ज्यादा धन-दौलत दुख का कारण बनता हैः मुनिश्री विहर्ष सागर
ग्वालियर, 18 मार्च (हि.स.)। जो व्यक्ति हमेशा प्रसन्न रहता है, वह जीवन में सुखी रहता है। प्रसन्नता इस तनाव भरे जीवन में बड़ा शस्त्र है। प्रसन्न रहने और हंसने में अंतर है। हंसना बुरा नहीं है, लेकिन दूसरों पर हंसना गलत है। बाहरी वस्तुओं को जोड़- जोड़कर इंसान कभी सुखी नहीं बन सकता। जो ऐसा कर रहा है वह मूर्ख है। यह बात गुरुवार को मुनिश्री विहर्ष सागर महाराज ने नई सड़क स्थित चंपाबाग धर्मशाला में अमृतवाणी के दौरान कही। इस मौके पर मुनिश्री विजयेश सागर महाराज भी मौजूद थे। मुनिश्री ने कहा कि मोह-माया में आत्मज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता। अर्थ को जीवन का लक्ष्य बनाना अनर्थ है। एक सीमा तक ही परिग्रह ठीक रहता है, जो जरूरतें पूरी करता रहे। उस सीमा से ज्यादा धन-दौलत जोड़ोगे तो दुख का कारण बनेगा। मुनिश्री ने कहा कि जो आत्मतत्व के ज्ञानी है वह संसारिकता में फंसते नहीं है। जो आत्मा को कसती है दुख देती है वह कषाय होती है। संसार में सुख त्याग करने से मिलता है। इंसान को दुख के समय ही भगवान याद आते हैं। हमें हर परिस्थिति में भगवान का स्मरण करना चाहिए। मुनिश्री ने कहा कि क्रोध, मान और माया का समन (नाश) करना ही शांति है। अपने जीवन में शांति चाहते हो तो हमें कोशिश करनी होगी कि हम किसी दूसरे के जीवन में अशांति का कारण न बनें। मुनिश्री ने कहा कि यदि तुम दूसरे के लिए सुख की सोच रखोगे तो तुम भी सुखी होंगे। हिन्दुस्थान समाचार/शरद