पैरा स्वीमर प्रशांत कर्माकर के निलंबन पर पीसीआई और खेल मंत्रालय से हाईकोर्ट ने मांगा जवाब
पैरा स्वीमर प्रशांत कर्माकर के निलंबन पर पीसीआई और खेल मंत्रालय से हाईकोर्ट ने मांगा जवाब

पैरा स्वीमर प्रशांत कर्माकर के निलंबन पर पीसीआई और खेल मंत्रालय से हाईकोर्ट ने मांगा जवाब

नई दिल्ली, 08 अक्टूबर (हि.स.)। दिल्ली हाईकोर्ट ने अर्जुन अवार्डी और पैरा स्वीमर प्रशांत कर्माकर की पैरालंपिक कमेटी ऑफ इंडिया (पीसीआई) की ओर से तीन साल तक निलंबित करने के फैसले के खिलाफ सुनवाई करते हुए पीसीआई और केंद्रीय युवा और खेल मंत्रालय को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। जस्टिस ज्योति सिंह की बेंच ने 4 हफ्ते के अंदर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। मामले की अगली सुनवाई 12 जनवरी को होगी। सुनवाई के दौरान कर्माकर की ओर से वकील अमित शर्मा और सत्यम सिंह राजपूत ने कहा कि पैरालंपिक कमेटी ऑफ इंडिया आईडब्ल्यूएएस वर्ल्ड गेम्स 2020 में प्रशांत कर्माकर के प्रवेश को स्वीकार करे। उन्हेंने कहा कि कर्माकर पर लगाए गए प्रतिबंध को हटाया जाए ताकि वो टोक्यो पैरालंपिक गेम्स में हिस्सा लेने की न्यूनतम योग्यता प्राप्त कर सके। उसके बाद कोर्ट ने पीसीआई और केंद्रीय युवा और खेल मंत्रालय को चार हफ्ते के अंदर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने जवाब मिलने पर याचिकाकर्ता को भी जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। सुनवाई के दौरान कर्माकर की ओर से कहा गया था कि केंद्रीय युवा और खेल मंत्रालय ने पैरालंपिक कमेटी को 2011, 2015 और 2019 में रोक लगा चुका है। पैरालंपिकि कमेटी में गड़बड़ियों की वजह से इंटरनेशनल पैरालंपिक कमेटी भी उस पर तीन बार रोक लगा चुकी है। कर्माकर की ओर से कहा गया कि पैरालंपिक कमेटी ने न सिर्फ कर्माकर पर रोक लगाया बल्कि इसने अपने अध्यक्ष राव इंद्रजीत को भी निलंबित कर रखा है जो कि केंद्र सरकार में मंत्री हैं। पहले की सुनवाई में प्रतिवादी उपस्थित नहीं हुए थे याचिका में कहा गया है कि प्रशांत कर्माकर ने 44 अंतर्राष्ट्रीय और 74 राष्ट्रीय मेडल जीते हैं। कर्माकर एक प्रशिक्षित कोच हैं जिन्होंने रियो पैरालंपिक 2016 में भारत का कोच के रुप में प्रतिनिधित्व किया था। पीसीआई ने 7 फरवरी 2018 को कर्माकर को तीन साल के लिए निलंबित करते हुए स्वीमिंग के किसी भी इवेंट में भाग लेने पर रोक लगा दिया था। याचिका में कहा गया है कि पीसीआई का ये फैसला मनमाना और गैरकानूनी है। याचिका में कहा गया है कि पीसीआई ने कर्माकर के खिलाफ बेबुनियाद और झूठे आरोप लगाकर कार्रवाई की है। याचिका में कहा गया है कि कर्माकर ने पीसीआई में आर्थिक गड़बड़ियों, भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन को सामने लाने की कोशिश की जिसकी सजा के तौर पर उनके खिलाफ प्रतिबंध लगाया गया। पीसीआई की अनुशासनात्मक कमेटी ने नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत का पालन नहीं किया और साक्ष्यों पर गौर नहीं किया। अनुशासनात्मक कमेटी ने शिकायतकर्ता के क्रास-एग्जामिनेशन की अनुमति भी नहीं दी और सरसरी तौर पर कर्माकर को दोषी करार दिया। यहां तक कि कर्माकर को शिकायत की प्रति तब दी गई जब सारी अनुशासनात्मक प्रक्रिया पूरी हो गई। याचिका में बिना चुनाव हुए पैरालंपिक स्वीमिंग ऑफ पीसीआई के चेयरमैन के पद पर वीके डबास के बने रहने पर सवाल उठाया गया है। याचिका में कहा गया है कि वीके डबास कैसे स्वयं को कोच के पद पर नियुक्त कर सकते हैं। इस सबके खिलाफ आवाज उठाने को सकारात्मक तौर पर नहीं लिया गया और अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए कर्माकर के खिलाफ कार्रवाई की गई। हिन्दुस्थान समाचार/संजय/सुनीत-hindusthansamachar.in

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