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चेन्नई

Madras High Court की तमिलनाडु सरकार को सलाह- ट्रांसजेंडर्स को आरक्षण देने पर करें विचार

चेन्नई हि.स.। मद्रास उच्च न्यायालय ने विकलांग लोगों को प्रदान किए गए आरक्षण की तर्ज पर तमिलनाडु में शिक्षा और रोजगार में ट्रांसजेंडर्स के लिए आरक्षण प्रदान करने का सुझाव दिया है। इस मामले में याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि कर्नाटक सरकार ने ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए 1 प्रतिशत कोटा रखा है और उसी तरह व्यवस्था तमिलनाडु में होनी चाहिए।

कोर्ट ने दिया राज्य सरकार को सुझाव

इस मामले की शुरुआत करते हुए पहली पीठ मुख्य न्यायाधीश एसवी गंगापुरवाला और न्यायमूर्ति डी भरत चक्रवर्ती ने एक्टिविस्ट ग्रेस बानू गणेशन द्वारा वर्ष 2019 में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को यह सुझाव दिया, "यदि इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए राज्य के ट्रांसजेंडर्स को आरक्षण प्रदान करने का आदेश देने की मांग की गई है तो राज्य के ट्रांसजेंडर्स के लिए सरकार आरक्षण पर विचार कर सकता है।"

ट्रांसजेंडर्स के लिए 1 प्रतिशत क्षैतिज से कई मुद्दों का होगा समाधान

याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाली वरिष्ठ वकील जयना कोठारी की दलीलों का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा, "यदि राज्य ट्रांसजेंडर्स के लिए 1 प्रतिशत क्षैतिज प्रदान करता है तो इससे कई मुद्दों का समाधान हो जाएगा।" अदालत ने कहा कि इससे आरक्षण के विपरीत समग्र आरक्षण की सीमा में वृद्धि नहीं होगी।

तमिलनाडु नागरिकों के अधिकारों की रक्षा में सबसे आगे

इस मामले में अदालत ने पूछा, "तमिलनाडु ट्रांसजेंडर्स के लिए 1 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने का जोखिम क्यों नहीं उठा सकता?" अधिवक्ता कोठारी ने कोर्ट से कहा कि कर्नाटक सरकार ट्रांस व्यक्तियों के लिए 1 प्रतिशत आरक्षण प्रदान कर रही है और तमिलनाडु भी ऐसा आरक्षण प्रदान कर सकता है क्योंकि राज्य हाशिए पर रहने वाले वर्गों के अधिकारों की रक्षा में सबसे आगे है।

रोजगार और शिक्षा में ट्रांसजेंडर्स और इंटरसेक्स व्यक्तियों के लिए आरक्षण

उन्होंने बताया कि ट्रांसजेंडर्स को वर्तमान में एमबीसी कोटा में शामिल किया गया है, जिससे एससी/एसटी से संबंधित लोगों को नुकसान हो रहा है। 2019 की याचिका में अदालत से राज्य सरकार को सार्वजनिक रोजगार और शिक्षा में ट्रांसजेंडर्स और इंटरसेक्स व्यक्तियों के लिए आरक्षण प्रदान करने वाली आरक्षण नीति बनाने और लागू करने के निर्देश जारी करने की मांग की गई। पीठ ने महाधिवक्ता आर शुनमुगसुंदरम को सरकार से निर्देश प्राप्त करने के लिए कहते हुए मामले को आगे की सुनवाई के लिए 4 मार्च तक के लिए टाल दिया।

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