when-will-the-shameless-merchants-of-death-stop
when-will-the-shameless-merchants-of-death-stop

कब रुकेंगे मौत के बेशर्म सौदागर !

ऋतुपर्ण दवे आपदा में भी अगर किसी की इँसानियत मर गई तो वह जीते जी मुर्दे से भी बदतर है ! इससे बड़ा मौजूदा सवाल यह कि भरोसा किस पर करें? उन दवा विक्रेताओं पर जिन्हें हर कोई आशा भरी निगाहों से देखता है। उससे भी बड़ा सच यह कि मोहल्ले में हर किसी को पहला इलाज यानी फर्स्ट एड देने वाला वही होता है लेकिन नकली इँजेक्शन और दवाओं का कोरोना महामारी की आपदा के बीच जो भाँडाफोड़ हुआ, उससे दवा विक्रेताओं की नीयत पर सवाल जरूर उठ खड़ा हुआ है। सभी कुसूरवार हैं ऐसा हरगिज नहीं। चंद विक्रेताओं से लेकर कुछ फार्मा कंपनियों की मिलीभगत की जो सच्चाइयाँ सामने आई हैं उसने हर किसी को हैरान और परेशान कर दिया है। बेशक आपदा के इस अवसर में कागज की दौलत को अपना भगवान बनाने वाले चँद कथित हत्यारों के चलते हर कहीं इन्हें शक से देखा जाना गलत होगा लेकिन कहते हैं न एक मछली से सारा तालाब गँदा हो जाता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सबसे बेदाग, असली और भरोसे की दुकान देश में केवल दवाओं की मानी जाती थी। अब इसमें भी चँद मुनाफाखोरों ने बट्टा लगा दिया। क्या शहरी क्या गाँववाले, सबका पहला डॉक्टर दवाई वाला ही होता है। हद तो तब हो गई कि कोरोना महामारी पर सबसे असरकारक कहे जाने वाले रेमडेसीवीर इँजेक्शन के तार नेपाल से जुड़ते दिखे। उसके बाद तो जैसे पूरे देश में जहाँ-तहाँ मामले मिलने से लोग सकते में हैं। न्यूमोनिया में काम आने वाले पाउडर से नोएडा जैसे शहर में तो कहीं नमक और ग्लूकोज से बने इँजेक्शन को जबलपुर में खपाए जाने के मामले ने जैसे होश उड़ा दिए। इसके अलावा मोरपेनम जेनरिक इँजेक्शन का लेबल बदल रेमडेसिविर में तब्दील किए जाने तक घिनौना काम नक्कालों ने कर इँसानियत को ही दागदार कर दिया। ऐसा नहीं है कि यह केवल छोटे स्तर पर हो रहा हो। इसमें बड़े-बड़े लोगों के शामिल होने को लेकर रोजाना कोई न कोई खुलासा हो रहा है। उप्र में तो एक पूर्व मंत्री का भाँजा भी पकड़ा गया। मौजूदा तय दामों 900 रुपए से लेकर 3500 रुपए में बिकने वाले असली इँजेक्शन की कमी के चलते नकली इँजेक्शन 35 हजार से 50 से 75 हजार और 1 लाख रुपए तक में कालाबाजार में बिकने लगा। हैरान कर देने वाली सच्चाई तो और भी डराती है। कमाई के इस काले कारोबार में जिन अस्पतालों से नई जिन्दगी की आस होती है अगर वही जिंदगी को तबाह करने में शामिल हो जाए तो भरोसा किसपर किया जाए? मप्र के जबलपुर में तो हद ही हो गई जब नकली दवाओं में एक थोक व्यापारी और अस्पताल के सँचालक की मिलीभगत सामने आई। ओमती थाना पुलिस ने इन पर तमाम रसूखदारों के आशीर्वाद को दरकिनार कर एफआईआर कर ली। समाज में खासा रुतबा और प्रतिष्ठा के बावजूद जान देने वाले ही जब जानलेवा बन जाएँ तो विडंबना ही है। इनसे निपटना वैसी ही चुनौती है जैसे आस्तीन में साँप लिए घूमना। जबलपुर के सिटी हस्पताल के डायरेक्टर सरबजीत सिंह मोगा के अलावा दवा कारोबारी सपन जैन, देवेश चौरसिया पर भी मामला दर्ज होने से पूरा प्रदेश भौंचक्का है। कुछ दिन पहले गुजरात की मोरबी पुलिस ने नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन बनाने वाले गिरोह का पर्दाफाश किया और इसके जबलपुर सहित देश भर में जहाँ-तहाँ कनेक्शन होने पर एक बड़े दवा कारोबारी को गिरफ्तार भी किया। मामला कितना बड़ा और किस तरह नकली इँजेक्शन से नोट छापने का है, इससे ही पता लगता है कि पुलिस ने इनसे 90 लाख रुपए और 3370 नकली रेमडेसिविर इँजेक्शन जब्त किए तथा 7 आरोपी गिरफ्तार किए। इन्दौर में भी दो दिन पहले विजय नगर पुलिस ने रेमडेसिविर के नकली इंजेक्शन बेचते कुछ लोगों को पकड़ा जिनमें एक हॉस्पिटल का डॉक्टर है। फिलहाल 11 आरोपियों समेत 14 इंजेक्शन जब्त हो चुके हैं। यहाँ भी गुजरात में कनेक्शन मिला है। ये मौत के सौदागर सोशल मीडिया पर मदद की दुहाई देकर महंगे दाम में नकली इंजेक्शन बेचते थे। हरिद्वार से भी एक बड़ी चेन जुड़नी शुरू हुई। मामले में 26 अप्रैल को दिल्ली से साधना शर्मा नाम की महिला संदिग्ध लगने पर में निगरानी रखी गई जिसके बाद तो पूरे गिरोह के तार खुलने लगे। पुलिस ने जाल फैलाया और उत्तराखण्ड के पौड़ी जिले के कोटद्वार तक जा पहुँची। यहाँ नेक्टर हर्ब्स एंड ड्रग्स के नाम से लीज पर ली हुई कंपनी आदित्य गौतम द्वारा चलाई जा रही थी जो दूसरी एंटी बायोटिक दवाईयों से नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन तैयार कराने लगा। कुछ इँजेक्शन के लेबल हटाकर उनपर रेमडेसिविर के लेबल लगाने लगा। धीरे-धीरे अपने नेटवर्क के जरिये पूरे देश में मुंहमांगे दामों में बेचने लगा। मामले में दिल्ली पुलिस ने कई गिरफ्तारियों के साथ 198 नकली इंजेक्शन, 3000 खाली शीशियां, पैकिंग मशीने, नकली रैपर्स, पैकिंग का अन्य सामान, दूसरी कंपनी की एंटीबायोटिक दवाईयां, कंप्यूटर और कुछ गाड़ियाँ जब्त की है। प्रधानमंत्री की जेनरिक दवाओं की परिकल्पना के बावजूद लोगों को सस्ती दवा न मिलने का सच भी इसी में छुपा है। रेमडेसिविर की कमी के बाद कालाबाजारी तक तो मामला समझ आता है लेकिन नकली इँजेक्शन वह भी केवल नमक और ग्लूकोज से दवा फैक्ट्री में तैयार करने को जितना भी घिनौना, शर्मनाक, घोर आपराधिक कहा जाए कम है। इन्हें सामूहिक नरसँहार का दोषी भी कहना बेजा नहीं होगा। यकीनन इस सच से दुनिया के सामने भारत की छवि को कितना गहरा धक्का लगा है जिसका आँकलन नामुमकिन है। सामान्य दिनों में विदेशों से आनेवाले सैलानियों से लेकर तमाम दूतावासों और यहाँ आए हजारों विदेशियों के दिमाग में क्या चलेगा सोचकर भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। दवा नक्कालों को मौत का सौदागर गलत नहीं होगा। उम्मीद की जा सकती है कि इन मौत के सौदागरों का हर कहीं फास्ट ट्रायल कोर्ट में मामला चले और इन्हें भी वही सजा मिले जिसका दर्द कीमत चुकाकर भी लोगों ने झेला है। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

Related Stories

No stories found.
Raftaar | रफ्तार
raftaar.in