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पिछले 5 वर्षों में 21 डिफेंस ऑफसेट अनुबंधों में हुई चूक: केंद्र

नई दिल्ली, 4 अप्रैल (आईएएनएस)। पिछले पांच वर्षों के दौरान, ऑफसेट अनुबंधों की कुल संख्या, जिनमें विक्रेताओं ने चूक की है और गैर-निष्पादित ऑफसेट दायित्व हैं, पिछले वर्ष तक 2.24 अरब डॉलर की गैर-निष्पादित राशि के साथ 21 हो गई हैं। केंद्र ने सोमवार को संसद को यह जानकारी प्रदान की। रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने माकपा सदस्य जॉन ब्रिटास द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के लिखित उत्तर में राज्यसभा को बताया कि निर्धारित प्रक्रिया का पालन करने के बाद, डिफॉल्ट और गैर-निष्पादित विक्रेताओं के खिलाफ जुर्माना लगाकर कार्रवाई की जाती है। उन्होंने कहा कि 16 अनुबंधों में 31 दिसंबर, 2021 तक 4.31 करोड़ डॉलर का जुर्माना लगाने के साथ कार्रवाई की गई है। पिछले पांच वर्षों के दौरान, 31 दिसंबर, 2021 तक 47 ऑफसेट अनुबंधों में 2.64 अरब के ऑफसेट दावे प्रस्तुत किए गए हैं। बता दें कि ऑफसेट नीति के तहत विदेशी रक्षा उत्पादन इकाइयों को 300 करोड़ रुपये से अधिक के सभी अनुबंधों के लिए भारत में कुल अनुबंध मूल्य का कम से कम 30 प्रतिशत खर्च करना होता है। उन्हें ऐसा कलपुजरें की खरीद, प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण या अनुसंधान और विकास इकाइयों की स्थापना करके करना होता है। इस नीति का मकसद देश में रक्षा उपकरणों के निमार्ण को बढ़ावा देना और विदेशी निवेश हासिल करना था। भारत के घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए ऑफसेट एक विदेशी कंपनियों द्वारा एक दायित्व है, यदि भारत उससे रक्षा उपकरण खरीद रहा है। चूंकि रक्षा अनुबंध महंगे हैं, इसलिए सरकार उस पैसे का एक हिस्सा या तो भारतीय उद्योग को लाभ पहुंचाने के लिए चाहती है, या देश को प्रौद्योगिकी के मामले में हासिल करने की अनुमति देना चाहती है। रक्षा ऑफसेट नीति का मुख्य उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी उद्यमों के विकास को बढ़ावा देकर, रक्षा उत्पादों और सेवाओं से संबंधित अनुसंधान, डिजाइन और विकास के लिए क्षमता बढ़ाने और नागरिक एयरोस्पेस और आंतरिक सुरक्षा जैसे सहक्रियात्मक क्षेत्रों के विकास को प्रोत्साहित करके भारतीय रक्षा उद्योग को विकसित करने के लिए पूंजी अधिग्रहण का लाभ उठाना है। --आईएएनएस एकेके/एएनएम

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