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दिल्ली हाईकोर्ट ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर फैसला सुरक्षित रखा

नई दिल्ली, 17 मई (हि.स.)। दिल्ली हाईकोर्ट ने सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच ने दोनों पक्षों की दलीले सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील सिद्दार्थ लूथरा ने कहा कि वर्तमान संकट के माहौल में निर्माण में लगे मजदूरों का स्वास्थ्य खतरे में है। उन्होंने कहा कि 4 मई को जब याचिका दायर की गई थी उस समय दिल्ली में स्थिति काफी भयानक थी। उन्होंने कहा कि ये अच्छी बात नहीं है कि लोगों की तकलीफों के लिए संवैधानिक कोर्ट में याचिका दायर करना पड़े। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य का अधिकार मौलिक अधिकार है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को उद्धृत करते हुए कहा कि मानव जीवन की रक्षा संविधान की धारा 21 के तहत सरकार का दायित्व है। लूथरा ने कहा कि महामारी की वजह से अस्पतालों बेड नहीं मिल रहे हैं, दवाईयां और ऑक्सीजन नहीं मिल रही हैं। उन्होंने कहा कि दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकार ने 6 अप्रैल को एक आदेश जारी कर आवश्यक सेवाओं को छोड़कर सभी सेवाओं के लिए वीकेंड कर्फ्यु लगा दिया। 15 अप्रैल को भी ये वीकेंड कर्फ्यू लगाया गया। दिल्ली में कोरोना का संक्रमण बढ़ने के बाद 19 अप्रैल को सभी चीजों पर कर्फ्यू लगा दिया गया। लेकिन सेंट्रल विस्टा को निर्माण की अनुमति दे दी गई। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि शापूरजी पलोनजी ने सेंट्रल विस्टा के लिए काम कर रहे मजदूरों, निरीक्षण स्टाफ और मैटेरियल के परिवहन की अनुमति मांगी। तब लूथरा ने कहा कि केंद्र के हलफनामे में अनुमति देने संबंधी कोई दस्तावेज का जिक्र नहीं किया गया है। लूथरा ने केंद्र सरकार की उस दलील को गलत बताया जिसमें कहा गया है कि निर्माण स्थल पर मजदूरों के लिए चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हैं और वहां कोरोना प्रोटोकॉल का पालन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने झूठा हलफनामा दाखिल किया है। लूथरा ने एक फोटो दिखाया और कहा कि इसमें न तो बेड है, न बिछावन है और न ही उस पर कोई व्यक्ति है। उन्होंने कहा कि 24 अप्रैल को कोई टेंट नहीं लगा है। सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने कहा कि ये बहस का विषय नहीं है कि जीवन का अधिकार संविधान की धारा 21 का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को कई चुनौतियां हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मिलीं। कई दिनों तक चली सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रोजेक्ट को मंजूरी दी। इसका निर्माण काफी दिनों से चल रहा है। उन्होंने अप्रैल महीने का एक नोटिफिकेशन दिखाया जिसमें निर्माण कार्य पर कोई रोक की बात नहीं कही गई थी। उसके बाद रेस्टोरेंट और दूसरे कामों की अनुमति दी गई। मेहता ने कहा कि 19 अप्रैल को निर्माण कार्य को सीमित करने का आदेश जारी किया गया। लेकिन ये सीमा उनके लिए ही लागू की गई थी जिसमें निर्माण स्थल पर मजदूर नहीं रह रहे थे। उन्होंने कहा कि जनहित याचिका की आड़ में ये सेंट्रल विस्टा को रोकने के लिए याचिका दायर की गई है। उन्होंने कहा कि जिस भी याचिकाकर्ता को मजदूरों के स्वास्थ्य की चिंता होगी वह याचिका वापस ले लेगा। मेहरा ने कहा याचिकाकर्ता ने जो फोटो दिखाए हैं उसमें तथ्यों को छुपाया गया है। निर्माण स्थल पर मजदूरों को स्वास्थ्य सुविधाएं हैं। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता ने दूसरे निर्माण कार्यों में काम कर रहे मजदूरों की स्थिति पर कोई सवाल नहीं उठाया है। सेंट्रल विस्टा का निर्माण कर रहे शापूरजी पलोनजी की ओर से वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह ने कहा कि ये याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। याचिकाकर्ताओं को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पता है। लेकिन उसके बावजूद ये याचिका दायर कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ये याचिका अखबारों की खबरों के आधार पर हैं। उन्होंने कहा कि जिन दस्तावेजों के आधार पर याचिका दायर की गई है वो दाखिल ही नहीं की गई है। याचिकाकर्ता यह कहकर सनसनी पैदा करना चाहते हैं कि सेंट्रल विस्टा कोरोना हब है और लोग मर रहे हैं। मनिंदर सिंह ने कहा कि जब याचिकाकर्ताओं को ये पता चल गया कि निर्माण स्थल पर मजदूर रह रहे हैं और उनका परिवहन नहीं किया जा रहा है तो उन्हें याचिका वापस ले लेनी चाहिए थी। मनिंदर सिंह ने कहा कि आधे राजपथ की खुदाई हो चुकी है। अगर उसमें पानी भरने दिया गया तो उसके आसपास के इलाके इसमें आ गिरेंगे। अगर हम गणतंत्र दिवस मनाना चाहते हैं तो हम इसमें देरी नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस निर्माण के लिए कोरोना से संबंधित सभी औपचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं। केंद्र सरकार की तरफ से दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकार के आदेश के मुताबिक दिल्ली में लॉकडाउन से पहले से मजदूर काम कर रहे हैं। निर्माण कार्य में लगे सभी मजदूरों का हेल्थ इंश्योरेंस है और निर्माण स्थल पर रहने समेत कोरोना से बचाव संबंधी तमाम सुविधाएं भी हैं। केंद्र सरकार ने हलफनामे में कहा है कि याचिकाकर्ता ने तथ्यों को छिपाया है। हलफनामे में कहा गया है कि दिल्ली में 16 स्थानों पर निर्माण गतिविधियां और परियोजनाएं चल रही हैं और फिर भी याचिकाकर्ता ने केवल सेंट्रल विस्टा पर भी याचिका दाखिल की है। इससे उनके इरादे का पता चलता है। केंद्र सरकार ने याचिका को जुर्माने के साथ खारिज करने की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले 5 जनवरी को सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी थी। तीन जजों की बेंच ने 2-1 के बहुमत से फैसला सुनाते हुए सेंट्रल विस्टा के लिए जमीन का डीडीए की तरफ से लैंड यूज बदलने को सही करार दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण क्लियरेंस मिलने की प्रक्रिया को सही कहा था। हिन्दुस्थान समाचार/संजय/सुनीत

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