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प्राचीन तकनीकों से हम दुनिया को दे सकते हैं स्वर्ण भारत की झलक

जयपुर, 13 अगस्त (आईएएनएस)। राजस्थान के बाड़मेर जिले की फैशन डिजाइनर रूमा देवी, जिन्होंने सिर्फ आठवीं कक्षा तक पढ़ाई के बावजूद करीब 22,000 महिलाओं को अच्छी नौकरी देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाया है, उनका मानना है कि भारतीयों के पास प्रचुर ज्ञान है, जिसे स्वर्ण भारत की एक झलक पाने के लिए उपयोग में लाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, हमारी भारतीय जड़ों में प्रचुर ज्ञान और प्रौद्योगिकियां थीं, जिन्हें वर्तमान युग में भुला दिया गया है। दुनिया को स्वर्ण भारत की एक झलक देने के लिए प्राचीन तकनीकों को व्यवहार में लाने की जरूरत है। रूमा की क्लाइंट सूची में दुनिया भर के प्रख्यात डिजाइनर शामिल हैं, जो उनके साथ काम करने के लिए बाड़मेर गए हैं। उनकी उत्कृष्ट हाथ की कढ़ाई ने कई ग्राहकों को आकर्षित किया है, जिनमें भारत और विदेशों से फैशन डिजाइनर अनीता डोंगरे, बीबी रसेल, अब्राहिम ठाकोर, रोहित कामरा, मनीष सक्सेना और कई अन्य शामिल हैं। बॉलीवुड आइकन अमिताभ बच्चन ने उन्हें लोकप्रिय शो कौन बनेगा करोड़पति में होस्ट किया था, जिसके बाद उनकी कहानी व्यापक रूप से लोकप्रिय हो गई। रूमा ने टेक्सटाइल फेयर इंडिया 2019 में डिजाइनर ऑफ द ईयर का खिताब जीता था। इसके अलावा, बाड़मेर जिले और उसके आसपास हजारों महिलाओं के जीवन को बदलने के लिए राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद से 2018 में नारी शक्ति राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किया था। उन्होंने कहा, ऐसी बहुत सी चीजें हैं, जिन्हें यदि युवाओं द्वारा पुनर्जीवित किया जाए, तो वे पूरी दुनिया को प्रभावित कर सकती हैं। स्वर्ण भारत, जिसका हमने अतीत में प्रतिनिधित्व किया था, वह अभी भी मौजूद है। दुनिया को स्वर्णिम भारत की एक झलक देने के लिए प्राचीन तकनीकों को व्यवहार में लाना समय की आवश्यकता है। राजस्थान की देहाती ग्रामीण गलियों से निकली इस फैशनिस्टा ने एक ऐसा रास्ता तराशकर अपनी सफलता की कहानी लिखी है, जिसमें बॉलीवुड स्क्रिप्ट के सभी तत्व मौजूद हैं। वह एक आर्थिक रूप से कमजोर परिवार में पैदा हुई थीं और जब वह सिर्फ पांच साल की थीं, तब उन्होंने अपनी मां को खो दिया था। उनके पिता ने फिर से शादी की, जिसके बाद उनका असली संघर्ष शुरू हुआ। जब वह आठवीं कक्षा में पहुंचीं तो उनके परिवार के सदस्यों ने उनका नाम स्कूल से हटा दिया और उन्हें घर के कामों में लगा दिया। पानी लाने के लिए वह रोजाना करीब 10 किलोमीटर का सफर तय करती थीं। 17 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी, लेकिन गरीबी उनका पीछा करती रही। तंग आकर, उन्होंने लगभग 10 महिलाओं का एक समूह बनाया और उनमें से प्रत्येक से हाथ से कढ़ाई वाले बैग बनाने के लिए कच्चा माल खरीदने के लिए 100 रुपये एकत्र किए। बैग गांवों में बेचे गए और जल्द ही उनकी मांग बढ़ गई। बाड़मेर में ग्रामीण विकास और चेतना संस्थान को उसके काम का पता चला और 2018 में वह संगठन की सदस्य बन गईं। 2010 में, वह संगठन की अध्यक्ष बनीं और तब से, रूमा ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। --आईएएनएस एसजीके

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