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जेएनयू के छात्र बोले, द कश्मीर फाइल्स ने दिखाई सच्चाई लेकिन जेएनयू देश का टॉप रैंकिंग शिक्षण संस्थान

नई दिल्ली, 20 मार्च (आईएएनएस)। हाल ही में रिलीज हुई फिल्म द कश्मीर फाइल्स में दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय को भी दर्शाया गया है। फिल्म में दर्शाया गया है कि किस प्रकार यहां जेएनयू की एक प्रोफेसर कश्मीर मुद्दे पर अलगाववादियों के रुख का समर्थन करती है। हालांकि जेएनयू के छात्र इसे समूचे जेएनयू का ²ष्टिकोण नहीं मानते। बावजूद इसके छात्रों का मानना है कि इस प्रकार की सोच रखने वाले व्यक्तियों को एक्सपोज किया जाना आवश्यक है। छात्रों का कहना है कि यह किसी एक व्यक्ति विशेष का मामला हो सकता है, लेकिन पूरे विश्वविद्यालय को इस रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। छात्रों के मुताबिक जेएनयू राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। राष्ट्रीय सुरक्षा से लेकर देश के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में जेएनयू के छात्रों का अहम योगदान है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडी से पीएचडी कर रहे सिद्धांत के मुताबिक कश्मीर फाइल्स फिल्म में जेएनयू को लेकर जो भी सीन दिखाए गए हैं उनमें कुछ भी आपत्तिजनक या गलत नहीं है। उनका कहना है कि यह एक सत्य है कि जेएनयू में कुछ कुछ ऐसे लोग भी हैं जो कि ऐसी विभाजनकारी बातें करते हैं। हालांकि पीएचडी के छात्र सिद्धांत का मानना है कि जेएनयू में ऐसे केवल मुट्ठी भर लोग ही हैं। लेकिन इनकी पहुंच अच्छी खासी है जिसके चलते यह जो कुछ भी कहते हैं वह तुरंत मीडिया में आ जाता है और पूरे राष्ट्र के लोगों तक वह बात जाती है। सिद्धांत के मुताबिक जेएनयू के अधिकांश छात्र और शिक्षक ऐसी बातों से सहमत नहीं है। अधिकांश छात्र और शिक्षक इस प्रकार कि विभाजनकारी बातों और कार्य से किसी भी तरह से जुड़े हुए नहीं हैं। इसके साथ ही सिद्धांत ने कश्मीर फाइल्स फिल्म में प्रोफेसर मेनन जैसे किरदारों को दिखाया जाना बिल्कुल सही बताया। उनका कहना है कि ऐसे लोगों को एक्सपोज किया जाना चाहिए। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहे छात्र दीपांशु का कहना है कि उन्होंने यह फिल्म देखी है और ऐसी फिल्में बनती रहनी चाहिए। दीपांशु के मुताबिक देश में सभी समुदायों और राज्यों के लोगों को पता होना चाहिए कि आखिर कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के साथ किस प्रकार अत्याचार हुआ था। छात्र का कहना है कि ऐसी फिल्में बनना तब और भी अधिक जरूरी हो जाता है जबकि पीड़ित लोगों के लिए सरकार द्वारा पर्याप्त कदम न उठाए गए हो। हालांकि जेएनयू को लेकर दीपांशु की एकदम स्पष्ट राय है। उनका कहना है कि जेएनयू को नेगेटिव लाइट में रखा गया है जो कि सही नहीं है, क्योंकि नकारात्मक तथ्य एवं बातें हर स्थान पर होती है इसका मतलब यह नहीं कुछ लोगों की नकारात्मकता के कारण पूरे संस्थान को ही नकारात्मक रूप से देखा जाए। दीपांशु का कहना है कि अक्सर टीआरपी के लिए भी ऐसा किया जाता है। उन्होंने स्वीकार किया कि जेएनयू में कुछ लोग ऐसे होंगे जो कि नकारात्मक बातें करते हैं लेकिन इस प्रकार के नकारात्मक लोग हर क्षेत्र में होते हैं। यह कोई अकेले जेएनयू की बात नहीं है। जेएनयू देश के लोगों को बहुत कुछ देता है, देश में हर जगह जेएनयू के छात्र राष्ट्र निर्माण में अपना सहयोग दे रहे हैं। यहां पढ़ने वाले छात्रों के बीच सकारात्मक बहस की गुंजाइश है। छात्रों को बोलने, सीखने, समझने की आजादी है और इसके लिए मंच मिलता है। जेएनयू के ही एक अन्य पीएचडी स्कॉलर सबरीश के मुताबिक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से जुड़े किसी भी विवाद को अधिक तूल दिया जाता है। यहां भी ऐसा ही है जबकि असलियत यह है कि जेएनयू में अधिकांश छात्रों व शिक्षक पढ़ाई पर बहुत अधिक मेहनत करते हैं। सुबह 9 बजे के बाद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की किसी भी लाइब्रेरी में सीट मिलना मुश्किल हो जाता है क्योंकि छात्र यहां अपने अध्ययन पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं। लेकिन यह बातें कम ही बाहर आती हैं क्योंकि उनसे किसी भी प्रकार का विवाद नहीं जुड़ा हुआ है। इसी महीने अपनी पीएचडी की थीसिस जमा करवाने वाले सबरीश के मुताबिक जेएनयू किसी भी अन्य विश्वविद्यालय की ही तरह है। यहां अलग-अलग विचारों वाले छात्र एवं शिक्षक हैं जिनमें से कई की विचारधारा आपस में मेल नहीं खाती। लेकिन यहां होने वाले विवादों को काफी बड़ा करके दिखाया जाता है। वहीं दूसरी ओर विश्वविद्यालय ने शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरीन नाम कमाया है। स्वयं भारत सरकार की नेशनल रैंकिंग में जेएनयू टॉप के विश्वविद्यालयों में शामिल है। जेएनयू में पोस्ट ग्रेजुएशन की छात्रा दीपा का कहना है कि हाल ही में रिलीज हुई फिल्म द कश्मीर फाइल के अंदर जेएनयू को लेकर जो बातें दिखाई गई हैं वह सबके सामने हैं। यह सच्चाई है कि जेएनयू में ऐसे नारे लगाए गए जो कि देश के सामान्य जन को काफी अधिक चुभते हैं। ऐसी नारेबाजी का किसी विश्वविद्यालय परिसर में कोई औचित्य भी नहीं है। दीपा का मानना है कि इस किस्म की बातें जेएनयू के छात्रों का मुद्दा नहीं है। अधिकांश छात्र न तो इन बातों से सहमत हैं और न ही इस प्रकार के किसी भी विवाद में शामिल हैं। टीवी में दिखाए जाने वाले मुद्दों के मुकाबले जेएनयू के मुद्दे अलग है और इन मुद्दों के बारे में बाहर की दुनिया कम ही जानती है। वह बताती हैं कि जेएनयू में बेहतरीन स्कॉलर्स हैं। आज भी देश के कई सरकारी महकमों में जेएनयू के छात्र कई बड़ी-बड़ी पोस्टों पर काम कर रहे हैं। जेएनयू में बेहतरीन रिसर्च हुई है यहां के छात्र आईएएस और आईपीएस जैसे पदों पर आसीन हैं। --आईएएनएस जीसीबी/आरजेएस

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