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चैत्र नवरात्र: पांचवें दिन स्कंद माता और विशालाक्षी गौरी का श्रद्धालुओं ने किया दर्शन पूजन

-लॉकडाउन के चलते मंदिर के निकट रहने वाले श्रद्धालु ही कर पाये दर्शन पूजन माता रानी से कोविड से मुक्ति दिलाने की लगाई गुहार, मंदिरों में पसरा सन्नााटा वाराणसी, 17 अप्रैल (हि.स.)। चैत्र नवरात्र के पांचवें दिन शनिवार को श्रद्धालुओं ने जैतपुरा स्थित बागेश्वरी देवी (स्कंद माता) और मीरघाट स्थित विशालाक्षी गौरी के दरबार में सुबह हाजिरी लगाई। जिले में शनिवार से लागू दो दिवसीय साप्ताहिक लॉकडाउन के चलते दोनों मंदिरों में श्रद्धालु नर-नारी नहीं पहुंच पाये। दोनों मंदिरों के आसपास रहने वाले नाम मात्र के श्रद्धालुओं ने माता रानी के दरबार में हाजिरी लगाई। दरबार में दर्शन पूजन के बाद श्रद्धालुओं ने पराअम्बा से वैश्विक महामारी कोरोना से मुक्ति दिलाने और घर परिवार में श्री समृद्धि, सुख-शान्ति के लिए अर्जी लगाई। नवरात्र के पांचवे दिन जैतपुरा स्थित स्कंदमाता जो बागेश्वरी देवी के रूप में विराजित है, के विग्रह को पंचामृत स्नान कराने के बाद मंदिर के पुजारियों ने माता रानी के विग्रह को नये वस्त्र पहना कर गुलाब,गुड़हल,बेला आदि पुष्पों से श्रृंगार रचाया। इसके बाद वैदिक मंत्रोच्चार के बीच पूजन-अर्चन, भोग आरती के बाद मंदिर का पट आम लोगों के लिए खोल दिया। कोरोना काल में साप्ताहिक लॉकडाउन के चलते मंदिर में नाम मात्र के ही श्रद्धालु पहुंच पाये। इन श्रद्धालुओं को कोविड प्रोटोकाल का पालन करा कर मंदिर में दर्शन पूजन की अनुमति मिली। बताते चले बागेश्वरी माता को विद्वया की देवी माना जाता है। यहां नवरात्र में श्रद्धालुओं के अलावा बड़ी संख्या में विद्वयार्थी भी दर्शन पूजन के लिए आते है। माना जाता है कि माता रानी भक्तों की मुरादों को पुरा करती है। मंदिर के पुजारी बागेश्वरी मिश्रा ने बताया कि माता से मानव कल्याण और वैश्विक महामारी कोविड से मुक्ति दिलानें के लिए प्रार्थना किया है। माता मानव समाज की रक्षा करेगी। भक्तों की मनोकामना पूरा करेंगी। उन्होंने बताया कि भगवान स्कंद की माता होने के कारण मां के इस स्वरूप को स्कंदमाता नाम से जाना जाता है। मां कमल के आसन पर विराजमान हैं। भगवान स्कंद मां के विग्रह में बालरूप में गोद में बैठे हैं। भगवान स्कंद देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। स्कंदमाता की उपासना से बालरूप स्कंद भगवान की उपासना भी स्वमेव हो जाती है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण मां की उपासना से अलौकिक तेज एवं कांति की प्राप्ति होती है। उधर, मीरघाट स्थित विशालाक्षी गौरी मंदिर में भी दर्शन पूजन के लिए गलियों के रास्ते आसपास के लोग पहुंचे और विधि विधान से दर्शन पूजन किया। काशी में ऐसी मान्यता है कि देवी विशालाक्षी के दर्शन से जन्म जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं। देवी का कमल के पुष्प अति प्रिय हैं। काशी के नव शक्ति पीठों में मां विशालाक्षी का महत्वपूर्ण स्थान है। मान्यता के अनुसार इस स्थान पर मां सती का कर्ण-कुण्डल और उनका एक अंग गिरा था। जिससे इस स्थान की महिमा और माहत्म्य दोनों है। विशाल नेत्रों वाली मां विशालाक्षी का यह स्थान मां सती के 51 शक्ति पीठों में से एक है। इनका महत्व कांची की मां (कृपा दृष्टा) कामाक्षी और मदुरै की (मत्स्य नेत्री) मीनाक्षी के समान है। शास्त्रों के अनुसार काशी के कर्ता-धर्ता बाबा विश्वनाथ स्वयं मां विशालाक्षी के मंदिर में विश्राम करते हैं। हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर

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