भोपाल, 18 जून (हि.स.)। विश्व योग दिवस के अवसर पर रविवार, 21 जून को वलयाकार सूर्यग्रहण लगने जा रहा है। इस खगोलीय घटना को लेकर भोपाल की राष्ट्रीय अवार्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने नागरिकों को सचेत किया है। उन्होंने गुरुवार को हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत में बताया कि सूर्य और चंद्र ग्रहण की खगोलीय घटनाओं को लेकर प्राचीन काल से चले आ रहे अनेक मिथक पुन: प्रकट होते दिख रहे हैं। कभी न समाप्त होने की धारणा वाले राहु और केतु का भ्रम भी इसमें शामिल है। मान्यताओं में राहु द्वारा सूर्य या चंद्रमा को निगल लेने तथा उसकी कटी हुई गर्दन से निकल जाना बताया जाता है। उन्होंने बताया कि सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्रमा के एक सीध में आ जाने से रविवार को सूर्यग्रहण की खगोलीय घटना होगी। इसमें राहु और केतु कोई राक्षस नहीं हैं, केवल काल्पनिक हैं, जो कि चंद्रमा की कक्षा और आकाश में सूर्य के मार्ग के कटन बिंदु को प्रदर्शित करते हैं। सारिका ने बताया कि पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करते चंद्रमा की कक्षा आकाश में सूर्य के मार्ग से 5 डिग्री पर झुकी हुई है। ये दोनों कक्षायें दो बिन्दुओं पर कटती हैं जिन्हें नोड कहा जाता है। इन बिन्दुओं को आरोही नोड और अवरोही नोड कहते हैं। मान्यताओं में इन्हें राहु अर्थात चंद्रमा का उत्तर तरफ जाना और केतु अर्थात चंद्रमा का दक्षिण तरफ जाना कहा जाता है। ग्रहण तब होता है, जब चंद्रमा किसी एक नोड पर या इसके करीब हो। अर्थात राहु और केतु राक्षस नहीं, बल्कि काल्पनिक बिन्दु हैं। सारिका ने संदेश दिया कि भारत में 500 ईसवी में आर्यभट्ट ने सबसे पहले राहु और केतु के मिथकों को नकारते हुये अपने शोध आर्यभट्टीयम के ‘गोला’ नामक अंतिम खंड में यह उल्लेख किया है कि चंद्र और ग्रह सूर्य के परावर्तित प्रकाश के कारण दिखाई देते हैं और किसी आकाशीय वस्तु की छाया किसी दूसरे पिंड पर पडऩे से ग्रहण होते हैं। आज 2020 में भी राहू और केतु को ग्रहण की खगोलीय घटना के लिये जिंदा रखना विज्ञान के इस युग में उचित नहीं है। उन्होंने बताया कि विश्व योग दिवस पर रविवार को वलयाकार सूर्यग्रहण (एन्यूलर सोलर इकलिप्स) की इस खगोलीय घटना में सूर्य के चमकते कंगन सा मनोरम दृश्य राजस्थान, हरियाणा और उत्तराखंड के कुछ शहरों व ग्रामों से देखने को मिलेगा। वलयाकारिता की अवधि लगभग 30 सेकंड रहेगी। हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर-hindusthansamachar.in