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दिल्ली दंगों के 1 साल: हे भगवान ऐसी फरवरी कभी न आए!
कितनी मामूली हसरतें होती है एक साधारण आदमी की। मेहनत के पसीने से बरक्कत की दो रोटियां, गुजारे लायक छत, बच्चों को तालीम मिल जाए और सोते हुए खिड़कियों के कांच का टूट जाने का अंदेशा ना हो। डर न लगे घर से बाहर निकलते हुए। ईश्वर और अल्लाह के क्लिक »-www.prabhasakshi.com