Delhi News: समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता न देने के फैसले पर होगा पुनर्विचार, 28 नवंबर को SC में होगी सुनवाई

New Delhi News: समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने से इनकार करने के SC की संविधान बेंच के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका, बंद चैंबर की बजाय खुली अदालत में सुनवाई करने की मांग की गई।
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नई दिल्ली, हि.स.। समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने से इनकार करने के सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिकाओं के याचिकाकर्ताओं की ओर से आज इन याचिकाओं की सुनवाई बंद चैंबर की बजाय खुली अदालत में करने की मांग की गई।

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष मेंशन किया। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि हम याचिकाओं को देखकर इस पर फैसला लेंगे। ये याचिकाएं सुनवाई के लिए 28 नवंबर को लगी हैं।

चीफ जस्टिस ने कहा कि हम याचिकाएं देखकर लेंगे फैसला

रोहतगी ने कहा कि ये याचिकाएं 28 नवंबर को सुनवाई के लिए लगी हैं। कोर्ट ये सुनिश्चित करे कि उस दिन ये मामला सुनवाई की लिस्ट से डिलीट न हो। संविधान बेंच के सभी जज इस पर एकमत थे कि समलैंगिक कपल के साथ समाज में भेदभाव हो रहा है।

ऐसे में जब कोर्ट उनके साथ भेदभाव की बात को मान रहा है तो उनके लिए राहत का रास्ता भी खोजना होगा। ये बड़ी तादाद में लोगों की ज़िंदगी से जुड़ा मसला है। इसलिए हम चाहते है कि पुनर्विचार याचिकाओं पर बंद चैंबर की बजाय ओपन कोर्ट में सुनवाई हो इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि हम याचिकाएं देखकर फैसला लेंगे।

स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव करने का अधिकार केवल संसद के पास है

उल्लेखनीय है कि 17 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि समलैंगिक साथ रह सकते हैं लेकिन विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि एलजीबीटीक्यू समुदाय के साथ भेदभाव रोकने के लिए जरूरी कदम उठाएं।

इस मामले पर सुनवाई करने वाली संविधान बेंच में शामिल जज

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर 10 दिनों तक सुनवाई की थी। इस मामले पर सुनवाई करने वाली संविधान बेंच में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हीमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल थे। 13 मार्च को कोर्ट ने इस मामले को संविधान बेंच को रेफर किया था।
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