महज रस्म अदायगी नहीं जनरल नरवणे की नेपाल यात्रा
महज रस्म अदायगी नहीं जनरल नरवणे की नेपाल यात्रा

महज रस्म अदायगी नहीं जनरल नरवणे की नेपाल यात्रा

डॉ. प्रभात ओझा बुधवार, 4 नवंबर से हमारे सेना प्रमुख मनोज मुकुंद नरवणे के तीन दिवसीय नेपाल दौरे पर भारतीय उप महाद्वीप की नजरें रहेंगी। दरअसल, जनरल नरवणे का यह दौरा दोनों सेनाओं के बीच ही नहीं बल्कि राजनयिक स्तर पर दोनों सरकारों के मध्य भी सम्बंधों को मजबूती प्रदान कर सकता है। निश्चित ही पिछले दिनों भारत-नेपाल सीमा विवाद और नेपाल पर चीन के कथित दबाव के बीच यह यात्रा बहुत महत्वपूर्ण है। जनरल नरवणे की नेपाल यात्रा के दूसरे दिन राष्ट्रपति भवन में विशेष समारोह के दौरान नेपाल की राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी भारतीय सेना प्रमुख को नेपाल सेना के जनरल का मानद रैंक भी प्रदान करेंगी। नरवणे अलग से भी राष्ट्रपति से मुलाकात करेंगे। उनके सम्मान में उसी रात सेना मुख्यालय में नेपाल के सेना प्रमुख द्वारा रात्रिभोज दिया जायेगा। भारत लौटने से पहले जनरल नरवणे अपनी यात्रा के अंतिम दिन नेपाल के प्रधानमंत्री व रक्षा मंत्री केपी शर्मा ओली से प्रधानमंत्री निवास पर मुलाकात करेंगे। वैसे तो भारतीय सेना प्रमुख और नेपाल के सेना प्रमुख को परस्पर एक-दूसरे देश द्वारा दी जाने वाली मानद उपाधि एक परंपरा का निर्वाह है, फिर भी यह दोनों देशों के बीच परंपरागत और मजबूत रिश्तों की नींव की तरह है। अभी पिछले साल नेपाली सेनाध्यक्ष पूर्णचन्द्र थापा को भारत ने भी अपनी सेना के मानद अध्यक्ष की उपाधि दी। यह परंपरा नई नहीं है। सबसे पहले ऐसा 1950 में हुआ, जब नेपाल ने जनरल केएम करियप्पा को यह उपाधि दी थी। जनरल नरवणे की नेपाल यात्रा ऐसे वक्त में हो रही है, जब कुछ समय पहले ही दोनों देशों के रिश्तों में मनमुटाव देखा गया था। तब भारत ने अपने प्रदेश उत्तराखंड में लिपुलेख और धारचूला की 80 किलोमीटर की सड़क का निर्माण किया था। इस पर नेपाल ने आपत्ति जताते हुए इन क्षेत्रों को अपने देश का अंग बताया था। इतना ही नहीं, नेपाल की संसद ने विधिवत एक नक्शा भी पारित किया, जिसमें लिपुलेख, कालापानी के साथ लिम्पियाधुरा को नेपाल का हिस्सा दिखाया गया था। इसके बाद भारत- नेपाल सीमा पर गोली चलने तक की घटना हुई, जिसमें कुछ भारतीय नागरिक घायल हो गए। पहली बार नेपाल ने भारत से लगी अपनी सीमा पर 'बॉर्डर पोस्ट' का निर्माण भी किया। तब भारतीय जनरल नरवणे ने इस पूरी कार्रवाई को 'किसी के इशारे' पर किया गया बताया था। बिना नाम लिए भी साफ था कि जनरल नरवणे चीन की ओर संकेत कर रहे हैं। यहां ध्यान रखना होगा कि अभी पिछले महीने के मध्य में नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने अपने भरोसेमंद ईश्वर पोखरेल को रक्षा मंत्री के पद से हटा दिया। वे सरकार में जरूर बने हुए हैं, पर थल सेना अध्यक्ष जनरल नरवणे की नेपाल यात्रा प्रारंभ होने के दो सप्ताह पहले वहां के रक्षा मंत्री को पद से हटाए जाने के अपने निहितार्थ हैं। भारत के साथ सीमा पर विवाद और खुद मंत्री का अपनी सेना से मनमुटाव प्रधानमंत्री ओली को पसंद नहीं आया। माना कि सीमा पर बयान और नया नक्शा पारित कराने में ओली ने भी बढ़-चढ़कर काम किया था, पर अपने रक्षा मंत्री को हटाकर और यह मंत्रालय खुद के पास रखकर उन्होंने भारत से परंपरागत सम्बंधों का ध्यान रखने का संकेत दिया है। रक्षा मंत्री रहते पोखरेल ने नेपाली सेना के अधिकारियों को भारतीय थलसेना अध्यक्ष जनरल नरवणे के नेपाल संबंधी बयान का विरोध करने का निर्देश दिया था। नेपाली सेना की अनिच्छा के बावजूद वहां के रक्षा मंत्री ने चीन से विवादित और बेकार कोरोना टेस्ट किट और अन्य जरूरी मेडिकल सामान लेने का भी आदेश दिया था। नेपाल के रक्षा मंत्री को पद से हटाकर वहां के प्रधानमंत्री ने रिश्तों में आई खटास कम करने के संकेत दिए हैं, तो शायद उन्हें इसका भी अहसास है कि दोनों देशों के बीच मजबूत रिश्ता एकतरफा नहीं है। नेपाल की आंतरिक सुरक्षा और आतंकी गतिविधि से सचेत करने का काम भी भारत करता रहा है। पिछले ही दिनों भारत-नेपाल सीमा पर कट्टरपंथी गतिविधि बढ़ने के संकेत मिले थे। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने अपनी ताजा रिपोर्ट में भारत-नेपाल सीमा पर कट्टरपंथी गतिविधि बढ़ने का खुलासा किया। बिहार से सटी नेपाली सीमा के पास बड़ी संख्या में मस्जिदें और गेस्ट हाउस निर्माण के पीछे पाकिस्तान के दावत-ए-इस्लामिया की ओर से धन मिलने के प्रमाण दिए गए। भारत और नेपाल के बीच इस खुली सीमा का फायदा पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई अपने बेस के तौर पर उठाना चाहती है। इस ओर से सचेत रहना भारत और नेपाल, दोनों के लिए जरूरी है। दोनों देशों के बीच परंपरागत सामाजिक और भौतिक जरूरतें तो मूल में हैं ही। कौन नहीं जानता कि भारतीय सेना में आज भी गोरखा रेजिमेंट है। इस रेजिमेंट में नेपाल के नागरिकों की भर्ती ब्रितानी हुकूमत के दौर से ही होती आ रही है। इस टुकड़ी के भारतीय अफसर भी अनिवार्य रूप से गोरखाली भाषा सीखते हैं, तो हर जवान हथियार के तौर पर खुखरी भी रखता है। नेपाल की सेना के जूनियर और सीनियर कमीशंड अफसर हमारे संस्थानों में प्रशिक्षण लेते ही हैं। नेपाली सेना प्रमुख जनरल पूर्ण चन्द्र थापा भारत के 'नेशनल डिफ़ेन्स कॉलेज' से ही स्नातक हैं। उन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी से रक्षा और सामरिक मामलों में स्नातकोत्तर डिग्री भी ली है। सेना के साथ भारत के बिहार और झारखंड पुलिस में भी नेपाली नागरिक शामिल किए जाते हैं। बिहार मिलिट्री पुलिस (बीएमपी) और झारखण्ड आर्म्ड पुलिस (जैप) में नेपाली जवान देखे जा सकते हैं। रांची में तो जैप के अतिथि गृह का नाम भी 'खुखरी गेस्ट हाउस' है। अपने ऐसे पड़ोसी और परंपरागत मित्र देश नेपाल की यात्रा के दौरान भारतीय जनरल की यात्रा के दौरान सेना सम्बंधी और भी कार्यक्रम हैं। निश्चित ही इस मित्रता में नए और मजबूत आयाम जुड़ेंगे। (लेखक, हिन्दुस्थान समाचार समूह की पत्रिका `यथावत' के समन्वय सम्पादक हैं।)-hindusthansamachar.in

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