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बीज की कालाबाजारी : दोहरी लूट का शिकार हो रहे किसान: माकपा

भोपाल, 21 जून (हि.स.)। जब प्रदेश के अधिकांश जिलों में मानसून ने दस्तक दे दी है और किसान खरीफ की फसल की बोवनी के लिए जुटा हुआ है, तब सरकार की ओर से सरकारी और सहकारी बीज केंद्रों पर पर्याप्त मात्रा में बीज उपलब्ध न करवा कर किसानों को निजी कंपनियों के मिलने वाले नकली बीजों से लुटने के लिए छोड़ दिया गया है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव जसविंदर सिंह ने प्रदेश में खरीफ के मौसम की प्रमुख फसलों में हो रही कालाबाजारी का हवाला देते हुए कहा है कि कालाबाजारियों को सरकार के संरक्षण से किसानों को तेहरी मार पड़ रही है। पहला तो यह है कि सरकार ने बीज पर मिलने वाली सब्सिडी को बिना बढ़ाये बीज की दरों में वृद्धि की है। वैसे भी बीज खरीद समय किसानों को बीज की पूरी कीमत चुकानी होती है, सब्सिडी उसके बाद ही किसान के खाते में पहुंचती है। प्रदेश में बोई जाने वाली प्रमुख फसलों में सरकार ने सोयाबीन के बीज पर 850 रुपये प्रति क्विंटल, मूंगफली के बीज पर 500 रुपये क्विंटल, मूंग के बीज में 150 रुपये, अरहर 250 रुपये और तिल्ली के बीज में 50 रुपये प्रति क्विंटल की दर से वृद्धि की है। जसविंदर सिंह ने किसानों के साथ हो रहे सरकारी अन्याय का जिक्र करते हुए कहा है कि बीज खरीदते समय किसानों को पूरी कीमत पर बीज खरीदना होता है और सब्सिडी बाद में उनके खाते में पहुंचती है। माकपा नेता ने कहा कि प्रदेश के किसानों के साथ राज्य सरकार द्वारा इससे भी बड़ा अन्याय यह हो रहा है कि सहकारी और सरकारी बीज केंद्रों पर बीज उपलब्ध न होने से किसानों को इसे बाजार से खरीदना पड़ रहा है, जो सरकारी दर से कई बार कई दोगुने से भी ज्यादा महंगा होता है। उदाहरण के लिए सोयाबीन के बीज की कीमत सब्सिडी के बाद 55 रुपये प्रति किलो है, जबकि बाजार में किसानों को 115 रुपये प्रति किलो की दर से खरीदना पड़ रहा है। इसी प्रकार धान के बीज का सरकारी रेट 30 रुपये किलो है और निजी कंपनियां 75 रुपये किलो में बेच कर ढाई गुना से ज्यादा वसूल रही हैं। बाजरे का बीज भी 264 रुपये की बजाय डेढ़ किलो का पैकेट 550 रुपये में मिल रहा है। इसी तरह मक्का के बीज का मूल्य 89 रुपये किलो है और किसानों को बाजार में पांच किलो की थैली 1000 रुपये यानी 200 रुपये किलो में खरीदना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि किसानों के साथ होने वाली यह लूट सिर्फ बीज खरीदने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि निजी कंपनियों से मिजले वाले बीज को रासायनिक तरीके से संरक्षित न किए जाने के कारण उसके अंकुरित होने या बाद में फल और फली लगने की कोई गारंटी नहीं होती है और निजी खरीद केंद्र किसान को बीज खरीदते समय कोई रसीद भी नहीं देते हैं, जिससे नुकसान होने पर वे कंपनी पर किसी प्रकार का दावा भी नहीं कर सकते हैं। माकपा ने कहा है कि किसानों की यह लूट उस सरकार में हो रही है, जिसके मुखिया खुद को किसान पुत्र कहते हैं। मगर यह लूट साबित करती है कि यह सरकार किसान पुत्र की नहीं, बल्कि किसान को लूटने वाले कालाबाजारियों की सरकार है। माकपा ने इस लूट को तुरंत रोकने और किसानों को पर्याप्त मात्रा में बीज उपलब्ध कराने की मांग की है। हिन्दुस्थान समाचार/राजू

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