दुर्गापूजा के सातवे दिन माता कालरात्रि की उपासना का विधान है | संपूर्ण प्राणियो की पीड़ा को हरने वाली , अग्नि भय, जलभय, रात्रिभय, जन्तुभय दूर करने वाली, काम, क्रोध ओर शत्रुओ का नाश करने वाली , काल की भी रात्रि विनाशिका होने से उस देवी का नाम "कालरात्रि" पड़ा |
माता कालरात्रि का उपासना मंत्र
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
प्रथम नवदुर्गा : माता शैलपुत्री
द्वितीय नवदुर्गा : माता ब्रह्मचारिण
तृतीय नवदुर्गा : माता चंद्रघंटा
चतुर्थी नवदुर्गा : माता कूष्मांडा
पंचम नवदुर्गा : माता स्कंदमाता
षष्ठी नवदुर्गा : देवी कात्यायनी
सप्तम नवदुर्गा : माता कालरात्रि
अष्टम नवदुर्गा : माता महागौरी
नवम नवदुर्गा: माता सिद्धिदात्री
माता का स्वरूप
माता कालरात्रि के शरीर का रंग काला, बाल बिखरे हुए, गले मे मुण्ड माला, तीन नेत्र, गर्दभ है | दाहिना हाथ वार मुद्रा मे, दूसरा हाथ अभय मुद्रा मे है | बाई हाथ मे लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ मे खड्ग है |
आराधना महत्व
माता कालरात्रि की पूजा करने से सभी पापों से मुक्ति , दुश्मनो का नाश, तेज बड़ता है | माता अपने भक्तो को सभी प्रकार के दुखो ओर भय से मुक्त करती है ओर देवी वाक् सिद्धि ओर बुद्धि बल प्रदान करती है | दानव , दैत्य, राक्षस भूत-प्रेत माता कालरात्रि के स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर थक जाते है |
पूजा मे उपयोगी वस्तु
सप्तमी तिथि के दिन भगवती की पूजा में गुड़ का नैवेद्य अर्पित करके ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से पुरुष शोकमुक्त हो सकता है।
माता कालरात्रि की आरती
कालरात्रि जय जय महाकालीकाल के मुह से बचाने वाली दुष्ट संगारण नाम तुम्हारा महा चंडी तेरा अवतारा पृथ्वी और आकाश पे सारा महाकाली है तेरा पसारा खंडा खप्पर रखने वाली दुष्टों का लहू चखने वाली कलकता स्थान तुम्हारा सब जगह देखू तेरा नजारा सभी देवता सब नर नारी गावे स्तुति सभी तुम्हारी रक्तदन्ता और अन्न पूर्णा कृपा करे तो कोई भी दुःख ना ना कोई चिंता रहे ना बिमारी ना कोई गम ना संकट भारी उस पर कभी कष्ट ना आवे महाकाली माँ जिसे बचावे तू भी 'भक्त' प्रेम से कह कालरात्रि माँ तेरी जय