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(अपडेट) महाराणा प्रताप का जीवन विपत्ति से लड़ने का देता है हौसला: ओम बिरला

चित्रकूट, 13 जून (हि.स.)। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की 481वीं जयंती दीनदयाल शोध संस्थान में मनाई गई। रविवार को दीनदयाल शोध संस्थान में महाराणा प्रताप की जयंती पर वर्चुअल नाटिका के माध्यम से यूट्यूब में लाइव किया। बतौर मुख्य अतिथि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि दीनदयाल शोध संस्थान बधाई का पात्र है। मेवाड़ की धरती से कोस दूर महाराणा प्रताप की जयंती पर उनके पराक्रम और शौर्य को स्मरण कर रहा है। कहा कि महाराणा प्रताप का जीवन विपत्ति से लड़ने का हौसला देता है। जब उनकी जीवन काल की विपत्तियों को याद करते हैं तो आज की विपत्तियां छोटी दिखाई पड़ती है। विपत्ति काल में हम कैसे मिल बांटकर रह सकते हैं, कैसे खा सकते हैं, कैसे सेवा कर सकते हैं यह प्रेरणा हमें उनके जीवन प्रसंगों से मिलती है। अध्यक्षता दीनदयाल शोध संस्थान के अध्यक्ष वीरेन्द्रजीत सिंह ने कहा कि बलरामपुर क्षेत्र में थारु वनवासियों ने जब महाराणा प्रताप वन-वन भटक कर अपनी सेना का पुनर्गठन कर रहे थे, उस समय ये जनजातियां राणा की सेना में प्रशिक्षण ले रही थी। यह जनजातियां आज भी अपने आप को महाराणा की प्रजा ही मानती है। इसके पूर्व मुंबई के प्रसिद्ध संगीत कलाकार मोहित चौहान ने महाराणा प्रताप की गौरव कथा को संगीत के साथ पेश किया। वे संगीत के साथ महाराणा प्रताप के शौर्य और स्वाभिमान का बखान किया। उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप का नाम जुबां पर आते ही रग-रग में शौर्य और स्वाभिमान की लहर दौड़ने लगती है। वीरता का भाव जागने लगता है। राष्ट्र प्रेम हिलोरें मारने लगता है। भुजाएं तलवार की मूठ खोजने लगती है। जब याद आता है लंबी चौड़ी कद काठी वाला नीले घोड़े पर सवार हाथ में भाला लिए एक ऐसा शूरवीर जिसके विशाल नयन मानों अपने विरोधी को ढूंढ रहे हों। एक ऐंसा योद्धा जिसकी तनी हुई मूंछें स्वयं उसकी वीरता का बखान कर रही हों। धन्यवाद ज्ञापित करते हुए दीनदयाल शोध संस्थान के संगठन सचिव अभय महाजन ने कहा कि गोंडा प्रकल्प की जब श्रद्देय नानाजी ने 77-78 में स्थापना की, वहां नेपाल के सीमावर्ती इलाके से जुड़े इमलिया कोडर में थारु जनजाति का केंद्र है। नानाजी का बहुत गहरा लगाव रहा है। थारु जनजाति के लोग महाराणा प्रताप के वंशज ही है, और उनकी वीर परंपरा का वह निर्वहन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत ही नहीं पूरे विश्व में शौर्य और त्याग का पर्याय, पराक्रम और पुरुषार्थ का बेजोड़ मेल महाराणा प्रताप हैं। हिन्दुस्थान समाचार/रतन

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