फटे-हुए-बयान-और-संस्कारों-का-मौसम-(व्यंग्य)
फटे-हुए-बयान-और-संस्कारों-का-मौसम-(व्यंग्य)

फटे हुए बयान और संस्कारों का मौसम (व्यंग्य)

यह आज की बात नहीं है, इतिहास गवाह है कि महाजन फटा हुआ बयान भी बांटना शुरू कर दें तो अड़ोस पड़ोस में काफी फर्क पड़ने लगता है। कितनी ही ऐसी चीज़ों की बिक्री और बाज़ार भाव बढ़ जाते हैं जो बरसों से अबिकाऊ रही । फटेहाली भी हाथों हाथ क्लिक »-www.prabhasakshi.com

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