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बढ़ता तापमान हमारी जल सुरक्षा को गंभीर संकट में डाल सकता है: सीएसई

नई दिल्ली, 23 मार्च (आईएएनएस)। भारत के बड़े हिस्से में गर्मी की शुरूआत इतनी तेज गर्म लहर के साथ होने का क्या मतलब है? इस सवाल के जवाब पर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा, इसका मतलब है कि यह जलवायु परिवर्तन का युग है। साथ ही आने वाले दिनों में हम पानी के लिए क्या करेंगे, यह निर्धारित करेगा कि हम ऐसी जलवायु परिस्थितियों से बचे रहेंगे या नहीं। नारायण ने विस्तार से बताया, मैं ऐसा इसलिए कह रही हूं क्योंकि हम सभी जानते हैं कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव गर्मी, चिलचिलाते तापमान और परिवर्तनशील और अत्यधिक बारिश के बारे में हैं। दोनों का जल चक्र के साथ सीधा संबंध है। इसलिए जलवायु परिवर्तन के बारे में पानी और उसका प्रबंधन होना चाहिए। सीएसई, जलवायु परिवर्तन, उप कार्यक्रम प्रबंधक, अवंतिका गोस्वामी ने कहा, भारत में 2021 की स्थिति दोहराई जा रही है, जब देश के कुछ हिस्सों में फरवरी की शुरूआत में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस को छू गया था, और यह तब हुआ जब 2021 ला नीना का साल था, जिसमें प्रशांत जल धाराएं विश्व स्तर पर ठंडा तापमान लाने के लिए जानी जाती हैं। भारतीय मौसम वैज्ञानिकों ने सूचित किया है कि ग्लोबल वार्मिग ला नीना के इस प्रभाव की भरपाई करेगी। सीएसई के शोधकर्ता के अनुसार, बढ़ती गर्मी का जल सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। सबसे पहले इसका मतलब जल निकायों से ज्यादा वाष्पीकरण होना है। नारायण ने आगे कहा कि इसका मतलब है कि हमें न केवल लाखों संरचनाओं में पानी के भंडारण पर काम करने की जरूरत है, बल्कि वाष्पीकरण के कारण होने वाले नुकसान को कम करने की भी योजना बनानी है। ऐसा नहीं है कि वाष्पीकरण नुकसान पहले में नहीं हुआ हैं, लेकिन वाष्पीकरण की दर में अब बढ़ते तापमान के साथ वृद्धि होगी। सीएसई के शोधकर्ताओं के अनुसार, एक विकल्प भूमिगत जल भंडारण या कुओं पर काम करना है। भारत के सिंचाई योजनाकार और नौकरशाही काफी हद तक नहरों और अन्य सतही जल प्रणालियों पर निर्भर हैं, उन्हें भूजल प्रणालियों के प्रबंधन में छूट नहीं देनी चाहिए। गर्मी बढ़ने से मिट्टी की नमी सूख सकती है। यह जमीन पर और ज्यादा धूल कर देगा और इससे सिंचाई की महत्ता बढ़ेगी। भारत जैसे देश में जहां अभी भी अधिकांश अनाज वर्षा आधारित क्षेत्रों में उगाया जाता है। बारिश से सिंचित यह भूमि क्षरण को और तेज करेगा। इसका मतलब है कि जल प्रबंधन को वनस्पति योजना के साथ हाथ से जाना चाहिए ताकि मिट्टी की पानी धारण करने की क्षमता में सुधार हो सके, यहां तक कि तीव्र और लंबी गर्मी के समय में भी ऐसा होना चाहिए। तीसरा और स्पष्ट रूप से गर्मी पानी के उपयोग को बढ़ाएगी, जिसमें पीने और सिंचाई से लेकर जंगलों या इमारतों में आग से लड़ना शामिल हैं। हम पहले ही दुनिया के कई हिस्सों में और भारत के जंगलों में विनाशकारी जंगल की आग को देख चुके हैं। तापमान बढ़ने के साथ ही यह और बढ़ेगा। जलवायु परिवर्तन के साथ पानी की मांग बढ़ेगी, जिससे यह और भी जरूरी हो जाएगा कि हम पानी या अपशिष्ट जल को बर्बाद न करें। इतना ही नहीं, तथ्य यह है कि अत्यधिक बारिश की घटनाओं की बढ़ती संख्या के संदर्भ में जलवायु परिवर्तन पहले से ही दिखाई दे रहा है। इसका मतलब है कि हम बारिश को बाढ़ के रूप में आने की उम्मीद कर सकते हैं, जिससे बाढ़ के बाद सूखे का चक्र और भी तीव्र हो जाएगा। भारत में पहले से ही एक वर्ष में कम बरसात के दिन होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एक वर्ष में औसतन केवल 100 घंटे बारिश होती है। अब बारिश के दिनों की संख्या और कम हो जाएगी, लेकिन अत्यधिक बारिश के दिनों में वृद्धि होगी। इसका जल प्रबंधन की हमारी योजनाओं पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। इसका मतलब है कि हमें बाढ़ प्रबंधन के बारे में और अधिक सोचने की जरूरत है न केवल नदियों के तटबंध के लिए बल्कि बाढ़ के पानी को अनुकूलित करने के लिए ताकि हम उन्हें भूमिगत और भूमिगत जलभृतों, कुओं और तालाबों में संग्रहीत कर सकें। इसका मतलब यह भी है कि हमें बारिश के पानी को बचाने के लिए अलग तरह से योजना बनाने की जरूरत है। उदाहरण के लिए वर्तमान में, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत बनाए जा रहे लाखों जल ढांचे, सामान्य वर्षा के लिए डिजाइन किए गए हैं। लेकिन अब जैसे ही अत्यधिक बारिश सामान्य हो जाती है, तो संरचनाओं को फिर से बदलने की जरूरत होगी ताकि वे मौसम के दौरान बने रहें। बात सिर्फ इतनी सी है कि हमें जलवायु परिवर्तन के इस युग में न केवल बारिश की बल्कि बाढ़ के पानी की हर बूंद को जमा करने के लिए जरूरी योजना बनानी चाहिए। --आईएएनएस एसएस/आरजेएस

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