बिहार विधानसभा चुनाव: बछवाड़ा में समस्याओं के बीच सूरमाओं की तैयारी
सुरेन्द्र बेगूसराय, 22 सितम्बर (हि.स.)। बिहार विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। संभवतः इसी सप्ताह चुनाव आयोग तारीखों का एलान कर डुगडुगी बजा दे। ऐसे में टिकट के लिए भागदौड़ तेज हो गई है। सीटों के गठबंधन की तस्वीर साफ नहीं हुई है और गठबंधन के दलों में जिले की सभी सात सीटों को अपने पाले में करने के लिए माथापच्ची जारी है। गठबंधन के तहत जिस भी दल के हिस्से में सीट आए, उम्मीदवारों की संख्या देखते हुए दलीय नेताओं को टिकट देने में पसीने छूट जाएंगे। बेगूसराय के सभी सीटों पर जारी गुणा- भाग में सबसे अधिक सस्पेंस बछवाड़ा सीट पर बना हुआ है। यहां हर दल के नेता जमीन तलाशने में लगे हैं। चुनावी परिदृश्य पर नजर डालें तो यह क्षेत्र आजादी के बाद से ही अपनी अलग पहचान बनाए हुए है। 1952 के पहले विधानसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस के मिट्ठन चौधरी, 1957 में सोशलिस्ट पार्टी के रामबहादुर शर्मा, 1962 में कांग्रेस की गिरीश कुमारी, 1967 में सोशलिस्ट पार्टी के रामबहादुर शर्मा, 1969 में भुवनेश्वर राय तथा 1972, 1977 एवं 1980 में कांग्रेस के रामदेव राय ने जीत हासिल की। 1985 में रामदेव राय को कांग्रेस ने समस्तीपुर लोकसभा से एमपी का टिकट दिया और उन्होंने कर्पूरी ठाकुर को पराजित कर चुुनाव जीत लिया। उसी वर्ष हुए विधानसभा चुनाव में बछवाड़ा से सीपीआई के अयोध्या प्रसाद महतों ने चुनाव जीतकर यहां से सीपीआई की नई पारी की शुरुआत की। 1990 एवं 1995 में सीपीआई के अवधेश राय तथा 2000 में राजद के उत्तम यादव एवं 2005 के फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में रामदेव राय ने बतौर निर्दलीय भाजपा की मदद से जीत हासिल की। नवम्बर में दुबारा चुनाव होने पर रामदेव राय फिर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतने में सफल रहे। लेकिन सीपीआई के अवधेश राय ने उन्हें 2010 के चुनाव में पराजित कर सीपीआई की खोयी जमीन वापस कर ली। 2015 के चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर रामदेव राय फिर चुनाव जीत गए। एमएलए रहते ही पिछले महीने उनका देहांत हो गया है। उसके बाद राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई तथा यहां से कभी नहीं जीत सकी एनडीए एक बार यहां अपनी बादशाहत कायम करने के लिए हर पहलू पर दिमाग लगा रही है। राजनीतिक विश्लेषक महेश भारती कहते हैं, इस वर्ष बछवाड़ा का परिदृश्य बदला-बदला है। करीब 50 वर्ष से बछवाड़ा की राजनीति को प्रभावित करने वाले और एक ध्रुव रहे रामदेव राय इस बार नहीं हैं। कांग्रेस पार्टी से उनके पुत्र शिवप्रकाश उर्फ गरीब दास को टिकट देने की चर्चा है। कांग्रेस के कई पुराने नेता भी टिकट की लाइन में हैं। कांग्रेस की सीटिंग सीट होने की वजह से महागठबंधन में इस सीट का कांग्रेस कोटे में जाना तय माना जा रहा है। हालांकि राजद यह सीट कांग्रेस से ले भी सकती है। उसके कई नेताओं की नजर इस पर है। इधर पिछले दो चुनावों से यहां से लोजपा से अरविंद सिंह चुनाव लड़ रहे थे। इस बार लोजपा से उनकी भावज और बेगूसराय जिला परिषद के पूर्व अध्यक्ष इंदिरा देवी और दूसरे में विनय सिंह के नाम की चर्चा है। भाजपा से दर्जन भर नेता टिकट के लिए दिल्ली-पटना की दौड़ लगा रहे हैं। सबसे अजीबोगरीब स्थिति महागठबंधन को लेकर सीपीआई की है। पिछले 35 वर्षों में सीपीआई का इस क्षेत्र पर 20 वर्ष तक कब्जा रहा है। कांग्रेस राजद के महागठबंधन में सीपीआई के जाने का मतलब है सीटिंग सीट के आधार पर कांग्रेस को यह सीट छोड़ना होगा। सीपीआई इसके लिए शायद ही तैयार हो। बछवाड़ा उसके जनाधार का क्षेत्र है और वह इसे गंवाना नहीं चाहेगी। क्षेत्र में गंगा कटाव, सड़क आदि की समस्या है। विकास के मुद्दे से अलग पार्टीगत मतदाताओं को लेकर यह क्षेत्र चर्चित रहा है। फिलहाल सबकी नजर इस बात पर टिकी है कि दोनों गठबंधन में किस-किस के हिस्से में यह सीट जाती है और गठबंधन किस दावेदार पर विश्वास करता है। हिन्दुस्थान समाचार-hindusthansamachar.in