हाथरस हिंसा की साजिश में गिरफ्तार पत्रकार सिद्दीक कप्पन की रिहाई मामले पर सुनवाई टली
हाथरस हिंसा की साजिश में गिरफ्तार पत्रकार सिद्दीक कप्पन की रिहाई मामले पर सुनवाई टली

हाथरस हिंसा की साजिश में गिरफ्तार पत्रकार सिद्दीक कप्पन की रिहाई मामले पर सुनवाई टली

नई दिल्ली, 14 दिसम्बर (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट ने हाथरस मामले पर हिंसा की साज़िश के लिए गिरफ्तार केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन की रिहाई मामले पर सुनवाई जनवरी तक के लिए टाल दी है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता केरल जर्नलिस्ट यूनियन ने यूपी सरकार के हलफनामे का जवाब देने के लिए समय मांगा। उसके बाद कोर्ट ने सुनवाई जनवरी के तीसरे हफ्ते तक टाल दिया है। सुनवाई के दौरान सरकार ने कहा कि आरोपित खुद जमानत मांग सकता है। केरल जर्नलिस्ट यूनियन की याचिका न सुनी जाए। पिछले 2 दिसम्बर को कोर्ट ने याचिकाकर्ता को इस मामले में कप्पन की पत्नी और बेटी को भी पक्षकार बनाने का निर्देश दिया। सुनवाई के दौरान कप्पन की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने अर्णब गोस्वामी पर सुप्रीम कोर्ट के दिए गए फैसले का जिक्र करते हुए कप्पन को भी रिहा करने की मांग की थी। सिब्बल ने कहा था कि अर्णब गोस्वामी को तब जमानत दी गई, जब उनकी जमानत याचिका सेशंस कोर्ट में लंबित थी। सिब्बल ने कहा था कि आधारहीन एफआईआर दर्ज की गई है। तब चीफ जस्टिस ने कहा कि क्यों नहीं इस मामले को हाई कोर्ट ले जाते हैं। सुनवाई के दौरान सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में तो आरोपित ने खुद याचिका दाखिल नहीं की बल्कि एक पत्रकार संगठन ने याचिका दाखिल की है। सिब्बल ने कहा कि कप्पन को फर्जी तरीके से फंसाया गया है। जिन दो लोगों को रिश्तेदार बताया गया, उनसे आरोपित का कोई संबंध नहीं है। तब मेहता ने कहा कि जो भी चीजें जांच में सामने आ रही हैं वो चौंकाने वाली हैं। चीफ जस्टिस ने सिब्बल से पूछा कि वैसा कोई केस बताइए, जिसमें तीसरे पक्षकार ने राहत की मांग करते हुए कोर्ट का रुख किया हो। कप्पन की रिहाई के लिए केरल वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन की याचिका का उत्तर प्रदेश सरकार ने विरोध किया है। पिछले 20 नवम्बर को यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स के सदस्य कप्पन की रिहाई की याचिका सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि वह वकीलों के संपर्क में है। वह पीएफआई का सचिव हैं और जिस अखबार के पत्रकार के रूप में वह हाथरस जा रहा था, वह 2018 में बंद हो चुका है। यूपी सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केरल वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन की इस दलील का विरोध किया था कि कप्पन को गैरकानूनी तरीके से हिरासत में रखा गया है। उन्होंने कहा था कि कप्पन को एक कोर्ट ने हिरासत में भेजा है। जमानत पर नौ दिनों तक सुनवाई हुई है। याचिकाकर्ता को हाई कोर्ट जाना चाहिए। पिछले 16 नवम्बर को कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया था। याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि मथुरा जेल में बंद कप्पन को वकील से भी नहीं मिलने दिया जा रहा है। सिब्बल ने कहा था कि एफआईआर में कप्पन के नाम का जिक्र नहीं किया गया है। तब चीफ जस्टिस ने कहा था कि हम इस केस की मेरिट पर नहीं जा रहे हैं लेकिन आप हाई कोर्ट क्यों नहीं जा रहे हैं। हम चाहते हैं कि धारा 32 के तहत याचिकाएं दायर नहीं की जाएं। सुप्रीम कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की गई है। याचिका में कप्पन की गिरफ्तारी को गैरकानूनी और असंवैधानिक बताते हुए तुरंत रिहाई की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि कप्पन की गिरफ्तारी सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल सरकार के मामले में किसी पत्रकार को अपने काम के दौरान गिऱफ्तार करने को गलत बताया था। कप्पन एक मलयाली आनलाइन न्यूज पोर्टल में कंट्रीब्यूटर हैं। पिछले 5 अक्टूबर को हाथरस टोल प्लाजा पर यूपी पुलिस ने तीन अन्य पत्रकारों अतीक-उर रहमान, मसूद अहमद और आलम को गिरफ्तार कर लिया था। यूपी पुलिस ने तीनों पर पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया से संबंध होने के आरोप में गिरफ्तार किया था। पुलिस के मुताबिक इन पत्रकारों के पास से मोबाइल फोन, लैपटॉप और कुछ साहित्य बरामद किए गए थे जिनका शांति पर असर पड़ने की आशंका थी। हिन्दुस्थान समाचार/संजय/बच्चन-hindusthansamachar.in

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