Tansen Festival: Forget the feel of winter with the fusion of Hindustani and Persian music
Tansen Festival: Forget the feel of winter with the fusion of Hindustani and Persian music

तानसेन समारोहः हिंदुस्तानी और पर्सियन संगीत के मिलन से सर्दी का अहसास भूले रसिक

ग्वालियर, 28 दिसम्बर (हि.स.)। संगीत शिरोमणि तानसेन की याद में आयोजित हो रहे सालाना महोत्सव "तानसेन समारोह" में सोमवार शाम कड़ाके की सर्दी की गिरिफ्त में थी। ऐतिहासिक शिवपुरी की छत्रियों की थीम पर बने भव्य एवं आकर्षक मंच पर जब भारतीय शास्त्रीय संगीत और विश्व संगीत का समागम हुआ तो रसिक सर्दी का अहसास भूल गए । समारोह की सांध्यकालीन सभा का शुभारंभ ध्रुपद केद्र ग्वालियर के विद्यार्थियों के ध्रुपद गायन से हुआ। केद्र के गुरू अभिजीत सुखदाने के संयोजन में तैयार राग "भीमपलासी" और चौताल में निबद्ध बंदिश" कुंजन में रच्यो रास " को विद्यार्थियों ने बड़े ही सलीके और ध्रुपद गायकी के मूल अंगों का निर्वहन करते हुए गाया। इस प्रस्तुति में पखवाज पर संजय पंत आगले ने वेहद सधी हुई संगत की। पर्सियन कलाकारों की त्रिगुलबंदी ने बांधा समा पर्सिया (ईरान) से भारत का पुरातनकाल से नाता रहा है। ईरान से आये संगीत साधकों ने जब अपने वाद्य यंत्रों से गान मनीषी तानसेन को स्वरांजलि अर्पित की तो इन रिश्तों की मिठास ताजा हो गई। ईरान से आए कला साधकों की तिकड़ी ने प्राचीन पर्सियन संगीत की धारा प्रवाहित की तो रसिक उसके माधुर्य में डूबते चले गए। ईरान के कलाकारों की इस त्रिगुलबन्दी में दारुश अलंजारी, हमजा बागी एवं मैशम्म अलीनागियान शामिल थे। इन्होंने किमांचे, सहतार व ढपली की त्रिगुलबंदी कर बेहतरीन प्रस्तुतियाँ दीं। ईरानी कलाकारों ने पर्सियन संगीत की कई पारंपरिक धुनें पेश कीं। मिठास से भरीं इन धुनों ने ओज भी प्रकट किया। जाहिर है रसिक भी रोमांच से भर गए। पर्सियन संगीतकारों की इस तिकड़ी ने अपने हुनर से संगीत कला जगत में विशेष मुकाम स्थापित किया है। पिछले 16 वर्षों से ये कलाकार विश्वभर में अपनी प्रस्तुतियाँ दे रहे हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत एवं पर्शियन क्लासिकल म्यूजिक में काफी समानताएं हैं। ईरानी म्यूजिशियन का मानना है कि उनके यहाँ के सहतार वाद्य से ही हिंदुस्तानी सितार का सृजन हुआ है। इसी तरह वहां का कमांचे बहुत कुछ हिंदुस्तानी सारंगी की तरह है। ईरान के ढपली सहित अन्य वाद्य यंत्र भी भारतीय वाद्ययंत्रों के दूसरे रूप लगते हैं। तानसेन समारोह में प्रस्तुति देने आए संगीत साधकों ने बताया कि भारतीय शास्त्रीय संगीत में जहाँ गायन-वादन में एक बार में एक राग का उपयोग होता है वहीं पर्सियन क्लासिकल म्यूजिक में कई सुर एक साथ गाये- बजाए जाते हैं। मलिक बंधुओं ने राग "मारवा" में बिखेरे ध्रुपद के रंग... तानसेन समारोह में सोमवार की सांध्यकालीन सभा की दूसरी प्रस्तुति के रूप में मलिक बंधुओं प्रशांत मलिक और निशांत मलिक का ओजपूर्ण ध्रुपद गायन हुआ। मलिक बंधु ध्रुपद के दरभंगा घराने का प्रतिनिधित्व करते हैं और ध्रुपद की प्राचीन गौहरवाणी में सुमधुर गायन करते हैं। उन्होंने समयानुकूल राग "मारवा" को गायन के लिए चुना। दोनों भाइयों ने आलाप से शुरुआत की। मध्यलय और द्रुतलय की आलापचारी करते हुए गमक और मींड का काम अपने गायन बखूबी ढंग से दिखाया। चौताल में निबद्ध बंदिश "बंशी नटवर बजाए" को अपनी बुलंद आवाज में बड़े ही ओजपूर्ण अंदाज़ से गाया। ध्रुपद के विभिन्न अंगों का बखूबी इस्तेमाल करते हुए उन्होंने अपने गायन का श्रंगार किया। उनके साथ पखवाज पर पंडित गौरव शंकर उपाध्याय ने ओजपूर्ण संगत का प्रदर्शन किया। हवाईन गिटार से राग “जोग” में सुरों की बारिश इस सभा के अगले कलाकार के रूप में देश के जाने माने हवाईन गिटार वादक डॉ. सुनील पावगी की प्रस्तुति हुई। उन्होंने राग “जोग” में बेहतरीन गिटार वादन कर रसिकों को सुरों की बारिश से भिगो दिया। काफी ठाठ के इस राग को उन्होंने बड़े ही रंजक अंदाज में पेश किया। आलाप जोड़ झाला से शुरू करके इस राग में उन्होंने दो गतें बजाईं। विलंबित गत झपताल में और द्रुत गत तीन ताल में निबद्ध थी। पावगी जी ने दोनों ही गतों को बजाने में अपने कौशल का बखूबी परिचय दिया। डॉ पावगी यूँ तो गायकी और तंत्रकारी दोनों ही अंगों के तालमेल के साथ वादन करते हैं। उनके वादन में सरोद सितार और शहनाई का अंग भी सुनने को मिला। पावगी जी ने राग “किरवानी” में स्व रचित रचना तीन ताल में पेश की और स्व रचित धुन निकालकर अपने गायन का समापन किया। डॉ. पावगी की गिनती देश के गिने चुने गिटार वादकों में होती है। वे ग्वालियर में राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय में तार वाद्य विभाग के विभागाध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं। ये कहने में कोई गुरेज नहीं कि डॉ पावगी की गिटार गाती भी है। उनके साथ तबले पर अंशुल प्रताप सिंह ने संगत की। हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश-hindusthansamachar.in

Related Stories

No stories found.
Raftaar | रफ्तार
raftaar.in