UNFPA के शोध में खुलासा, जनसंख्या के मामले में भारत ने चीन को छोड़ा पीछे

अब जनसंख्या के मामले में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया है. संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के आंकड़ों से पता चलता है कि भारत 142.86 करोड़ लोगों के साथ दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है।
UNFPA के शोध में खुलासा, जनसंख्या के मामले में भारत ने चीन को छोड़ा पीछे

नई दिल्ली, रफ्तार न्यूज डेस्क। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) के शोध में खुलासा हुआ है कि जनसंख्या के मामले में भारत चीन के पीछे छोड़ते हुए विश्व में पहले पायदान पर पहुंच गया है। 1950 के बाद से पहली बार भारत जनसंख्या के मामले में चीन से आगे निकला है।

जनसंख्या वृद्धि महिलाओं के मानवाधिकार की बात

यूएनएफपीए ने बुधवार को अपनी रिपोर्ट ''8 बिलियन लाइव्स, इनफिनिट पॉसिबिलिटीज: द केस फॉर राइट्स एंड चॉइस'' में विस्तार से इसका विश्लेषण किया है। इसमें कहा गया है कि जनसंख्या वृद्धि केवल संख्या की बात नहीं यह महिलाओं के मानवाधिकार की बात है। यूएनएफपीए ने ऐसे मामलों से राजनेताओं और मीडिया से जनसंख्या में उछाल और गिरावट के बारे में जल्दबाजी में आख्यानों को छोड़ने का आग्रह किया है। यूएनएफपीए की कार्यकारी निदेशक डॉ. नतालिया कानेम कहती हैं- "महिलाओं के शरीर को जनसंख्या लक्ष्य के लिए बंदी नहीं बनाया जाना चाहिए। संपन्न और समावेशी समाजों का निर्माण करने के लिए, जनसंख्या के आकार की परवाह किए बिना, हमें पुनर्विचार करना चाहिए कि हम जनसंख्या परिवर्तन के बारे में कैसे योजनाओं का निर्माण करते हैं।

जबरन नसबंदी मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन

डॉ. नतालिया कानेम का कहना है कि 68 देशों में सर्वे में हिस्सा लेने वाली 44 प्रतिशत महिलाओं और लड़कियों ने माना कि यौन संबंध बनाने, गर्भनिरोधक का उपयोग करने और स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त करने के मामले में या अपने शरीर के बारे में निर्णय लेने का उन्हें कोई अधिकार नहीं होता। दुनिया भर में अनुमानित 257 मिलियन महिलाओं को सुरक्षित, विश्वसनीय गर्भनिरोधक की आवश्यकता पूरी ही नहीं होती है। वह कहती हैं विभिन्न देशों के जनसंख्या का ऐतिहासिक विश्लेषण यह दर्शाता है कि जन्म दर बढ़ाने या कम करने के लिए बनाई गई प्रजनन नीतियां अप्रभावी सिद्ध हुई हैं। ज्यादा नियंत्रण वाली नीतियों से महिलाओं के अधिकारों से समझौता करना पड़ता है। कई देशों ने महिलाओं और उनके सहयोगियों को परिवार वृद्धि के लिए वित्तीय प्रोत्साहन जैसे बड़े कार्यक्रम शुरू किए हैं, फिर भी वे प्रति महिला दो बच्चों से कम जन्म दर पर हैं। वैश्विक आकड़ें दर्शाते हि कि जबरन नसबंदी और जबरदस्ती गर्भनिरोधक के माध्यम से जनसंख्या वृद्धि को धीमा करने के प्रयासों ने मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन किया है। जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए परिवार नियोजन को एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। यह व्यक्तियों को सशक्त बनाने का एक उपकरण है। महिलाओं किसी भी दबाव से मुक्त होकर यह चुनने में सक्षम और स्वतंत्र होना चाहिए कि वे कब और कितने बच्चे पैदा करना चाहेंगी।

लैंगिक समानता की नीतियों में बड़े पैमाने पर बदलाव की बात

विश्व जनसंख्या रिपोर्ट (एसडब्ल्यूओपी) 2023 के विमोचन पर यूएनएफपीए भारत और भूटान के प्रतिनिधि एंड्रिया वोजनर ने कहा कि जैसे-जैसे वैश्विक जनसंख्या 8 अरब हुई तो भारत की आबादी भी 1.4 अरब हो गई है, इसे हम, यूएनएफपीए 1.4 अरब अवसरों के रूप में देखते हैं। भारत के जनसंख्या वृद्धि की कहानी बड़ी दिलचस्प है। यह बढ़ती आबादी के आवश्यकतानुसार शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता, आर्थिक विकास के साथ-साथ तकनीकी प्रगति का दास्तान है। सबसे बड़े युवा आबादी वाले देश के रूप में, 254 मिलियन युवा (15-24 वर्ष) नवाचार, नई सोच और आर्थिक उन्नति के स्थायी के स्रोत हो सकते हैं। विशेष रूप से महिलाएं और लड़कियों को समान शैक्षिक और कौशल निर्माण के अवसरों, प्रौद्योगिकी और डिजिटल नवाचारों तक पहुंच सुनिश्चित किया जाए तो वे भारत के विकास को और अधिक समावेशी बना सकती हैं। उल्लेखनीय है कि ''8 बिलियन लाइव्स, इनफिनिट पॉसिबिलिटीज: द केस फॉर राइट्स एंड चॉइस'' रिपोर्ट लैंगिक समानता और अधिकारों के साथ सरकारों की नीतियों में बड़े पैमाने पर बदलाव की बात करती है, जैसे माता-पिता की छुट्टी के कार्यक्रम, कार्यस्थल में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने वाली नीतियां और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों तक सार्वभौमिक पहुंच। ये ऐसे प्रयास होंगे जिससे जनसांख्यकी लाभ लेते हुए समतामूलक समाज का निर्माण किया जा सकता है।

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