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अफगानिस्तान में विभाजन को पाटने के लिए तालिबान, कतर और पाकिस्तान से गठजोड़ में जुटा तुर्की

नई दिल्ली, अगस्त 19: अफगानिस्तान की विस्फोटक स्थिति के बीच क्षेत्रीय और वैश्विक सभी ताकतें अपने दांव लगाने के लिए तैयार हैं। हालांकि काबुल में तालिबान के दबदबे के साथ, विभिन्न देश फिलहाल अपनी रणनीति और कूटनीति को लेकर अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं। मगर इस दिशा में तुर्की एक अपवाद है, क्योंकि यह युद्धग्रस्त अफगानिस्तान में खुद को शांति-निर्माता के रूप में देखता है। अंकारा तुर्क और अफगानों को ऐतिहासिक सहयोगी के रूप में देखता है, इसलिए तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन उस देश में अपने प्रभाव को और बढ़ाना चाहते हैं, जहां अब अमेरिकी प्रभाव कम हो रहा है। वह पहले ही कह चुका है कि वह विभिन्न गुटों के बीच एकता लाने के लिए विभिन्न तालिबान समूहों के साथ बातचीत करने को तैयार है। एर्दोगन को लगता है कि सक्रिय तुर्की भागीदारी और कूटनीति के माध्यम से, वह अफगानिस्तान को गृहयुद्ध से बचने में मदद कर सकता है। तुर्की ने काबुल के नए शासकों के बयानों का स्वागत करना शुरू कर दिया है। इनमें विदेशियों और राजनयिक मिशनों को तालिबान के आश्वासन के साथ-साथ अफगान महिलाओं की सुरक्षा के बारे में कुछ आश्वस्त संदेश शामिल हैं। तुर्की के विदेश मंत्री मेवलुत कावुसोग्लू ने मंगलवार को मीडियाकर्मियों से कहा कि तुर्की तालिबान सहित सभी पक्षों के साथ बातचीत जारी रखे हुए है। उन्होंने कहा कि हालांकि तुर्की ने काबुल हवाई अड्डे की रक्षा करने की योजना को छोड़ दिया है, फिर भी वह तालिबान के अनुरोध पर तकनीकी और सुरक्षा सहायता प्रदान करने को तैयार है। उन्होंने तालिबान के साथ बातचीत को जायज ठहराते हुए कहा कि मौजूदा हालात में यह एक व्यावहारिक रास्ता है। फिलहाल ऐसा लगता है कि तुर्की-तालिबान संचार एकतरफा रास्ता है। तालिबान ने तुर्की के प्रस्तावों या मध्यस्थता के प्रस्तावों पर कोई टिप्पणी नहीं की है। विशेषज्ञों का कहना है कि अफगान क्षेत्र के सभी प्रमुख ताकतों में से तुर्कों का तालिबान के साथ सबसे कम प्रभाव है। लेकिन इससे अफगानिस्तान में अपनी भूमिका बढ़ाने के बारे में तुर्की के उत्साह में कोई कमी नहीं आई है। एर्दोगन, जो लीबिया, सीरिया, अजरबैजान और अन्य मुस्लिम देशों में सक्रिय है, अफगानिस्तान को शामिल करने के लिए अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करने के इच्छुक हैं। अंकारा अपने लिए एक बड़ी भूमिका निभाने के लिए एक तरह का गठबंधन बना रहा है। तुर्की के रक्षा मंत्री हुलुसी अकार ने अफगानिस्तान के घटनाक्रम पर चर्चा करने के लिए इस्लामाबाद का दौरा किया। इस यात्रा के बारे में पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने बताया, जिन्होंने हाल ही में इस्तांबुल में एर्दोगन से मुलाकात की थी। तुर्की कतर के भी संपर्क में है, जहां 29 फरवरी 2020 को अमेरिका और तालिबान के बीच कुख्यात दोहा शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसके बाद अफगान संकट तेज होता चला गया। तुर्की अंकारा, दोहा और काबुल के नए शासन के बीच एक तिकड़ी का निर्माण कर रहा है। अफगान शरणार्थियों की आमद की प्रत्याशा में भी अंकार अपने लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका देख रहा है। शरणार्थियों का प्रबंधन करके, जो यूरोप को अपने अंतिम बंदरगाह या स्थान के रूप में देख रहे हैं, तुर्की यह रणनीति अपनाकर एक तरह से यूरोपीय संघ के पक्ष में भी चीजें कर सकता है। काबुल में हामिद करजई हवाई अड्डे पर सैनिकों को तैनात करने को लेकर तुर्की पहले ही तालिबान के साथ अपनी उंगलियां जला चुका है। सिर्फ तालिबान ही नहीं, विपक्ष भी अफगानिस्तान में सैनिकों को रखने की एर्दोगन की योजना के खिलाफ है। उन्हें लगता है कि इससे तालिबान शासित देश में सैनिकों की जान को खतरा है। अभी भी देश में तुर्की के लगभग 500-600 सैनिक हैं, जो नाटो गठबंधन का हिस्सा थे। (यह आलेख इंडिया नैरेटिव डॉट कॉम के साथ एक व्यवस्था के तहत लिया गया है) --इंडिया नैरेटिव एकेके/एएनएम

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