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छत्तीसगढ़

जैन मुनि विद्यासागर महाराज जी हुए समाधि में लीन; पूरे देश में शोक की लहर, जानें कौन थे जैन मुनि विद्यासागर

छत्तीसगढ़, रफ्तार डेस्क। दिगंबर मुनि परंपरा के आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज ने छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित चन्द्रगिरि तीर्थ में 17 फरवरी को रात में 02:35 बजे अंतिम सांस ली। वह पिछले 3 दिनों से उपवास में थे और उन्होंने मौन धारण कर रखा था। उनका जैन समाज ही नहीं बल्कि पूरे भारतवर्ष में एक अलग पहचान थी। देश- विदेश में उनकी एक अलग ही ख्याति थी।

ऐसे समय में भी वह अपना कर्त्तव्य करना नहीं भूले

आचार्य विद्या सागर जी ने 6 फरवरी को आचार्य पद का त्याग करने का निर्णय लिया और इसको लेकर उन्होंने मुनि योग सागर जी से चर्चा भी की। उन्हें अपने अंतिम समय का आभास हो गया था और ऐसे समय में भी वह अपना कर्त्तव्य करना नहीं भूले। उन्होंने अपने अंतिम समय से कुछ दिन पहले ही 6 फरवरी को मुनि समय सागर जी महाराज को आचार्य पद देने की घोषणा भी कर दी थी।

श्रदालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए इस अंतिम संस्कार कार्यक्रम में थोड़ी देरी हुई

जैसे ही आचार्य विद्या सागर जी के शरीर त्यागने की खबर जैन समाज के लोगो को लगी तो बड़ी संख्या में वे लोग डोंगरगढ़ पहुंचे। रविवार को आचार्य विद्या सागर जी का अंतिम संस्कार कर दिया गया। इस अवसर पर एमपी और छत्तीसगढ़ में आधे दिन का राजकीय शोक घोषित किया गया। छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में आचार्य विद्या सागर जी के पार्थिव शरीर को डोले में रखकर अग्निकुंड तक ले जाया गया। वहां उनके पूरे रीति-रिवाज के साथ अंतिम संस्कार किया गया। उनके अंतिम संस्कार में श्रदालुओं का तांता लगा हुआ था। उनके अंतिम संस्कार का समय दोपहर 1 बजे निर्धारित था, लेकिन श्रदालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए इस अंतिम संस्कार कार्यक्रम में थोड़ी देरी हुई।

आचार्य विद्या सागर महाराज जी की दो बहनें शांता और सुवर्णा भी दीक्षा ले चुकी हैं

आचार्य विद्या सागर महाराज जी का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक के बेलगांव जिले के सद्लगा ग्राम में हुआ था। उन्हें 22 नवंबर 1972 को आचार्य श्री ज्ञान सागर महाराज ने राजस्थान के अजमेर में आचार्य पद की दीक्षा दी थी। आचार्य विद्या सागर महाराज जी ने आचार्य पद की दीक्षा लेने के बाद अपना जीवन अध्यात्म में ही सौंप दिया और श्रदालुओं को अध्यात्म के माध्यम से इस कष्टरुपी दुनिया में सुख से जीने का मार्ग बताया। आचार्य बनने के बाद उन्होंने पहली दीक्षा अपने भाई मुनि श्री समय सागर महाराज को 8 मार्च 1980 को छतरपुर में पहली दीक्षा दी। इसके बाद उन्होंने अपने दो गृहस्थ जीवन के भाई योग सागर और नियम सागर महाराज को सागर जिले में दीक्षा दी। आचार्य विद्या सागर महाराज जी की दो बहनें शांता और सुवर्णा भी दीक्षा ले चुकी हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज को दी श्रद्धांजलि

आचार्य विद्या सागर महाराज जी को आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज भी कहा जाता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के निधन पर शोक व्यक्त किया है और अपने सोशल मीडिया एक्स में लिखा "आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज जी का ब्रह्मलीन होना देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है। लोगों में आध्यात्मिक जागृति के लिए उनके बहुमूल्य प्रयास सदैव स्मरण किए जाएंगे। वे जीवनपर्यंत गरीबी उन्मूलन के साथ-साथ समाज में स्वास्थ्य और शिक्षा को बढ़ावा देने में जुटे रहे। यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे निरंतर उनका आशीर्वाद मिलता रहा। पिछले वर्ष छत्तीसगढ़ के चंद्रगिरी जैन मंदिर में उनसे हुई भेंट मेरे लिए अविस्मरणीय रहेगी। तब आचार्य जी से मुझे भरपूर स्नेह और आशीष प्राप्त हुआ था। समाज के लिए उनका अप्रतिम योगदान देश की हर पीढ़ी को प्रेरित करता रहेगा।"

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