नई दिल्ली, हि.स.। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने अनुच्छेद 370 पर आज छठे दिन की सुनवाई पूरी कर ली है। आज जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेंस की ओर से वकील राजीव धवन ने अपनी दलीलें पूरी कर ली। आज वकील दुष्यंत दवे ने आंशिक दलीलें रखीं। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान बेंच इस मामले पर अगली सुनवाई कल यानी 17 अगस्त को करेगी।
सुनवाई के दौरान वकील राजीव धवन
आज सुनवाई के दौरान जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती और पीपुल्स कांफ्रेंस के नेता सज्जाद लोन सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। महबूबा मुफ्ती ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट पर भरोसा है। सुनवाई के दौरान वकील राजीव धवन ने कहा कि अनुच्छेद 3 लागू करने से पहले एक शर्त है कि राष्ट्रपति की ओर से विधेयक को विधायिका के पास भेजना अनिवार्य है। यह अनुच्छेद 356 के तहत नहीं किया जा सकता है। यह एक संवैधानिक संशोधन है जो संविधान के लिए विध्वंसक है। धवन ने कहा कि अगर यह निलंबन रद्द हो जाता है तो राष्ट्रपति शासन भी रद्द हो जाएगा और जुलाई में किया गया इसका विस्तार भी रद्द हो जाएगा। उन्होंने कहा कि आपने संविधान में संशोधन किया और यह अनिवार्य प्रावधान हमें अनुच्छेद 3 की अनिवार्य आवश्यकताओं के मूल में ले जाता है, क्योंकि संपूर्ण जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम अनुच्छेद 3 और 4 से निकलता है।
प्रावधानों को निलंबित करने की भी शक्ति
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने पूछा कि हम अनुच्छेद 356(1)(सी) से कैसे निपटेंगे। राष्ट्रपति के पास 356 के तहत नोटिफिकेशन के संचालन के दौरान संविधान के कुछ प्रावधानों को निलंबित करने की भी शक्ति है। तब धवन ने कहा कि यह एक राज्य में लोकतंत्र को खत्म कर देता है। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि मान लीजिए कि राष्ट्रपति एक उद्घोषणा में संविधान के किसी प्रावधान के क्रियान्वयन को निलंबित कर देते हैं, तो क्या उस संशोधन को इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि यह आकस्मिक या पूरक नहीं है। या क्या ये शब्द 356(1)(बी) के पहले भाग का दायरा बढ़ा रहे हैं।
370 स्थायी होना चाहिए
धवन ने कहा कि मैंने कभी ऐसा प्रावधान नहीं देखा, जो वास्तव में किसी अनिवार्य प्रावधान को हटाने के लिए इसका उपयोग करता हो। यह असाधारण है। धवन ने कहा कि संसद कभी भी राज्य और राज्य विधानमंडल की जगह नहीं ले सकती। तब जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि सत्ता के अस्तित्व और सत्ता के दुरुपयोग के बीच अंतर है, इसलिए हमें इसे लेकर भ्रम नहीं होना चाहिए। धवन ने कहा कि शर्त राज्य की विधायिका के लिए विशिष्ट है। यहां विधायिका संसद बन जाती है और राज्यपाल राष्ट्रपति बन जाता है जबकि शर्तों के मुताबिक न तो संसद या राष्ट्रपति ऐसा कर सकते हैं। वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने अपनी दलील देते हुए कहा कि अनुच्छेद 370 असामान्य प्रारूप कौशल का एक नमूना है। अनुच्छेद 370 अस्थायी है लेकिन वस्तुगत है। एक बार यह हासिल हो जाने के बाद राष्ट्रपति के पास करने के लिए कुछ नहीं बचता। इसलिए जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा इस बात पर सहमत हुई कि 370 स्थायी होना चाहिए। दुष्यंत दवे ने कुछ फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि जब जम्मू और कश्मीर में ऐसा हो सकता है, तो गुजरात और महाराष्ट्र में ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता।
वकील कपिल सिब्बल ने पूरी की थीं अपनी दलीलें
इससे पहले 10 अगस्त को वकील जफर शाह, 9 अगस्त को एक याचिकाकर्ता की ओर से वकील गोपाल सुब्रमण्यम, 8 अगस्त को वकील कपिल सिब्बल ने अपनी दलीलें पूरी की थीं। कपिल सिब्बल ने जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के उद्देश्य को रेखांकित करने वाले शेख अब्दुल्ला का 5 नवंबर, 1951 के भाषण का हवाला दिया था, जिसमें भारत में विलय स्वीकार किया गया। सिब्बल ने जम्मू-कश्मीर में पुराने इतिहास का हवाला देते हुए कहा था कि जब हमलावर तेजी से श्रीनगर की ओर बढ़ रहे थे, तो हम राज्य को बचाने का केवल एक ही तरीका सोच सकते थे और वह एक मित्रवत पड़ोसी से मदद मांगना। वही राजा हरि सिंह ने किया था।
अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद केंद्र सरकार ने कई कदम उठाए
पांच सदस्यीय बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत हैं। 2 मार्च, 2020 के बाद इस मामले को पहली बार सुनवाई के लिए लिस्ट किया गया है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में कहा गया है कि अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद केंद्र सरकार ने कई कदम उठाए हैं। केंद्र सरकार ने राज्य की सभी विधानसभा सीटों के लिए एक परिसीमन आयोग बनाया है। इसके अलावा जम्मू और कश्मीर के स्थायी निवासियों के लिए भी भूमि खरीदने की अनुमति देने के लिए जम्मू एंड कश्मीर डेवलपमेंट एक्ट में संशोधन किया गया है। याचिका में कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर महिला आयोग, जम्मू-कश्मीर अकाउंटेबिलिटी कमीशन, राज्य उपभोक्ता आयोग और राज्य मानवाधिकार आयोग को बंद कर दिया गया है। अब सुनवाई के अंत में देखना होगा कि क्या सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले में केंद्र सरकार के जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने वाले फैसले को पलट पाएगा या नहीं।