Delhi-NCR से हरिद्वार जाने वाले कांवड़ियों इन नियमों को जान लें वरना हर की पौड़ी से नहीं भर पाएंगे जल

कांवर यात्रा 4 जुलाई से शुरू होकर 15 जुलाई को समाप्त होनी है।अगर आप गंगाजल लेने हरिद्वार जा रहे हैं तो जान लें किस आईडी के बिना उत्तराखंड की सीमा पार नहीं कर पाएंगे।
Kanwar Yatra 2023
Kanwar Yatra 2023Social Media

नई दिल्ली, रफ्तार डेस्क। हरिद्वार में 4 से 15 जुलाई तक कांवर यात्रा होगी। इस दौरान कांवरिए जल लेकर घर लौट सकते हैं और उत्तराखंड के आसपास के सात राज्य ऐसी स्थिति के लिए तैयारी कर रहे हैं। हालाँकि, यदि आप इस वर्ष पानी लाने की योजना बना रहे हैं, तो अपनी आईडी अपने साथ अवश्य लाएँ। यदि आपके पास आईडी नहीं है तो आपको उत्तराखंड राज्य की सीमा पर प्रवेश नहीं दिया जाएगा। इस आईडी से ही आप 12 फीट से अधिक ऊंचा कैनवास ले सकते हैं। इसके अलावा, डीजे पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा, लेकिन आपको ध्वनि पर नियंत्रण रखना होगा।

Kanwar Yatra 2023
Kanwar Yatra 2023Social Media

भारत माता मार्ग पर वाहन पार्किंग की सुविधा

इस बार कांवर मेले में पार्किंग की कोई समस्या नहीं होगी क्योंकि कांवर में पहली बार भारत माता मार्ग और चमगादड़ टापू पर वाहन पार्क किए जा सकेंगे। मेले के दौरान शहर के अंदर पार्किंग को लेकर काफी दिक्कतें आयीं, लेकिन जिला जज के आदेश पर नये पार्किंग स्थल बनाने की योजना बनायी गयी। बैरागी कैंप पार्किंग, चंडी घाट, लालजीवाला पार्किंग का उपयोग एक माह के लिए किया जाएगा।

Kanwar Yatra 2023
Kanwar Yatra 2023Social Media

सुल्तानगंज से शुरू होती है पैदल यात्रा

ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव श्रावण के पूरे महीने के दौरान राजा दक्ष के दामाद की नगरी, कान्हाल, हरिद्वार में रहते थे। चूंकि इस समय भगवान विष्णु सो जाते हैं, इसलिए भगवान शिव ही तीनों लोकों पर नजर रखते हैं। इसी कारण से केवल श्रावण माह में ही कांवरिये गंगाजल लेने हरिद्वार आते हैं। यह भी माना जाता है कि भगवान राम पहले कांवरिया थे। कहा जाता है कि श्रीराम ने झारखंड के सुल्तानगंज से कांवड़ में गंगाजल लाकर बाबाधाम शिवलिंग का अभिषेक किया था।

Kanwar Yatra 2023
Kanwar Yatra 2023Social Media

भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है

हर साल सावन में लाखों की संख्या में कांवरिये हरिद्वार आते हैं और कांवर में गंगाजल भरकर पैदल यात्रा शुरू करते हैं। कांवरिए जल्दी-जल्दी अपनी कांवर में गंगा जल भरते हैं, फिर इस जल से भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब समुद्र मंथन हुआ तो समुद्र से विष निकला, जिसे भगवान शिव ने पी लिया, जिसके बाद उनका कंठ नीला हो गया। तभी से इसे नीलकंठ के नाम से जाना जाता है। लेकिन भगवान शिव के जहर पीने से दुनिया तो बच गई, लेकिन परिणामस्वरूप शिव का शरीर जलने लगा। ऐसे में देवताओं ने उन्हें जल अर्पित करना शुरू कर दिया। मान्यता है कि तभी से कांवर यात्रा की शुरुआत हुई।

अन्य खबरों के लिए क्लिक करें- www.raftaar.in

Related Stories

No stories found.
Raftaar | रफ्तार
raftaar.in