उपराष्ट्रपति ने महिलाओं के साथ वेतन में भेदभाव मिटाने का किया आग्रह
नई दिल्ली, 30 अप्रैल (हि.स.)। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने महिलाओं के साथ वेतन में भेदभाव समाप्त करने तथा संगठित क्षेत्र में उनके लिए अवसर मुहैया कराने का आग्रह करते हुए कहा कि इस दिशा में भारत को विश्व का मार्ग दर्शन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि समान काम के लिए समान वेतन का आदर्श अभी भी विकसित देशों और कॉरपोरेट जगत के उच्चस्थ पदों तक में पूरा नहीं हुआ है। उपराष्ट्रपति शुक्रवार को वर्चुअल माध्यम से फिक्की महिला संगठन एफएलओ की हैदराबाद शाखा द्वारा आयोजित "वंदे मातरम्" कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की ग्लोबल जेंडर रिपोर्ट 2020, का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि विकसित देशों तक में 15 प्रतिशत तक वेतन में असमानता है और अभी तक किसी भी देश में वेतन समानता का सपना साकार नहीं हो सका है। उपराष्ट्रपति ने उद्योग जगत से देश की तेज प्रगति के लिए जेंडर डिविडेंड अर्थात लैंगिक लाभ का उपयोग करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि देश की कुल श्रम शक्ति का 20 प्रतिशत महिलाएं हैं। नायडू ने कहा कि महिलाओं के नेतृत्व में देश की श्रम शक्ति तेज़ प्रगति को सुनिश्चित कर सकती है। उन्होंने माना कि कोरोना महामारी ने लैंगिक आधार पर रोजगार में असमानता को और गहरा दिया है। उन्होंने कहा कि महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए उनके प्रतिनिधित्व, उनके वेतन और उनकी भूमिका जैसे विषयों का समाधान किया जाना चाहिए। मातृत्व लाभ (संशोधन) कानून, 2017 की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि इसने विकसित देशों तक को मातृत्व अवकाश 12 सप्ताह से बढ़ा कर 26 सप्ताह करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कहा कि इससे गर्भवती, प्रसूता तथा छोटे बच्चों की देखरेख करने वाली कार्यशील माताओं को बड़ी सहायता मिलेगी। उन्होंने, महिलाओं द्वारा देश की प्रगति का नेतृत्व करने के लिए "Educate, Enlighten and Empower " का मंत्र दिया। इस अवसर पर नायडू ने कोरोना महामारी के खिलाफ अभियान में अग्रिम पंक्ति में खड़ी महिला डॉक्टरों, नर्सों, पैरा मेडिकल कर्मियों, सुरक्षा कमियों, स्वच्छता कर्मियों तथा आशा कार्यकर्ताओं की सराहना करते हुए उनके योगदान को महत्वपूर्ण बताया। हिन्दुस्थान समाचार/अजीत