्तक। पिथोड़े जब कोरोना का कहर था तब भोपाल के कलेक्टर हुआ करते थे। आईएएस पिथोड़े ने अपनी पुस्तक में कोविड संक्रमण के दौरान बतौर भोपाल कलेक्टर पदस्थ रहते हुए स्वयं के अनुभवों के साथ-साथ देश के लगभग आठ राज्यों के प्रशासनिक अधिकारियों के अनुभवों को भी शामिल किया है। ब्लूम्सबरी प्रकाशन द्वारा यह किताब प्रकाशित की गई है। कोरोना की पहली लहर के दौरान वरिष्ठ आईएएस अफसर तरूण पिथोड़े भोपाल कलेक्टर के पद पर पदस्थ थे। प्रदेश में भोपाल हॉट स्पॉट बन गया था, यहां कोविड संक्रमण को नियंत्रित करने एवं वैश्विक महामारी को रोकने के लिए उन्होंने रात दिन एक कर दिया था। संक्रमण के दौरान की प्रत्येक परिस्थिति को उन्होंने अत्यंत करीब से देखा था। पिथोड़े के मुताबिक कोविड के खिलाफ लड़ाई में ब्यूरोकेट्स की भूमिका एवं प्रबंधन को रेखांकित करने के लिए उन्होंने स्वयं के अनुभवों, रणनीति प्रबंधन के साथ ही मप्र, महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात, असम, बिहार, उप्र के ब्यूरोकेट्स से चर्चा कर कोरोना संक्रमण की पहली, दूसरी लहर में उनके अनुभवों, रणनीति को भी पुस्तक में शामिल किया है। वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी पिथोड़े पुस्तक लिखने की वजह का जिक्र करते हुए कहा है कि, कोरोना महामारी के दौरान अधिकारियों ने जो काम किया है उसे आमजन के सामने लाने के साथ यह बताना कि उस समय प्रशासनिक अमले के अलावा आमजन के सामने किस तरह की समस्याएं थी। इन समस्याओं से सरकारी अमले ने कैसे निपटा। वास्तव में आमजन व प्रषासनिक अमले ने हालात से निपटने में जिस तरह का काम किया उसका दस्तावेज है यह पुस्तक। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए पिथोड़े कहते है कि भविष्य में जो प्रशासनिक अधिकारी आएंगें, जो प्रशासनिक सेवा में आने की तैयारी कर रहे है, उनके सामने रिफरेंस रहे। कोरोना एक आपदा थी, इसमें किस तरह का प्रबंधन किया गया, आने वाले समय में जब आपदा आए तो इससे कैसे निपटा जाए, इन सारी बातों को ध्यान में रखकर यह पुस्तक लिखी गई है। कोरोना महामारी की पहली और दूसरी लहर के दौरान सामने आए घटनाक्रमों को याद कर पिथोड़े कहते है कि ,कई वाक्ये ऐसे आए जब लोगों को कोई रास्ता नहीं सूझता था और प्रषासनिक अमला उनकी मदद के लिए आगे आए। एक वाक्या है जब एक महिला का बेटा ही अपनी मां की अंत्येष्टि करने को तैयार नहीं था, तब मैने अंतिम संस्कार करने का फैसला लिया, मगर एक तहसीलदार ने मुझे रोकते हुए खुद उस कार्य को किया। बाद में पारंपरिक अन्य संस्कार उसी तहसीलदार ने किए। इस तरह की अनेकों घटनाएं है जब परिजन पीछे हट गए और प्रषासनिक अमले ने आगे आकर अपनी भूमिका निभाई।साथ ही सामाजिक लोगों ने बढ़-चढ़कर सहयोगात्मक भूमिका निभाई। इस पुस्तक में प्रवासी श्रमिकों की तकलीफों, डॉक्टरों, पुलिस अधिकारियों, नागरिकों द्वारा अपनी जान की बाजी लगाकर कोविड से संघर्ष की कहानियों का समावेश किया गया है। पिथोड़े के मुताबिक कोविड के खिलाफ लड़ाई का यह एक अमूल्य रिकार्ड है। उन्होंने एक प्रशासक के साथ व्यक्ति के रूप में कोरोना संक्रमण के दौर में हुए अनुभवों को भी पुस्तक में साझा किया है। उन्हें उम्मीद है कि यह पुस्तक नए प्रशासनिक अधिकारियों के साथ समाज के उन जागरुक लोगों के लिए काफी मददगार होगी जो कभी आपदा के समय मुकाबले को तैयार होंगे। --आईएएनएस एसएनपी/आरजेएस

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