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भारत के आखिरी गांव माणा के आखिरी छोर पर नजर आती है सरस्वती नदी

चमोली, 24 अप्रैल (आईएएनएस)। भारत-चीन सीमा के नजदीक बद्रीनाथ से महज 3 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद माणा गांव के आखिरी छोर पर सरस्वती नजर आती है। सरस्वती नदी का नाम तो सभी ने सुना है, लेकिन उसे देखा कितने लोगों ने है! दरअसल इलाहाबाद के प्रयाग में गंगा, यमुना और सरस्वती नदी के संगम की बात कही जाती है, लेकिन यहां सरस्वती नदी नजर नहीं आती है। उत्तराखंड में एक जगह जरूर ऐसी है, जहां सरस्वती नदी कुछ दूर तक ही सही पूरे वेग से बहती हुई नजर आती है। भारत-चीन सीमा के नजदीक बद्रीनाथ से महज 3 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद माणा गांव के आखिरी छोर पर सरस्वती नजर आती है। इस गांव के आखरी छोर पर चट्टानों के बीच से एक झरना गिरता हुआ दिखाई देता है। इसका पानी कुछ दूर जाते ही अलकनंदा नदी में मिलता है। इस जगह को केशव प्रयाग कहते हैं। माणा गांव के लोगों का मानना है कि यही नदी असल में सरस्वती नदी है। इस नदी का उद्गम 40 किलोमीटर दूर चीन बॉर्डर के नजदीक देवताल नामक जगह पर है। माणा गांव में ऐसी किवदंतियां है, जिससे ऐसा पता चलता है कि पानी की इस धारा को सरस्वती क्यों कहा जाता है। यहां एक गुफा भी है जो व्यास गुफा नाम से मशहूर है। गुफा के पुजारी शंकरानंद उनियाल बताते हैं कि किवंदंतियों के अनुसार भगवान गणेश ऋषि वेद व्यास के कहने पर जब वेदों की रचना कर रहे थे, तब सरस्वती नदी के वेग के शोर से ऋषि को मंत्रोच्चारण में दिक्कत आ रही थी। इसी से क्रोधित होकर वेद व्यास ने सरस्वती को श्राप दिया कि वो आगे जाकर किसी को दिखाई नहीं देंगी। सरस्वती नदी को लेकर स्थानीय लोगों के बीच एक और किवदंती प्रचलित है, जो ये बताती है कि माणा के पास बहने वाला झरना ही सरस्वती नदी है। प्राचीन कथाओं के अनुसार जब पांडव स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर रहे थे, तब रास्ते में सरस्वती नदी मिली। पांडव नदी को लांघकर पार नहीं करना चाहते थे। उनका मानना था कि सरस्वती स्त्री है। और उन्हें लांघना न्यायसंगत नहीं होगा। ऐसे में भीम ने नदी के ऊपर एक पत्थर रख दिया और तब जाकर पांडवों ने पत्थर के सहारे नदी पार की। आज भी ये पत्थर भीमपुल के नाम से जाना जाता है। --आईएएनएस स्मिता/एसकेपी

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