बीएस येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र कर्नाटक भाजपा का उपाध्यक्ष नियुक्त हुए
बीएस येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र कर्नाटक भाजपा का उपाध्यक्ष नियुक्त हुए

बीएस येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र कर्नाटक भाजपा का उपाध्यक्ष नियुक्त हुए

कर्नाटक भाजपा के अध्यक्ष नलिन कुमार कटील ने शुक्रवार को मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के बेटे बी वाई विजयेंद्र को प्रदेश इकाई का उपाध्यक्ष नियुक्त किया। पार्टी की प्रदेश इकाई में दस उपाध्यक्ष नियुक्त किये गये हैं। उपाध्यक्षों की सूची में अन्य प्रमुख नेता पूर्व मंत्री अरविंद लिंबावली, सांसद शोभा करंदलाजे और प्रताप सिन्हा हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार की पत्नी तेजस्विनी अनंत कुमार उपाध्यक्ष बनी रहेंगी। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान टिकट से वंचित किये जाने के बाद तेजस्विनी पार्टी उपाध्यक्ष बनायी गयी थीं। कटील ने उपाध्यक्षों के साथ ही चार महासचिव, दस प्रदेश सचिव, दो कोषाध्यक्ष आदि नियुक्त किये हैं। पिछले साल अगस्त में प्रदेश अध्यक्ष का प्रभार संभालने के बाद उन्होंने अब पार्टी पदाधिकारियों की अपनी पूरी टीम बना ली है। येदियुरप्पा के उत्तराधिकारी समझे जा रहे विजयेंद्र के लिए पार्टी के अंदर यह प्रोन्नति है। हाल में ही कर्नाटक में भाजपा सरकार के एक साल पूरे होने पर नई दिल्ली के कर्नाटक में नेतृत्व में बदलाव को लेकर कयास लगने लगे है। ’ कुछ खबरों के अनुसार पिछले साल जुलाई में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार गिरने के बाद सरकार गठन के मद्देनजर भाजपा नेता ने 78 वर्षीय लिंगायत नेता बीएस येदियुरप्पा को बता दिया था कि उन्हें एक साल के बाद अपनी उम्र और दूसरे नेताओं को जगह देने के लिए पद छोड़ना पड़ सकता है। खबरों में दावा किया गया है कि इसके बदले में येदियुरप्पा को राज्यपाल का पद और उनके छोटे बेटे बी वाई विजयेंद्र को अहम पद मिल सकता है। पार्टी में कुछ नेता येदियुरप्पा के हाल ही में पार्टी के 200 विधायकों को बोर्डों तथा निगमों में नियुक्त करने के कदम को उन विधायकों को शांत रखने की कोशिश के तौर पर देखते हैं जो उनसे नाखुश हैं। उपमुख्यमंत्री पद के लिए पार्टी के आलाकमान की पसंद रहे लक्ष्मण सावदी के दिल्ली जाने और वहां पार्टी नेताओं से मुलाकात करने से एक बार फिर नेतृत्व में बदलाव की अटकलों को हवा दे दी है। उपमुख्यमंत्री पद पर उनकी नियुक्ति ने प्रदेश भाजपा में कई लोगों को हैरत में डाल दिया था क्योंकि उस समय न तो वह विधायक थे और न ही पार्षद। इस कदम को येदियुरप्पा के बाद राज्य में कोई नेता लाने की आलाकमान की कोशिश के तौर पर देखा गया क्योंकि सावदी भी लिंगायत समुदाय से आते हैं जिसे पार्टी अपना गढ़ मानती है।-newsindialive.in

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