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राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी के निधन पर दुख जताया

नई दिल्ली, 30 अप्रैल (हि.स.)। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को देश के पूर्व अटॉर्नी जनरल और विख्यात न्यायविद पद्म विभूषण सोली सोराबजी के निधन पर दुख जताया है। सोराबजी का कोरोना से संक्रमित होने के बाद आज सुबह निधन हो गया। वह 91 साल के थे। राष्ट्रपति कोविंद ने ट्वीट कर कहा, सोली सोराबजी के निधन से हमने भारत की कानूनी प्रणाली का एक आइकन खो दिया। वह उन चुनिंदा लोगों में थे जिन्होंने संवैधानिक कानून और न्याय प्रणाली के विकास को गहराई से प्रभावित किया। वह पद्म विभूषण से सम्मानित सबसे प्रख्यात न्यायविदों में से थे। उनके परिवार और सहयोगियों के प्रति मेरी संवेदना है। उपराष्ट्रपति नायडू ने ट्वीट कर कहा, विख्यात कानूनविद और पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी के निधन से गहरा दुख हुआ। वह मानवाधिकारों के चैंपियन थे और अपने कार्य से भारत में अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की। उन्होंने कहा, सोली सोराबजी कानून और न्यायशास्त्र के सभी मामलों में स्वयं और एक प्राधिकरण थे। उनकी मृत्यु न्यायपालिका के क्षेत्र में एक अपरिवर्तनीय शून्य है। शोक संतप्त परिजनों के प्रति मेरी हार्दिक संवेदना है। ओम शांति! प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर कहा, सोली सोराबजी एक उत्कृष्ट वकील और बुद्धिजीवी थे। वह कानून के माध्यम से गरीबों और दलितों की मदद करने में सबसे आगे थे। उन्हें भारत के महान्यायवादी के उल्लेखनीय कार्यकाल के लिए याद किया जाएगा। उनके निधन से दुख हुआ। उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति संवेदना है। उल्लेखनीय है कि सोली सोराबजी दो बार देश के अटॉर्नी जनरल रहे। पहली बार 1989 से 90 और फिर 1998 से 2004 तक अटॉर्नी जनरल का पदभार संभाला। उनका जन्म 1930 में बॉम्बे में हुआ था। उन्होंने 1953 से बॉम्बे हाईकोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की। इसके बाद 1971 में बॉम्बे हाईकोर्ट में सीनियर एडवोकेट के तौर पर डेजिगनेटेड हुए और तकरीबन 7 दशक तक कानूनी पेशे से जुड़े रहे। सोली सोराबजी को पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है। उनकी पहचान देश के बड़े मानवाधिकार वकील के तौर पर होती है। सोराबजी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बड़े पक्षधर थे। उन्होंने प्रेस की स्वतंत्रता का सुप्रीम कोर्ट में कई बार बचाव किया और प्रकाशनों पर सेंसरशिप आदेशों व प्रतिबंधों को रद्द करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी सामाजिक प्रतिबद्धताओं के कारण ही यूनाइटेड नेशन ने 1997 में उन्हें नाइजरिया में विशेष दूत बनाकर भेजा था, ताकि वहां के मानवाधिकार के हालत के बारे में पता चल सके। इसके बाद, वह 1998 से 2004 तक मानव अधिकारों के संवर्धन और संरक्षण पर यूएन-सब कमिशन के सदस्य और बाद में अध्यक्ष बने। इन्हे मार्च 2002 में पद्म विभूषण पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। हिन्दुस्थान समाचार/सुशील

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