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भाषा पर संग्राम: तेलंगाना के नेताओं ने अमित शाह को दी चुनौती- गुजरात से करें बदलाव की शुरुआत

मोहम्मद शफीक हैदराबाद, 16 अप्रैल (आईएएनएस)। तेलंगाना को इसकी वास्तविक बहुसांस्कृतिक प्रकृति और यहां की भाषा से जुड़ी भावनाओं के कारण मिनी-इंडिया माना जाता है, जो तमिलनाडु या कर्नाटक की तरह इतनी मजबूत तो नहीं है, लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के हालिया बयान कि भारतीयों के बीच संचार के लिए हिंदी अंग्रेजी का विकल्प होनी चाहिए, ने सभी का ध्यान खींचा है। हालांकि विविधता में एकता देश की ताकत है, मगर राजनीतिक दल और शिक्षाविद इसे भारत पर एक विशेष भाषा थोपने के प्रयास के रूप में देख रहे हैं। उन्होंने चेताया है कि यह क्षेत्रीय कट्टरवाद को बढ़ावा देगा। कुछ राजनीतिक नेताओं ने भाषा के मुद्दे पर भाजपा के दोहरे मापदंड के लिए उसकी आलोचना की है और पार्टी को पहले गुजरात में हिंदी थोपने की चुनौती दी है। सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) ने भाषा पर राजनीति करने के लिए भाजपा की आलोचना करते हुए कहा है कि भगवा पार्टी न केवल यह तय करना चाहती है कि किसी को क्या खाना चाहिए और क्या पहनना चाहिए, बल्कि वह ये भी तय करना चाहती है कि लोगों को किस भाषा में संवाद करना चाहिए। टीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष के. टी. रामा राव ने भाषा थोपने के प्रति चेताते हुए सलाह दी, हम अपने महान राष्ट्र के लोगों को यह तय क्यों नहीं करने देते कि क्या खाएं, क्या पहनें, किसकी प्रार्थना करें और किस भाषा में बात करें। उनका यह भी मानना है कि अंग्रेजी को खारिज करना इस देश के उन युवाओं के लिए एक बड़ा नुकसान होगा, जिनकी वैश्विक आकांक्षाएं हैं। टीआरएस नेता मन्ने कृष्णक ने आईएएनएस से कहा, पहले से ही विभिन्न राज्यों में हमारे छात्र सक्षम होने के लिए अंग्रेजी भाषा को मिस (वंचित) कर रहे हैं। हालांकि यह नागरिकों की इच्छा है कि वे जो चाहते हैं, उसका अभ्यास करें, थोपना सही नहीं है। अमित शाह के बोलने के बाद, हमने राष्ट्रीय चैनलों पर कई भाजपा सांसदों को एक राष्ट्र एक भाषा के सिद्धांत पर चलते हुए देखा है। यह अमित शाह द्वारा लाए गए एजेंडे से ज्यादा खतरनाक है। यह राज्यों और विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं की पहचान पर सवाल उठाता है। उनका यह भी मानना है कि भाजपा भाषा के मुद्दे पर दोहरा मापदंड अपना रही है। कृष्णक, जो टीआरएस के सोशल मीडिया विंग के संयोजक हैं और तेलंगाना राज्य खनिज विकास निगम (टीएसएमडी) के अध्यक्ष भी हैं, ने कहा, फरवरी में, गुजरात सरकार ने फैसला किया कि सभी साइन बोर्ड गुजराती में होने चाहिए। भाजपा शासित भारत सरकार राज्यों पर जोर दे रही है कि उन्हें हिंदी पर जोर देना चाहिए, जबकि गुजरात गुजराती के बारे में बात कर रहा है। दक्षिण के राज्यों को उपदेश देने के बजाय, उन्हें गुजरात से शुरू करना चाहिए, यदि वे वास्तव में इसका अभ्यास करने में विश्वास करते हैं तो फिर शुरुआत गुजरात से करें। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दासोजू श्रवण कुमार ने कहा, यह भारतीय संविधान की मूल भावना के खिलाफ अमित शाह द्वारा एक बिल्कुल अनावश्यक टिप्पणी है। पूरे देश पर, विशेष रूप से दक्षिणी भारत में एक विशेष भाषा को थोपना, विस्तारवादी साम्राज्यवाद का एक प्रयास है। उन्होंने कहा, मेरा मतलब है, वे किसी तरह इस क्षेत्र पर नियंत्रण करना चाहते हैं और इसलिए वे अब भाषा का उपयोग कर रहे हैं। लेकिन मुझे लगता है कि भारत क्षेत्र, धर्म और अब फिर से भाषा की इस संदिग्ध राजनीति को समझने के लिए पर्याप्त परिपक्व है। यह अनिवार्य रूप से अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए है। उनका मानना है कि लगभग पूरे दक्षिण भारत में भाषा की कोई समस्या नहीं है। कांग्रेस नेता ने कहा, आप भाषा की समस्या नहीं देखते हैं, खासकर तेलंगाना के संदर्भ में, जहां उर्दू और हिंदी बोलने वाले लोग हैं। ऐसे लोग हैं जो पूरे भारत से आते हैं - गुजराती, पारसी, राजस्थानी, तमिल, मलयाली और अन्य। श्रवण कुमार, जो कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता भी हैं, ने कहा, तेलंगाना एक मिनी-इंडिया की तरह है, जहां लोग विभिन्न धर्मों, क्षेत्रों और भाषाओं से आते हैं। वास्तव में, भारत सरकार द्वारा इस तरह का हिंदी प्रवर्तन केवल उल्टा ही पड़ेगा। कांग्रेस नेता ने कहा, भाषा डीएनए का हिस्सा है। क्योंकि अमित शाह कुछ लागू करते हैं तो मेरा डीएनए कैसे बदला जा सकता है? हर कोई संस्कृति, इतिहास और परंपराओं के आधार पर अपनी मातृभाषा बोलता है। और आप अचानक आते हैं और कहते हैं कि आपको हिंदी में बोलना चाहिए। पहले आप गुजरातियों को बदलें और फिर हमारे पास आएं। शिक्षाविद के. नागेश्वर को भी केंद्रीय मंत्री का बयान गलत नजर आता है। नागेश्वर ने कहा, भाषा, संस्कृति, परंपरा, विश्वास, आस्था, रीति-रिवाजों और एक अंतर्निहित एकता की विविधता भारत की सच्ची आत्मा है। भारत को एक आधिपत्य वाले समाज में परिवर्तित न करें। उन्होंने अमित शाह को याद दिलाया कि भारत की कोई एक भाषा नहीं है। भारत की कई भाषाएं हैं और भाषाई विविधता सभी के साथ समान व्यवहार की मांग करती है। विधान परिषद के पूर्व सदस्य को महसूस होता है कि एक ऐसी भाषा को बढ़ावा देना, जो भारतीयों के एक समूह को दूसरों की अपेक्षा लाभ पहुंचाती है, विविधता पर विभाजन का एक नुस्खा है। उन्होंने हैरानी जताई कि अमित शाह राष्ट्रीय एकता बनाने के लिए हिंदी भाषी राज्यों में किसी भी दक्षिण भारतीय भाषा को अनिवार्य करने की बात क्यों नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा, यह मेरी पसंद है। मुझे वही बोलने दो जो मैं बोलना चाहता हूं। आप मुझे हिंदी बोलने के लिए क्यों मजबूर कर रहे हैं? इसका कोई मतलब नहीं है। अगर कोई सीखना चाहता है, तो वे वैसे भी सीख रहे हैं। इन दिनों इतनी जागरूकता है। श्रवण कुमार, जिन्होंने मानव संसाधन प्रबंधन में सहायक प्रोफेसर के रूप में भी काम किया है, ने कहा, तमिल लोग भी हिंदी सीख रहे हैं.. अगर वे पसंद करते हैं और अगर उन्हें लगता है कि इससे उन्हें व्यापार में मदद मिल सकती है। भाषा राष्ट्रीय पहचान नहीं है। भाषा संचार का माध्यम है। उन्होंने आगे कहा, यदि आप गुजरात जाते हैं, तो वहां कितने लोग हिंदी बोलते हैं? वे गुजराती बोलते हैं। राजस्थान में कितने लोग हिंदी बोलते हैं? वे राजस्थानी बोलते हैं। महाराष्ट्र में लोग मराठी बोलते हैं। भाषा प्रवर्तन अनिवार्य रूप से किसी प्रकार की विस्तारवादी एवं साम्राज्यवादी सोच है। यही हमारी भाषा है और सभी को इसी का पालन करना चाहिए, यह एक तरह की अत्याचारी और तानाशाही प्रवृत्ति है। कृष्णक का विचार है कि अंग्रेजी की वैकल्पिक भाषा के रूप में हिंदी की बात करना भाजपा की राजनीति की शैली है। उन्होंने कहा, पहले खाना, फिर पोशाक और अब भाषा। हमने इसे कर्नाटक में देखा है। हिजाब, हलाल और अब हिंदी। वे ट्रिपल एच (हिजाब, हलाल और हिंदी) राजनीति कर रहे हैं। टीआरएस नेता ने अमित शाह को यह भी याद दिलाया कि हिंदी अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरह से बोली जाती है। उन्होंने कहा, बिहार से कोई एक हिंदी बोलता है, तो उत्तर प्रदेश से कोई दूसरे तरीके से हिंदी बोलता है। हम हैदराबाद में दक्कनी बोलते हैं जो हिंदी से अलग बोली है। अगर उनकी नहीं किसी के लिए ना है, तो यह मेरे लिए नक्को है। इसी प्रकार से महाराष्ट्र में भाओ है तो अन्य दूसरी जगह भाई है। उन्होंने आगे कहा, आवश्यक होने या अन्य किसी भी चीज के बजाय अपने खुद की सुविधा या सहजता के स्तर को देखना होगा। उदाहरण के लिए, जब निर्मला सीतारमण संसद में अंग्रेजी में बोलती हैं, तो यह समझ में आता है। हम सराहना करते हैं कि वह एक अच्छी वक्ता हैं, लेकिन जब वह हिंदी बोलती हैं, तो वह बहुत सारी गलतियां करती हैं। ऐसा लगता है जैसे वह कोई और भाषा बोल रही हैं। --आईएएनएस एकेके/एएनएम

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