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राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा को कड़ी टक्कर देने के मकसद से विपक्षी दलों की खेमेबाजी में जुटी हैं ममता बनर्जी

कोलकाता, 7 मई (आईएएनएस)। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल जुलाई में समाप्त हो रहा है और इसी वजह से देश के सियासी गलियारे में नये राष्ट्रपति के चुनाव को लेकर सरगर्मियां काफी तेज हो गई हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को कड़ी टक्कर देने के लिये पूरे विपक्ष को एकजुट करके सर्वसम्मति से एक दमदार प्रत्याशी को खड़ा करने की कोशिश में जी-जान से जुटी हैं। हालांकि, ममता बनर्जी ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं लेकिन वह कई मौकों पर यह जता चुकी हैं कि वह राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा को कड़ी टक्कर देने के लिये तैयार हैं। उत्तर प्रदेश में भाजपा के दोबारा सत्ता में आने पर ममता बनर्जी ने कहा था कि राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा को आसान जीत नहीं मिलने जा रही है क्योंकि उसके पास देश के कुल विधायकों में 50 प्रतिशत भी नहीं हैं। उन्होंने कहा था कि हमारे सहयोग के बिना भाजपा का बेड़ा पार नहीं होगा। गुरुवार को जब मीडिया ने ममता बनर्जी से राष्ट्रपति चुनाव से संबंधित सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि अभी चुनाव में समय है। अभी योजना के बारे में खुलासा नहीं किया जा सकता है। समय आने पर योजना के बारे में बताया जायेगा। मैं बस इतना बता सकती हूं कि विपक्ष मजबूत टक्कर देगा। तृणमूल के एक वरिष्ठ सांसद ने नाम न छापने की शर्त पर आईएएनएस को बताया कि मुख्यमंत्री ने इस विषय में गैर भाजपा शासन वाले राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बातचीत करनी शुरू कर दी है। उन्होंने बताया कि नयी दिल्ली में अभी कुछ दिन पहले उन्होंने वहां के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से बात की। बातचीत के दौरान सर्वसम्मति से विपक्ष का एक उम्मीदवार पेश करने का मुद्दा भी उठा। ऐसी चर्चा है कि ममता बनर्जी जल्द ही तेलंगाना राष्ट्र समिति के प्रमुख एवं तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव से मिलेंगी। ममता बनर्जी ही निर्णय लेंगी कि आगे क्या होगा। ममता बनर्जी जहां भाजपा के राष्ट्रपति प्रत्याशी को कड़ी टक्कर देने के लिये पूरे विपक्ष को एकजुट करने में जुटी हैं, वहीं उन्होंने कांग्रेस को इस खेमे में अब तक शामिल करने का प्रयास नहीं किया है। कांग्रेस सदस्य सुवंकर सरकार ने ममता बनर्जी की इस राजनीतिक खेमेबाजी पर सवालिया निशान लगाते हुये कहा कि उन्होंने यह सोचना होगा कि क्या वह वाकई इस बात को लेकर गंभीर हैं। सुवंकर सरकार ने कहा कि अभी वह मार्च में कह रही थीं कि तृणमूल की मदद के बिना भाजपा का बेड़ा पार नहीं होगा। तो क्या हम इस बयान को भाजपा को दिया संकेत मानें? यह पहल उनकी तरफ से होनी चाहिये कि वह इस मसले में कांग्रेस का साथ चाहती हैं या नहीं। राजनीतिक विश्लेषक एवं कलकत्ता यूनिवर्सिटी के पूर्व रजिस्ट्रार राजगोपाल धर चक्रवर्ती ने कहा कि कांग्रेस के सहयोग के बिना तृणमूल की सर्वसम्मति से विपक्षी दावेदार पेश करने की कोशिश सफल नहीं होगी। उन्होंने कहा कि सिर्फ क्षेत्रीय दलों के एकजुट होने से भाजपा के उम्मीदवार को कड़ी टक्कर नहंी दी जा सकेगी। मुझे लगता है कि पूरा समीकरण जून के पहले या दूसरे सप्ताह में सामने आ जायेगा। गौरतलब है कि राष्ट्रपति चुनाव में जनता जनता प्रत्यक्ष रूप से मतदान नहीं करती है बल्कि जनता के द्वारा चुने गये सांसद और विधायक मतदान करते हैं। इस चुनाव में लोकसभा, राज्यसभा औैर राज्य विधानसभा के सदस्य मतदान करते हैं लेकिन विधान पार्षदों और नामित सदस्यों को वोट डालने का अधिकार नहीं होता है। वोट डालने वाले सांसदों और विधायकों के वोट का वेटेज अलग-अलग होता है। वोट का यह वेटेज अनुपातिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था के तहत तय होता है। --आईएएनएस एकेएस/एएनएम

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