नई दिल्ली, रफ्तार डेस्क: लोकसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में सियासी पारा चढ़ा है। वहीं, 27 फरवरी को राज्यसभा चुनाव होने हैं, जिसे लेकर मंथन एक महीने से शुरू है। उत्तर प्रदेश में राज्यसभा की कुल 10 सीटें खाली हुई हैं। इन 10 सीटों में से 7 सीटों पर बीजेपी की जीत पक्की मानी जा रही है। वहीं आठवीं सीट के लिए सपा और बीजेपी में जोर आजमाइश देखी जा रही है। आठवीं सीट अपने पाले में कैसे लाई जाए इसके लिए कल बीजेपी अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी राजा भैया यानी रघुराज प्रताप सिंह से उनके आवास मिलने पहुंचे। मुलाकात के दौरान योगी सरकार के मंत्री जेपीएस राठौर भी शामिल रहे। बीजेपी राज्यसभा चुनाव के लिए राजा भैया से समर्थन मांग रही है। क्योंकि राजा भैया को पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के पास दो विधायक हैं। बता दें भूपेंद्र चौधरी और जेपीएस राठौर से पहले सपा अध्यक्ष नरेश उत्तम राजा भैया से मुलाकात कर चुके हैं। वहीं अखिलेश यादव ने राजा भैया से फोन पर बात की। और समर्थन देने की बात कही।
सपा मुश्किल में दिख रही
लोकसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव की बेचैनी बढ़ती जा रही है। पहले जयंत चौधरी का एनडीए में शामिल होना और फिर पल्लवी पटेल का समाजवादी पार्टी से किनारा करना अखिलेश यादव को दौहरा झटका लगा है। वहीं राज्यसभा चुनाव के लिए भी अखिलेश की मुश्किल कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। अगर राज्यसभा के चुनावी गणित को समझे तो पल्लवी पटेल को हटा दे तो सपा के पास कुल 107 विधायकों का समर्थन है। इसके अलावा कांग्रेस के दो और बसपा के एक विधायक हैं। अगर बसपा भी पीछे हाथ खींचती है तो कांग्रेस को मिलकर 109 वोटो का समीकरण बनता है। वहीं, अगर राजा भैया के दो विधायकों के वोट का समर्थन प्राप्त होता है तो फिर यह संख्या बल 111 पहुंच जाएगी। इसके बाद पार्टी तीसरी राज्यसभा सीट आसानी से जीत जाएगी। मतलब साफ है कि पल्लवी और बसपा के समर्थन के बावजूद राजा भैया तीसरी सीट की नैया पार लगा देंगे। अगर ऐसा होता है तो आगामी लोकसभा चुनाव में राजा भैया और अखिलेश यादव मिलकर लड़ सकते है।
क्यों आई थी राजा भैया और अखिलेश के बीच दरार
साल 2012 में जब अखिलेश यादव की सरकार यूपी की सत्ता में आई थी। तो राजा भैया अखिलेश सरकार में मंत्री में थे। लेकिन दोनों के बीच इस दौरान रिश्तो में दरार पड़ गई थी। जब साल 2013 में कुंडा के ग्राम प्रधान की हत्या हुई थी। तब वहां हिंसा भड़की थी। और उपद्रियों ने सीओ जियाउल हक की हत्या कर दी थी। सीओ की पत्नी ने राजा भैया पर आरोप लगाए थे। मामला को देखते हुए अखिलेश यादव पर दबाव बढ़ गया था। जिसके बाद राजा भैया को मंत्री पद से इस्तीफा तक देना पड़ा था। इस्तीफा के बाद से ही अखिलेश और राजा भैया में रिश्ते बिगड़ने शुरू हो गए थे। लेकिन अब ऐसा लग रहा है की जमी बर्फ पिघलने लगी है और राज्यसभा चुनाव को देखते हुए अखिलेश यादव अपनी तरफ से हाथ बढ़ा रहे हैं।