
सुल्तानपुर, हि.स.। महात्मा गाँधी ने जब फिरंगी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन करने का आवाहन किया तो जिले के सेठ साहूकारों ने भामाशाह बनकर अपनी पोटली खोलकर रख दी। स्वराज आंदोलन की अलख जगाने महात्मा गांधी पत्नी कस्तूरबा गांधी के साथ सुल्तानपुर नवम्बर 1929 में आए थे। उस समय वह सीताकुंड पर स्थित बाबू गनपत सहाय की कोठी में रात्रि विश्राम के लिए रुके हुए थे।
अगले दिन सुबह रेलवे स्टेशन के निकट स्थित सेठ जगराम दास धर्मशाला में एक सभा आयोजित की गई थी। उस दिन महात्मा गांधी को देखने-सुनने हजारों लोगों की भीड़ जुटी थी। गांधी जी ने जब लोगों से फिरंगी हुकूमत के खिलाफ एक जुट होकर आंदोलन करने का आह्वान किया तो जिले के सेठ-साहूकारों ने भामाशाह बनकर अपनी पोटली का मुंह खोलकर खुले दिल से चंदा दिया।
सीताकुंड स्थित कोठी ''केशकुटीर'' में ठहरे थे गांधी जी
देखा जाये तो गांधी जी के उस दौर के प्रत्यक्षदर्शी भी अब नहीं रहे, लेकिन आज भी वह दास्तान, लोगों का वह जज्बा जन-जन के बीच प्रचलित है और चर्चा का विषय है। सेठ जगराम दास धर्मशाला और बाबू गनपत सहाय की कोठी (अब गनपत सहाय डिग्री कालेज) के नाम से आज भी इमारत खड़ी है।
वयोवृद्ध वकील बाबू रामकुमार लाल (अब दिवंगत) के अनुसार, महात्मा गांधी और कस्तूरबा गांधी जब सुल्तानपुर आये तो उन्हें देखने-सुनने के लिए हजारों की भीड़ इकट्ठा हो गई थी और हजारों की संख्या में छात्र भी आये हुए थे। गांधी जी बाबू गनपत सहाय की सीताकुंड स्थित कोठी ''केशकुटीर'' में ठहरे थे। गांधी जी ने रेलवे स्टेशन के समीप जगराम दास धर्मशाला में सभा की और जिले में आंदोलन जारी रखने का निर्देश दिया था।
स्वतंत्रता आंदोलन में गांधी जी के साथ कूद पड़े थे जिले के राष्ट्रभक्त
गांधी जी की इस सभा में जिले में जंग-ए-आजादी के अग्रणी राम नरायन, बाबू संगमलाल, राम हरख सिंह, अनन्त बहादुर सिंह, भगौती प्रसाद, चन्द्रबलि पाठक, उमादत्त शर्मा, हरिहर सिंह भी शामिल थे। वयोवृद्ध इतिहासकार बाबू राजेश्वर सिंह ने भी अपनी किताब ''सुल्तानपुर का इतिहास'' में भी इसको तस्दीक़ करते हैं। वे बताते हैं कि साइमन कमीशन के विरोध में जनता को जागृत करने देश व्यापी दौरे पर निकले बापू सुल्तानपुर आये थे। यहां पर बापू की गर्मजोशी से अगवानी की गई थी। हालांकि, कांग्रेस के गरम दल के नेता रहे बाबू गनपत सहाय गांधी जी के बेहद नजदीकी थे।
गांधी जी फैजाबाद से बाबू गनपत सहाय की मोटर कार से ही आये थे। सेठ-साहूकारों से गांधी जी ने स्वराज की लड़ाई में चंदा मांगा तो सभा में मौजूद महाजनों ने भामाशाह बनकर उनकी झोली भर दी थी। उन्होंने लिखा है कि जिस केशकुटीर में बापू ठहरे थे, वो अब गनपत सहाय पीजी कॉलेज के राधारानी महिला विभाग में तब्दील हो चुका है। वहीं धर्मशाला का वह आंगन आज भी सुनहरी याद दिला रहा है।
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