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सुकमा : चिंतलनार में तीन माह से पीडीएस का राशन नही मिला, ग्रामीण परेशान

सुकमा,29 अप्रैल (हि.स.) । जिले के चिंतलनार में तीन माह से सरकारी राशन नहीं मिलने से यहां के ग्रामीण में काफी परेशान है, जबकि सरकार एक एकमुश्त दो माह का राशन देने का ऐलान कर दिया है, और इधर खाद्य विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के कारण पहले ही गरीबों को मिलने राशन समय पर नहीं मिला है। चिंतलनार उचित मूल्य की दुकान का संचालन ग्राम पंचायत के द्वारा स्वसहायता समुह के माध्यम से किया जा रहा है। इस इलाके में एक साथ छह माह का राशन भेजा जाता है। जिसमे पीडीएस के माध्यम से राशन कार्ड धारियों के साथ पोटाकेबिन के लिए राशन जाता है। करीब सौ क्विंटल राशन प्रति माह चिंतलनार में खपत होती है। जिसमें करीब 274 क्विंटल चावल पोटा केबिन के लिए गया हुआ है। कोरोना महामारी के कारण पोटा केबिन नहीं खुल रहा है। जिसके कारण से चावल का उठाव नही हुआ। इस चावल का भुगतान स्कूली शिक्षा विभाग के द्वारा नहीं किया गया। राशन कार्डधारियों को बेचे गए चावल का राशि भुगतान कर दिया गया है, पोटा केबिन के आबंटित राशन चावल का राशि का भुगतान उठाव नहीं होने के करण नहीं किया गया है। जिसका भुगतान पेंडिंग दिखा रहा है,और डिलीवरी ऑर्डर ऑनलाइन नहीं कट रहा है। जिसके कारण से माह फरवरी, मार्च और अप्रैल का राशन ग्रामीणों को नहीं मिल पाया है। जबकि पीडीएस के माध्यम जो चावल का वितरण होता है उसका दर कम है, और पोटाकेबिन को 6.25 रुपये दर से प्रति किलो में दिया जाता है। उठाव नही होने से पोटाकेबिन के आबंटित राशन का होगा वितरण जिला खाद्य अधिकारी केआर पिस्दा ने बताया कि चिंतलनार में फरवरी-मार्च व अप्रैल माह राशन वितरण नहीं हो पाया है। उन्होंने बताया कि कल्याण योजना के तहत पोटाकेबिन के लिए आवंटित राशन का उठाव नहीं होने से इसका भुगतान पेंडिंग दिखा रहा था। जिसके कारण से ऑनलाइन डीओ नहीं कट रहा था। इस संबंध में कलेक्टर के माध्यम से शासन को पत्र भेजकर उक्त आवंटित चावल को अब पीडीएस के डाटा में एंट्री करवाया जा चुका है। अब इसी चावल का वितरण किया जाएगा। उन्होंने बताया कि गुड़, चना, नमक, शक्कर एक से दो दिनों के अंदर भेज दिया जाएगा। एक साथ तीन माह का राशन वितरण किया जाएगा। वनोपज के बदले चावल लेने को मजबूर ग्रामीण इस इलाके में बड़ी मात्रा में ग्रामीण वनोपज संग्रहण कर इससे आय अर्जित करते हैं। इस इलाके में सरकारी चावल नहीं मिलने से ग्रामीण वनोपज के बदले में चावल लेने के लिए मजबूर है, क्योंकि इस इलाके में इसी प्रकार की खरीदी का चलन सालों से जारी है, ऐसे वक्त का फायदा व्यापारी उठते हैं, और मजबूरन ग्रामीण को कम से कम दर पर वनोपज देकर जो चावल लेना पड़ता है। इसे ग्रामीण अपनी पेट की आग बुझते है। ऐसे मामले कई बार सामने आ चुके हैं, लेकिन उसके बाद भी यही स्थिति बरकरार है। हिन्दुस्थान समाचार/ मोहन ठाकुर

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