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नोएडा सीईओ के खिलाफ गैर-जमानती वारंट पर रोक बरकरार, सुप्रीम कोर्ट के जज ने खुद को सुनवाई से किया अलग

नई दिल्ली, 11 मई (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी ने बुधवार को अवमानना के एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा जारी गैर-जमानती वारंट (एनबीडब्ल्यू) को चुनौती देने वाली नोएडा की सीईओ और आईएएस अधिकारी रितु माहेश्वरी की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। हालांकि, मंगलवार को शीर्ष अदालत द्वारा दी गई वारंट पर रोक जारी रहेगी। चूंकि मामला न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर और मुरारी की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था, न्यायमूर्ति नजीर ने कहा, भाई (जस्टिस मुरारी) को यहां कुछ कठिनाई है। इसके साथ ही उन्होंने इस मामले में वकील से छुट्टी के बाद इसे सूचीबद्ध करने के लिए कहा। प्रतिवादी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि मामला शुक्रवार को उच्च न्यायालय के समक्ष सूचीबद्ध है। यह बताया गया कि मामले का उल्लेख करने पर स्थगन प्रदान किया गया था। सिंह ने दलील दी कि वह शुक्रवार को पेश नहीं होंगी और उन्हें एक वचन देना चाहिए कि वह शुक्रवार को जाएंगी। हालांकि, माहेश्वरी का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा, वह नहीं जाएंगी.. वह आखिर क्यों जाएंगी? वरिष्ठ अधिवक्ता रवींद्र कुमार ने भी शीर्ष अदालत में माहेश्वरी का प्रतिनिधित्व किया। शीर्ष अदालत ने मामले को शुक्रवार के लिए स्थगित कर दिया और प्रधान न्यायाधीश से निर्देश मिलने के बाद इसे किसी भी उपयुक्त पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करने के लिए कहा। सिंह ने पीठ से आदेश में अंतरिम राहत के संबंध में कुछ भी उल्लेख नहीं करने का आग्रह किया, क्योंकि प्रधान न्यायाधीश की पीठ द्वारा दी गई रोक मामले की सुनवाई होने तक जारी रहेगी। 10 मई को, सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा माहेश्वरी के खिलाफ जारी गैर-जमानती वारंट पर रोक लगा दी थी, क्योंकि वह एक अवमानना मामले में अदालत के सामने पेश होने में विफल रही थीं। वरिष्ठ अधिवक्ता रोहतगी ने प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि उनकी मुवक्किल उच्च न्यायालय पहुंची, लेकिन उन्हें देर हो गई। इसके बाद प्रधान न्यायाधीश ने उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी और उच्च न्यायालय के खिलाफ माहेश्वरी की अपील को बुधवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया। उच्च न्यायालय ने मनोरमा कुच्छल और एक अन्य व्यक्ति द्वारा दायर एक अवमानना याचिका के जवाब में आदेश जारी किया, जिनकी जमीन 1990 में नोएडा प्रशासन द्वारा अधिग्रहित की गई थी, लेकिन उन्हें कथित तौर पर उचित मुआवजा नहीं दिया गया। उन्होंने इस भूमि अधिग्रहण के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। अधिकारी के समय पर पेश नहीं होने पर हाईकोर्ट ने आदेश जारी किया। इसके साथ ही अब अदालत ने पुलिस को 13 मई को नोएडा की सीईओ को उसके समक्ष पेश करने का निर्देश दिया। --आईएएनएस एकेके/एएनएम

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