Lok Sabha Poll: क्या होता है घोषणापत्र? क्यों जनता के लिए है जरूरी! जानें क्या है EC और SC के अहम निर्देश?

New Delhi: राजनीतिक दल जनता का वोट पाने के लिए जनता के हितों के लिए चुनावी घोषणापत्र बनाती है इसमें पार्टी ऐसे मुद्दों को चुनती है जिसमें आर्थिक, सामाजिक और सुरक्षा-व्यवस्था को लेकर ऐजेंडा शामिल हो।
Lok Sabha Poll
Election Poll
Lok Sabha Poll Election PollRaftaar.in

नई दिल्ली, रफ्तार डेस्क। आगामी लोकसभा चुनाव 19 अप्रैल से शुरु हो रहे हैं जल्द ही राजनीतिक दल चुनावी घोषणापत्र का ऐलान करेगी। चुनाव के समय नेताओं के लिए जनता भगवान का रुप होती है इसलिए अपने भगवान को भोग लगाने के लिए नेता अपने घोषणापत्र में लोगों को समस्याओं को दूर करने का वादा करती है।

क्या होता है चुनावी घोषणापत्र?

चुनाव चाहे विधानसभा के हो या लोकसभा के राजनीतिक दल जनता का वोट पाने के लिए जनता और पार्टी के हितों के लिए चुनावी घोषणापत्र बनाती है इसमें पार्टी ऐसे मुद्दों को चुनती है जिसमें आर्थिक, सामाजिक और सुरक्षा-व्यवस्था को लेकर ऐजेंडा सेट करती है। इन घोषणापत्रों के आधार पर राजनीतिक दल जनता को बड़े-बड़े वादे करती है। सभी पार्टियां अपने-अपने घोषणापत्रों में वादे के साथ कैसे सरकार चलाएगी और क्या करेगी जैसे मुद्दों को लोगों के सामने पेश करती है।

कैसे तैयार होता है घोषणापत्र?

चुनावी घोषणापत्र को बनाने के पीछे कई बातों को ध्यान में रखना पड़ता है। प्रत्येक राजनीतिक दल के दिग्गज नेता इस पर विचार-विमर्श कर फैसला लेते हैं कि उनके लिए लोगों के हितों के लिए सबसे अहम क्या मुद्दा है जैसे कि शिक्षा, महिला-सुरक्षा, नौकरी, कृषि और स्वास्थ्य आदि जैसे मुद्दे। पार्टियां इस पर नीतियां बनाती हैं और इस बात को ध्यान में रखती है कि जनता के लिए सबसे अहम क्या है। लोगों को आर्थिक और सामाजिक तौर पर क्या मांगे हैं। इसी के बाद घोषणापत्र पर मुहर लगती है। राजनीतिक पार्टियां यूं ही कोई भी वादा करके लोगों का भरोसा नहीं जीत सकती है। राजनीतिक दल लोगों को लालच देकर या लुभाकर वोट हासिल न करें इसलिए चुनाव आयोग और सुप्रीम कोर्ट राजनीतिक दलों पर नजर बनाए रखती है। दोनों अहम संस्थानों ने राजनीतिक दलों के लिए अहम गाइडलाइन और निर्देश जारी किए हैं।

क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट?

1. सुप्रीम कोर्ट के पास संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों के बीच समान अधिकार रहे और चुनाव प्रक्रिया पर खराब असर न पड़े इसलिए आदर्श आचार संहिता जारी करने के समय ही आदेश निर्देश जारी कर देती है। इस आदेश में होता है कि चुनाव आयोग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने में सक्षम है और उनके आदेशों का पालन होना अनिवार्य है। ऐसा न करने पर राजनीतिक दल या प्रत्याशी पर मुकदमा चल सकता है।

2. चुनावी घोषणापत्र चुनाव होने से ठीक पहले जारी होता है ऐसे में सुप्रीम कोर्ट इसमें दखल देने का कोई अधिकार नहीं होता। चूंकि यह चुनाव प्रक्रिया से जुड़ा होता है इसलिए चुनाव घोषणापत्र पर कोर्ट नजर बनाए रखता है।

क्या कहता है चुनाव आयोग?

1. चुनावी घोषणापत्र में संविधान में निहित आदर्शों और सिद्धांतों के प्रतिकूल कुछ भी नहीं होगा और यह आदर्श आचार संहिता के अन्य प्रावधानों की भावना के अनुरूप होगा।

2. संविधान में निहित राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत राज्यों को नागरिकों के लिए विभिन्न कल्याणकारी उपाय करने के आदेश हैं, इसलिए चुनावी घोषणापत्रों में ऐसे कल्याणकारी उपायों के वादे पर कोई आपत्ति नहीं हो सकती है। हालांकि, राजनीतिक दलों को ऐसे वादे करने से बचना चाहिए, जिनसे चुनाव प्रक्रिया की शुचिता प्रभावित हो या मतदाताओं पर उनके मताधिकार का प्रयोग करने में अनुचित प्रभाव पड़ने की संभावना हो।

3. घोषणापत्र में पारदर्शिता, समान अवसर और वादों की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए यह अपेक्षा की जाती है कि घोषणापत्र में किए गए वादे स्पष्ट हों और इसे पूरा करने के लिए वित्तीय संसाधन कैसे जुटाए जाएंगे, इसकी भी जानकारी हो। मतदाताओं का भरोसा उन्हीं वादों पर हासिल करना चाहिए, जिन्हें पूरा किया जाना संभव हो।

4. चुनावों के दौरान निषेधात्मक अवधि (मतदान शुरू होने से 48 घंटे पहले) के दौरान कोई भी घोषणापत्र जारी नहीं किया जा सकेगा।

अन्य खबरों के लिए क्लिक करें:- www.raftaar.in

Related Stories

No stories found.
Raftaar | रफ्तार
raftaar.in