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नर्मदा तट और मैदानी भागों में तीसरे दिन भी जमी बर्फ की परत, शीतलहर में ठिठुरा अमरकंटक

अनूपपुर, 01 फरवरी (हि.स.)। अमरकंटक में सोमवार को तीसरे दिन भी नर्मदा सहित आसपास के मैदानी हिस्सों पर ओस की बूंदें बर्फ की पतली सफेद चादर के रूप में जमी नजर आई। इससे पूर्व दो दिन से लगातार अमरकंटक के नर्मदा तट किनारे सहित सटे पुष्पराजगढ़ विकासखंड के अधिकांश हिस्सों में ओस की शबनमी बूंदें जमकर बर्फ की परत में तब्दील हो गई थी। क्षेत्र में ओस के बर्फ के रूप मेें जमने के कारण अब अमरकंटक में भी शीतलहर की ठिठुरन से कंपकपाने लगा है। लगातार दिन के तापमान के साथ रात के भी तापमान में गिरावट दर्ज की जा रही है। माना जाता है कि उत्तर भारत में लगातार जारी शीतलहर के प्रभाव के कारण अमरकंटक सहित आसपास के क्षेत्रों में तापमान में अभी गिरावट बनी रहेगी और शीत लहर का प्रकोप जारी रहेगा। सोमवार को अमरकंटक का न्यूनतम तापमान 4 डिग्री रिकार्ड किया गया, जबकि अधिकतम तापमान 24 रिकार्ड किया गया। जबकि अनूपपुर जिला मुख्यालय का न्यनूतम तापमान 5 डिग्री तथा अधिकतम तापमान 25 डिग्री रिकार्ड किया गया है। वहीं खेतों में ओस की बूंदों के जमने से किसानों की मुसीबत बढ़ गई है। खेतों में रबी की तैयार हो रही दलहनी फसलों सहित सब्जियों की खेती पर पाले का खतरा मंडराने लगा है। हालांकि कृषि विभाग ने किसानों के लिए समसामायिकी सलाह जारी की है। कृषि उपसंचालक एनडी गुप्ता ने बताया कि अत्याधिक मात्रा में बर्फ की परत जमती है तो इससे खासकर दलहनी फसलों, सब्जियों में टमाटर, मटर, लौकी,गोभी सहित अन्य फसलों को नुकसान पहुंच सकता है। वर्तमान में गर्मी के दिनों के लिए तैयार की जा रही सब्जियों की नर्सरी को इस पाले से नुकसान पहुंच सकता है। विभागीय जानकारी के अनुसार जिले में इस वर्ष 37.30 हजार हेक्टेयर के लक्ष्य में 36.55 हजार हेक्टेयर में दलहनी फसलों की बुवाई की गई है। चना 14.30 हजार हेक्टेयर, मटर 3.30 हजार हेक्टेयर, मसूर 18.06 हजार हेक्टेयर में है। जैतहरी, पुष्पराजगढ़, और अनूपपुर के किसानों द्वारा वृहद स्तर पर सब्जी की फसल को भी उगाया गया है। सिंचाई के साथ धुंआ कर बचाने की सलाह कृषि उपसंचालक गुप्ता ने बताया कि पाला पडऩे की संभावना पर फसलों में हल्की सिंचाई करें। थायो यूरिया की 500 ग्राम मात्रा का 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें या 8 से 10 किलोग्राम सल्फर पाउडर प्रति एकड़ का भुरकाव करें अथवा घुलनशील सल्फर 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर अथवा 0.1 प्रतिशत गंधक अम्ल का छिड़काव करें। देर से बुवाई की गई फसल में सिंचाई के साथ एक-तिहाई नत्रजन (33 किलोग्राम /हेक्टेयर) या यूरिया (70-72 किलोग्राम/ हेक्टेयर) सिंचाई के पूर्व भुरककर दें। अगेती बुवाई वाली किस्मों में और सिंचाई न करें, पूर्ण सिंचित समय से बुवाई वाली किस्मों में 20-20 दिन के अंतराल पर 4 सिंचाई करें। आवश्यकता से अधिक सिंचाई करने पर फसल गिर सकती है, दानों में दूधिया धब्बे आ जाते हैं तथा उपज कम हो जाती है। बालियां निकलते समय फव्बारा विधि से सिंचाई न करें अन्यथा फूल खिर जाते हैं, दानों का मुंह काला पड़ जाता है। हिन्दुस्थान समाचार/ राजेश शुक्ला-hindusthansamachar.in

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