इंटरनेट का बढ़ता क्रेज: बच्चे हो रहे डिप्रेशन का शिकार, जानें हर साल कितने हो रहे प्रभावित

फरवरी के दूसरे सप्ताह के दूसरे दिन होता है। इस वर्ष यह दिवस 7 फरवरी को मनाया जा रहा है। 2014 में सुरक्षित इंटरनेट दिवस ईयू सेफ बॉर्डर प्रोजेक्ट की उपज था।
इंटरनेट का बढ़ता क्रेज: बच्चे हो रहे डिप्रेशन का शिकार, जानें हर साल कितने हो रहे प्रभावित


नई दिल्ली, एजेंसी। इंटरनेट (अंतरजाल) उपयोग के दुष्प्रभाव को रोकने और सही उपयोग को लेकर प्रतिवर्ष ‘सुरक्षित इंटरनेट दिवस’ मनाया जाता है। यह हर साल फरवरी के दूसरे सप्ताह के दूसरे दिन होता है। इस वर्ष यह दिवस 7 फरवरी को मनाया जा रहा है। 2014 में सुरक्षित इंटरनेट दिवस ईयू सेफ बॉर्डर प्रोजेक्ट की उपज था।

अब यूरोपियन कमीशन के सहयोग के साथ इनसेफ/इनहोप ऑर्गेनाइजेशन का उपक्रम है। अब यह 170 से भी ज्यादा देशों में मनाया जाता है। इंटरनेट को सभी के लिए और विशेष रूप से बच्चों और युवाओं के लिए सुरक्षित एवं बेहतर बनाने के लिए यह दिवस मनाया जाता है। वर्तमान में इस दिवस की महत्ता इसलिए कई गुना बढ़ जाती है क्योंकि अब लोग डिजिटलाइज होते जा रहे हैं। पूरी दुनिया इंटरनेट पर आश्रित हो गई है।

इंटरनेट से घर बैठे ही दुनिया के किसी भी कोने की सैर कर सकते हैं

इंटरनेट ने हमारे हर कार्य को आसान बना दिया है। महज एक क्लिक पर बहुत सारे कार्य पलक झपकते ही हो जाते हैं। इंटरनेट की मदद से हम घर बैठे ही दुनिया के किसी भी कोने की सैर कर सकते हैं। कहीं की भी सारी जानकारी चंद पलों में हासिल कर सकते हैं। बच्चों की पढ़ाई-लिखाई हो या ऑफिस का कामकाज, इंटरनेट ने सब कुछ बेहद आसान कर दिया है। एक ओर जहां इंटरनेट की इस मायावी दुनिया के अनगिनत लाभ हैं, वहीं इसके नुकसान भी कम नहीं हैं।

इंटरनेट का अधिक उपयोग करने वाले लोगों में डिप्रेशन की खतरा सर्वाधिक होता है

इंटरनेट अब केवल कम्युनिकेशन टूल नहीं है बल्कि इसने इंसानों की निजी और व्यावसायिक दोनों ही जिंदगियों को प्रभावित किया है। विभिन्न शोधों के मुताबिक इंटरनेट का अधिक उपयोग करने वाले लोगों में डिप्रेशन की खतरा सर्वाधिक होता है। आज वित्तीय लेनदेन में इंटरनेट का बड़े स्तर पर उपयोग हो रहा है और ऐसे में ऑनलाइन धोखाधड़ी के मामले भी निरन्तर बढ़ रहे हैं। इंटरनेट की हर किसी तक आसान पहुंच ने कई तरह की दिक्कतों जैसे साइबर बुलिंग, फिशिंग, व्यक्तिगत जानकारी के सार्वजनिक होने के डर के साथ कई और परेशानियों के लिए भी रास्ते खोल दिए हैं।

दुनियाभर में सभी इंटरनेट उपयोगकर्ताओं का एक तिहाई बच्चे हैं

इंटरनेट की लत लग जाने पर इसका सबसे बड़ा दुष्प्रभाव बच्चों पर पड़ता है। दरअसल कोरोनाकाल के बाद से ज्यादातर बच्चे इंटरनेट के उपयोग के आदी होते जा रहे हैं और इसका सीधा असर उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में सभी इंटरनेट उपयोगकर्ताओं का एक तिहाई बच्चे हैं। कुछ देशों के युवाओं में इंटरनेट का उपयोग राष्ट्रीय औसत से दोगुना है।

इंटरनेट पर सही और गलत हर प्रकार की जानकारी बगैर फिल्टर के मौजूद होती है

बच्चों को इंटरनेट के दुष्प्रभाव से सुरक्षित रखने के लिए यूनिसेफ द्वारा ‘स्टे सेफ ऑनलाइन’ अभियान चलाया जा रहा है। इसका उद्देश्य लड़कों-लड़कियों के बीच ऑनलाइन दुनिया को सुरक्षित रूप से नेविगेट करने के बारे में जागरूक करना इंटरनेट की आदत नशे की लत के समान ही होती है। ऐसे बच्चे बाहरी दुनिया से कटकर ऑनलाइन दुनिया में मस्त रहने लगते हैं, जिससे उसकी शारीरिक सक्रियता कम होने लगती है। इसका बच्चे की मानसिक स्थिति पर गंभीर असर पड़ता है। वैसे भी इंटरनेट पर सही और गलत हर प्रकार की जानकारी बगैर फिल्टर के मौजूद होती है।

बच्चे की मानसिक स्थिति पर दुष्प्रभाव पड़ता है

बच्चा जब इंटरनेट ब्राउजिंग करता है तो उसे इंटरनेट पर कई तरह की फेक जानकारियां भी मिलती हैं। अब बच्चों में इतनी समझ तो नहीं होती कि वे अपने विवेक का इस्तेमाल कर सही-गलत की पहचान कर सकें। यही नहीं, यूट्यूब तथा अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर बेवजह सक्रिय रहने से भी बच्चे की मानसिक स्थिति पर दुष्प्रभाव पड़ता है। जरूरत से ज्यादा इंटरनेट के इस्तेमाल से बच्चे का मन पढ़ाई से हटने लगता है।

प्रत्येक तीन में से एक बच्चे ने साइबर बुलिंग का अनुभव किया है

‘इंटरनेट वॉच फाउंडेशन’ के अनुसार पचास हजार से भी ज्यादा ऐसे लिंक पाए गए थे, जिनमें चाइल्ड सेक्सुअल एब्यूज से जुड़ी सामग्री थी। इसी प्रकार एक अन्य रिपोर्ट में यह चौंकाने वाला खुलासा भी हुआ था कि प्रत्येक तीन में से एक बच्चे ने साइबर बुलिंग का अनुभव किया है। इससे स्पष्ट है कि डिजिटल तकनीक एक ओर जहां बच्चों की पढ़ाई-लिखाई में मददगार साबित हो रही है, वहीं इंटरनेट की लत बच्चों के लिए बेहद खतरनाक भी साबित हो रही है। किशोर या बच्चे इंटरनेट की लत के कारण मानसिक रूप से विचलित हो जाते हैं और दैनिक कार्यों को निपटाने में भी काफी परेशानी का अनुभव करते हैं।

बच्चों में अवसाद की बड़ी वजह बन रहा इंटरनेट का ज्यादा उपयोग करना

बच्चों में इंटरनेट के उपयोग की आदत उन्हें गुस्सैल और चिड़चिड़ा बना सकती है, जो उनके मानसिक बदलाव की निशानी है। बच्चा जब घंटों तक मोबाइल फोन पर आंखें गड़ाये गेम खेलता है या सोशल मीडिया का इस्तेमाल करता है और ऐसे में यदि उससे कुछ देर के लिए भी फोन ले लिया जाए तो उसे अपने बड़ों पर भी क्रोध आता है। इंटरनेट का अत्यधिक उपयोग बच्चों में अवसाद की बड़ी वजह बन रहा इंटरनेट का ज्यादा उपयोग करने वाले बच्चों को प्रायः रात में कम नींद आने की समस्या भी होने लगती है।

माता-पिता और अभिभावकों का सर्तक रहना जरूरी

इंटरनेट के लती होने के कारण वे देर रात तक इंटरनेट का उपयोग करते हैं, जो समय के साथ उनमें अनिद्रा की समस्या पैदा करने के साथ कई अन्य मानसिक और शारीरिक समस्याओं का भी कारण बनता है। इंटरनेट पर जरूरत से ज्यादा समय बिताने से बच्चे की आंखों और शरीर को आराम नहीं मिलता और ऐसे में उसकी शारीरिक सक्रियता कम होने से उसके शारीरिक विकास में रुकावट आती है। इसलिए माता-पिता और अभिभावकों का सर्तक रहना जरूरी है।

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